Thursday, February 15, 2024

देवी सरस्वती रंग-रूप से सूरजमुखी (albino ऐल्बाइनो) थीं। इसी में उनके नाम का रहस्य छुपा है।

Devi Sarasvati was an albino and that is the secret behind her name.  
लेखक – राजेन्द्र गुप्ता (ब्लॉगस्पॉट पर “शब्दों का डी.एन.ए. /
DNA of Words)

देवी सरस्वती Devi Sarasvati/ Saraswati भारतीय सभ्यता और संस्कृति की प्रमुख वैदिक एवं पौराणिक देवियों में से एक हैं। वह विद्या, वाणी और संगीत की देवी हैं। अगस्त्य मुनि रचित  सरस्वती स्तोत्र में देवी को कुन्द (चमेली) के फूल, चंद्रमा, हिम और मोती की तरह सफेद रंग का बताया गया है।

"या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।”

(अर्थ : जो कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिम और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं)

इस वंदना में बताये सरस्वती देवी के रंग-रूप से यह आभास होता है की देवी एक सूरजमुखी या ऐल्बाइनो (albino) थीं। सूरजमुखी लोगों की त्वचा, बाल और आँखों में मिलेनिन वर्णक (pigment पिगमेंट ) पूरी तरह या आंशिक रूप से नहीं पाया जाता। जिसके कारण उनके शरीर का रंग हिम की तरह सफेद होता है। मन में जिज्ञासा उठी कि इस सरस्वती वंदना के आधार पर सरस्वती जी कैसी दिखती होंगी। मैंने माइक्रोसॉफ्ट की AI विधा अथवा कृत्रिम बुद्धि / आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा देवी सरस्वती का चित्र बनाने का प्रयास किया। मैंने कंप्यूटर को कहा एक सफेद कमल के फूल पर विराजमान, सफेद वस्त्र पहने हुए एक भारतीय देवी का चित्र बनाओ जो ऐल्बाइनो हैं और वीणा-वादन कर रहीं हैं। AI द्वारा चित्रण के प्रयास में बने सरस्वती जी का चित्र आपके सामने है। 



मेरा मानना है कि वैदिक और पौराणिक साहित्य में हमें सभ्यता के उस युग की झलक मिलती है जब मानव वनवासी शिकारी-घुमंतू जीवन छोड़ कर कृषि अपना रहा था और गाँव बसा रहा था। निश्चय ही उस युग में देवी सरस्वती के वस्त्र और आभूषण वैसे नहीं रहे होंगे जैसे के चित्रों में दिखाए जाते हैं। प्रयास करूँगा कि इस विधा को अच्छी तरह से सीखा जाए ताकि एक संतोषजनक चित्र बन सके।

मेरी दूसरी जिज्ञासा थी कि सरस्वती जी के नाम का अर्थ क्या है। पारंपरिक रूप से भाषाविदों का यह मानना है कि देवी सरस्वती का नाम वैदिक काल की सरस्वती नदी (जो अब लुप्त हो चुकी है) के नाम पर किया गया। लेकिन क्यों ? सरस्वती देवी और सरस्वती नदी में क्या संबंध है ?

भाषाविदों के अनुसार सरस्वती नदी को सरस्वती इसलिए कहा गया क्योंकि उसमें अनेक बड़े सरोवर (और द्वीप) बने हुए थे।

सरस् [संस्कृत] = सरोवर, झील, तालाब

+ वती= स्त्री वाचक शब्दों में लगाए जाने वाला एक प्रत्यय जिसमें स्वत्व या स्वामित्व का भाव है जैसे कि गर्भवती, पुत्रवती, तेजोवती, सौभाग्यवती, प्रभावती आदि।

= सरस्वती [संस्कृत] = सरोवरों वाली, झीलों वाली  

अतः नदी का नामकरण तार्किक और सार्थक है किंतु देवी सरस्वती के संदर्भ में यह बहुत अटपटा और अतार्किक है।

सरस्वती देवी का एक नाम सावित्री भी है जिसका शाब्दिक अर्थ सूर्य-किरण है। अतः मेरा प्रस्ताव है कि सरस्वती नाम का संबंध देवी के सूर्यमुखी रंग-रूप के कारण है।  

सवितृ [संस्कृत]= सूर्य

> सावित्र [संस्कृत] = सूर्य से संबंधित

> सावित्री [संस्कृत = सूर्य-किरण, सरस्वती

सूर्य से संबंध के लिए सरस्वती शब्द से सबसे अधिक ध्वनि साम्यता वाला संस्कृत शब्द सूर्यवती है। संभवतः यह सूर्यवती शब्द ही अपभ्रंश होकर सरस्वती हो गया।

सूर्य [संस्कृत] = सूरज 

+ वत् / वती [संस्कृत] = एक प्रत्यय जो समानता और सादृश्य अर्थ को प्रकट करने के लिए संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ जोड़ दिया जाता है।

= सूर्यवती [संस्कृत का लुप्त शब्द?]= सूरज जैसी, सूरजमुखी

> सूरयवती

> सूरजवती

> सूरसवती

> सरस्वती Saraswati / Sarasvati [संस्कृत]

निष्कर्ष : सरस्वती देवी ऐल्बाइनो / सूरजमुखी थीं। अतः उनका मूल नाम सूर्यवती रहा होगा जो बिगड़ कर सरस्वती हो गया।

पहेली : एक प्रमुख भगवान भी सुरजमुखी थे। पहचानो कौन?

संकेत : भगवान की स्तुति में ही उनके रंग-रूप का वर्णन है।

Wednesday, February 14, 2024

देवी सरस्वती के जापानी नाम बेंजाइटेन और चीनी नाम बेनटेन कहाँ से आए ?

लेखक -- राजेन्द्र गुप्ता 

आज वसंत पंचमी पर आप सभी को हार्दिक बधाई। भारत में आज के दिन वाणी और विद्या की देवी सरस्वती (Sarasvati) की पूजा की परंपरा है। सरस्वती जी को सदा वीणा बजाते हुए दर्शाया जाता है। अतः उन्हे वीणावादिनी कहा जाता है। निराला जी की प्रसिद्ध सरस्वती वंदना का आरंभ "वीणावादिनी वर दे" से ही होता है। जापान की बौद्ध देवी बेंजाइटेन (弁才天 Benzaiten) सरस्वती का ही रूप हैं। देवी बेंजाइटेन को हाथों में बीवा नामक जापानी वीणा बजाते हुए दिखाया जाता है। वह संगीत और काव्य की देवी  हैं। आइये देखते हैं कि सरस्वती का वीणावादिनी विशेषण किस तरह बिगड़ कर जापान में बेंजाइटेन और चीन में बेनटेन हुआ होगा। 


वीणावादिनी [संस्कृत] = वीणा वादन करने वाली अर्थात् देवी सरस्वती 

> बीनावादिनी 

> बीनायादिनी

> बीनाजादिनी

> बीनाजाटिनी

> बेनजाटेन

बेन्जाइटेन 弁才天 Benzaiten [जापानी]

> बेनयाइटेन 

बेनटेन 辯才天 Benten [चीनी]


Thursday, September 15, 2022

पितरों के साथ -- यम कथा – 5

 यम कथा – 5

लेखक – राजेन्द्र गुप्ता

“यमपुरी के लिए निर्धारित स्थान पर यम ने अपना शिविर स्थापित कर लिया है। ब्रह्मपुरी के मुख्य वास्तुविद और अभियंता विश्वकर्मा निर्माण की बागडोर संभाले हुए हैं। किन्तु यमराज स्वयं निर्माण कार्य की निगरानी कर रहे हैं। निर्माण-स्थल पर यम के स्थायी निवास के साथ ही नरक बनाने के काम ने जोर पकड़ लिया है। यमराज और चित्रगुप्त के लिए अस्थायी पर्णकुटियाँ बन कर तैयार हैं। अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी अनेक पर्णकुटियाँ तैयार हैं। अभी नरक वाला बाड़ा बन रहा है। पूरी यमपुरी बाद में बनेगी। हाँ, यमपुरी की चारदीवारी पर कंटीली झाड़ियों की बाड़ अवश्य लगायी जा रही है। पास के वन से बाँस काट कर लाये जा रहे हैं। श्रमिक मिट्टी की कच्ची ईंटे बना कर उन्हें पका रहें हैं। नरक वाले बाड़े में मृतकों के लिए कक्ष और शालाएं बनायी जा रही हैं।

चित्रगुप्त भी आ पहुंचे हैं। चित्रगुप्त ब्रह्मपुरी के पंजीयक और लेखपाल हैं। लेकिन अब उनकी स्थायी नियुक्ति यमपुरी में की गयी है। ब्रह्मपुरी का काम चित्रगुप्त के एक पुत्र को दिया गया है। चित्रगुप्त इनका असली नाम नहीं है। किन्तु चित्रगुप्त कहलाये जाने के पीछे एक रोचक कारण है। चित्रगुप्त ने मानव इतिहास में पहली बार लिखने के लिए लिपि का आविष्कार किया। इस लिपि में बांस के बड़े-बड़े पत्तों, पेड़ की छाल, लकड़ी, मिट्टी के कच्ची पतली ईंटों या पत्थर की सतह पर रेखाचित्र बनाए जाते हैं या उकेरे जाते हैँ। प्रत्येक शब्द के लिए एक अलग विशेष रेखाचित्र बनाया जाता है। रेखाचित्र के कारण इसे लिपि को चित्रलिपि कहते हैं। यह बहुत गूढ़ लिपि है। इसमें सैकड़ों अक्षर हैं। इसे चित्रगुप्त के परिवार के अतिरिक्त बहुत कम लोग पढ़ सकते है। अतः इसे गुप्त लिपि माना जाना है।  अतः गुप्त चित्रलिपि के कारण इसके आविष्कारक को चित्रगुप्त कहते हैं। चित्रगुप्त ने यमराज के कक्ष बाहर एक पटल पर धर्मराज लिखवा कर लगा दिया है। किन्तु जो भी लिपि को पढ़ सकते हैं, वह भी धर्मराज को यमराज ही पढ़ते और बोलते हैं। चित्रगुप्त के पास बाँस के पत्रों (पत्तों) को एक संग्रह है जिसमें रेखाचित्रों में ब्रह्मपुरी के सभी निवासियों की पूरी जानकारी और डेटा छिपा है। पत्रों का संग्रह पत्रिका कहलाता है।

आनंद कह रहा था, “भारत के सभी कायस्थों का विश्वास है कि वे सभी चित्रगुप्त की संतति हैं। प्रत्येक कायस्थ परिवार अपनी वंशावली को सीधे चित्रगुप्त से जोड़ता है। मेरा बहुत मन है कि चित्रगुप्त, चित्रलिपि और कायस्थों के संबंधों पर चर्चा करूँ। किन्तु वह फिर कभी। मुझे डर है कि लिपि-चर्चा के कारण हम नरक में मृतकों की दशा के आंखों देखे हाल से वंचित हो जाएंगे। बस आज यह समझ लो कि लेखन से संबंधित सभी शब्द और चित्रगुप्त के वंशज कायस्थ समाज के लगभग सभी कुलनामों का उत्स केवल कुछ शब्दों में खोजा जा सकता है; जैसे -- चित्र, रेखा, मसी (स्याही) और पत्र (पत्ती)। चिट, चिट्ठी, टिकट, रजिस्टर, आदि शब्दों में चित्र शब्द छुपा हुआ है; नागरी में रेखन शब्द छिपा है।

दीपक ने कहा, “आनंद तुम फिर से बहुत दूर की कौड़ी लाये हो। मैं आपको गलत नहीं कहूँगा। मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूंगा जिस दिन आप लिपि की विस्तृत चर्चा करोगे। खैर, अभी यह बताओ कि रजिस्टर या टिकट का चित्रगुप्त से क्या सम्बन्ध है?

शब्दों से खेलने वाली जुड़वा बहने जीभा-भाषी के लिए यह संकेत काफी था। आनंद के कानों में जीभा-भाषी के खेल की ध्वनियाँ गूंजने लगी। और आनंद दीपक के सामने वही ध्वनियाँ दोहरा रहा था। --

·      चित्र > चित > चिट chit

·      चित्र > चित्री > चित्ती > चिट्ठी

·      चित्र > चित्री > चित्ती > चिट्ठी > किट्ठी > टकिठी > टिकठ > टिकेट ticket

·      चित्र > चित्रे (मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      गुप्त > गुप्ते (मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      राज्यचित्र > राजीचित्र > राजीसित्र > राजीसितर > राजीसिटर > रजिस्टर

·      रेखा > लेखा

·      रेखाचित्र > खारेचित > खायेचिथ > कायेसिथ > कायस्थ

·      रेखाचित्र > रेखाचित्री > खारेचित्री> खारेचिठी > खारेसिठी > खरोष्ठी (एक प्राचीन लिपि)

·      रेखन > रेगन > नेगर > नागर > पटु + नागर > पटुनागर > भटनागर (उत्तर भारत में मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      रेखाश्रेष्ठ > लेखाश्रेष्ठ > लेकाश्रेष्ठ > केलश्रेष्ठ > कुलश्रेष्ठ (उत्तर भारत में मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      रेखाकरनी > लेखाकरनी > लेकाकरनी > केलाकरणी > कुलाकर्णी > कुलकर्णी (मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      रेखा > खरे (मध्य प्रदेश में कायस्थ कुलनाम)

·      रेखा > गरे > गेर > गौर (मध्य प्रदेश में कायस्थ कुलनाम)

·      पत्र > पतर > पतरा

·      पत्र > पत्रु > पतरु > मथरू > माथुर (उत्तर भारत में मराठी कायस्थ कुलनाम)

·      पत्र > पत्रु > पतरु > मथरू > माथुर  (मराठी कायस्थ कुलनाम)  

·      पत्र > पत्रिका

·      पत्रिका > पतिका > पजिका > पंजिका

·      मषि > मसि > बसी > बही

·      मषि > मषिन > मनषी > मुंशी (कायस्थ कुलनाम)

·      मषि > मसी > बसी > बसु > बोस (बंगाली कायस्थ कुलनाम)

·      श्री + मषि + उत्तम = श्रीमशौत्तम > श्रीबसौत्तम > श्रीबसौतब > श्रीवास्तव (कायस्थ कुलनाम)

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आनंद ने एक बार फिर स्वयं को भटकने से सावधान किया और बोला, “फिर नरक की ओर चलते हैं, जहाँ चित्रगुप्त मृतक के परिजनों से बात कर रहे हैं।“

आंखें बंद कर, आनंद ने बोलना शुरू किया।

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यमपुर के द्वार पर अर्थी को एक चबूतरे पर रखा गया है। अब यहां मृतक का पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन होना है।

मृतक का रजिस्ट्रेशन हो रहा है। चित्रगुप्त ने मृतक के साथ आये जनों से पूछ-पूछ कर यमराज के नाम आवेदन लिखवाना शुरू किया। आवेदन का प्रारूप पहले से तैयार है।

प्रारूप > फ्रारुम > फॉर्म form

चित्रगुप्त के दो पुत्र साथ बैठ कर प्रशिक्षण ले रहे हैं। मृतक के परिजन चित्रगुप्त के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं। प्रशिक्षु पुत्र पंजिका में लिख रहे हैं।

“आज अमुक तिथि ..... को अमुक नाम .... का व्यक्ति; मृतक का नाम बताइए; …जिसके पिता का अमुक नाम ….. मृतक के पिता का नाम बताइए; जो अमुक गोचर …. का है; मृतक का गोचर बताइए; यमपुरी के द्वार पर आया है।  कृपया इसे स्वीकार करें। [गोचर > गोजर > गोदर > गोतर > गोत्र]

मृतक के पुत्र ने सारी जानकारी दी।

चित्रगुप्त अपना राजचित्र/ रजिस्टर ले कर द्वार के अन्दर चले गए। भीतर जा कर उन्होंने अपने ब्रह्मपुरी वाले जनसंख्या रजिस्टर में पंजीकृत नागरिक विवरण में मृतक के जीवन के लेखा-जोखा से मिलान किया। चित्रगुप्त को तय करना है कि मृतक को नरक में आम जनता वाली साधारण सुविधाएँ दी जाये या विशेष सुविधाएँ। बड़ी शाला में रखेँ या निजी कक्ष में। चित्रगुप्त के अंदर जाने के बाद, अब यमलोक का एक नरककर्मी द्वार के बाहर उपस्थित हुआ । उसने सभी लोगों को कहा,

“’घड़े में जो पानी है यह आपके ब्रह्मपुर से मृतक के घर से आया है। यह संक्रमित हो सकता है। इसको यमपुरी में ले जाने की अनुमति नहीं है। न ही इसे वापस ले जाने की आज्ञा है। घड़े को यहीं पर तोड़ दो। वापसी में इस घड़े का पानी पीने से संक्रमण का खतरा है। आप खाने के लिए जो भी पका हुआ सामान साथ लेकर आए हैं, उसको यही पर फेंक दीजिए।“

अतः उबले हुए चावल के पिंड भी फेंक दिये गये। केवल सूखा सामान आटा, तेल, आदि ही मृतक के लिए अंदर जा सकता है। उसके बाद उसने मृतक के सभी कपड़े उतरवाने और उसे नदी में स्नान करवाने का आदेश दिया। स्नान करवाने के बाद अन्य नरककर्मी मृतक को नरक के द्वार के अन्दर ले गए।

नरक कोई अस्पताल नहीं है जिसमें मृतप्राय रोगियों के उपचार के लिए सघन चिकित्सा केंद्र (आई सी यू ICU) की सुविधा हो। नरक केवल क्वारंटाइन और शव प्रबंधन केंद्र है। यहाँ लाये जाने पर मृतक की सघन शारीरिक जांच की जाती है। नरक में लाये जाने पर कुछ लोग मृत पाए जाते हैं (ब्रोट डैड brought dead)। अगर मृतशरीर या शव है तो उसका तुरत निपटारा किया जाता है। अगर मृतक अर्थात मरणासन्न है तो उसे नरक में तब तक के लिए वास मिलता है जब तक वह मर नहीं जाता। कुछ लोग क्वारंटाइन में लाए जाने के कुछ घंटों में या कुछ दिनों में मर जाते हैं। कुछ स्वस्थ हो कर लम्बे समय तक जीते हैं। लेकिन स्वस्थ हो जाने पर भी उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं है। उनके वापस ब्रह्मपुरी जाने पर वहाँ रोगों के संक्रमण का खतरा है।

यहाँ सफाई व्यवस्था पर बहुत आग्रह है। घरों से आई हुई अर्थियाँ और फूस के गद्दों का नरक से प्रवेश निषेध है। जब भी कोई मृतक मर जाता है, उसकी शय्या भी उनके साथ ही जला दी जाती है। उसके शव का अन्य तरीके से निपटारा कर दिया जाता है ताकि उसका संक्रमण बाकी लोगों में ना फैले। नरक में आने वालों के लिए सदा ही नयी शय्या, कपड़ों, भोजन और अन्य वस्तुओं की आवश्यकता रहती है।

आज जो मृतक यहाँ लाया गया है, वह मूर्छित है। उसकी सांस अभी चल रही है। उसकी जांच के बाद, नरककर्मी एक बार फिर यमपुरी के द्वार पर आये और मृतक के लिए अनेक आवश्यक सामान की आपूर्ति के लिए परिजनों को निर्देश दिए। फिर यमपुरी का द्वार बंद कर दिया गया।

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उधर ब्रह्मपुरी में रात को भी आग जला कर रखने या दीपक जला कर रखने की प्रथा अभी शुरू नहीं हुई है। रात को चारों ओर घुप्प अँधेरा रहता है। अतः घर की महिलाओं ने रात को घर के बाहर यमपुरी वाली दक्षिण दिशा में दीपक जला कर रख दिया है। अगर मृतक को ले जा रहे किस व्यक्ति को वापस लौटना पड़े तो रात को दूर से ही घर पहचान सकें। रात को दीपक जला कर रखने का क्रम तब तक जारी रहेगा जब तक सभी लोग यमपुरी द्वार पर मृतक को छोड़ कर वापस न आ जायें।

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जो सगे संबंधी यमदूतों के साथ मृतक को यमलोक तक छोड़कर आए थे, उन्हें जाने और लौटने में छह दिन लग गए। अगले कुछ दिनों में यमपुरी के नरक कर्मियों की दी गई सूची के अनुसार मृतक के लिए सभी आवश्यक सामान को जुटाया गया। दसवें दिन परिवार में सभा हुई। विचार किया गया कि ने मृतक की आवश्यकताओं की वस्तुओं को यमपुरी में मृतक तक कैसे पहुँचाया जाये। इस काम के लिए पशुचर / पशुप्रज समाज से तेरह चरवाहे बुलाए गये हैं। इन्हें सभी दिशाओं में दूर देशों तक का रास्ता पता है। पशुओं के प्रजनन में विशेषज्ञ यह पशुचारी जन ब्राह्मण कहलाते है।

प्रज > प्रजमान > ब्रजमान > ब्राजमन > ब्राहमन > ब्राह्मण

प्रज > प्रजर > ब्रजर > ब्रीजर > ब्रीडर breeder

तीन दिन बाद अर्थात मृतक की यमपुरी यात्रा के तेरहवें दिन ये प्रजमान / ब्राह्मण मृतक के लिए सभी आवश्यक सामान लेकर यमलोक जायेंगे।

तेरहवें दिन उन सभी ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराया गया। यात्री दल के मुखिया ब्राह्मण को सभी सामान सौंपा गया। मृतक के पुत्र ने एक-एक चीज सौंपते हुए ब्राह्मण से संकल्प लिया और किया।

“हे अमुक गोचर / गोत्र ….. के अमुक नाम ….. के ब्राह्मण, मैं अमुक नाम ….  जो अमुक गोत्र …. के अमुक मृतक ….. का पुत्र है, तुम्हें यह अमुक वस्तु ….. सौंपता हूँ, इसे जाकर यमपुरी में मेरे पिता को अर्पण कीजिए। फिर ब्राह्मणों को मृतक के लिए अन्न, मिठाई, फल, कपड़े, बर्तन, शय्या, गद्दा, चादर, तकिया, कंबल, जूते और अन्य वस्तुएं दी गई। मृतक के पुत्र ने कहा, “ हे ब्राह्मण, मार्ग में, दिन में तप्त बालू है और रात में अंधेरा है अतः मैं आपको मार्ग के लिए यह छत्र और ज्योति भी दे रहा हूँ। 

छत्र > छत्री > छतरी

ज्योतिर > तिर्ज्यो > तिर्च्यो > तोर्चो > टोर्च

आनंद ने कहा, “दीपक वर्तमान में न ब्रह्मपुरी है न यमपुरी। किन्तु, जो प्रोटोकॉल मैंने ब्रह्मपुरी और यमपुरी में देखा था वही प्रोटोकॉल हजारों साल बाद वर्तमान में भी चल रहा है। आजकल जो सामान ब्राह्मणों को दिया जाता है वह ब्राह्मण के घर में ही रहता है। इतने लंबे अंतराल में मृतक के लिए भेजे जाने वाले सामान की मूल सूची में कुछ अन्य वस्तुएं जुड़ती जा रहीं हैं। पूर्व में केवल यमपुरी गये मृतकों के लिए वस्तुएं भेजी जाती थीं। अब मृतक के पूर्वजों के लिए भी अन्न, तिल और शहद का बना एक-एक पिंड भेजा जाता है । जिनके नाम ये पिंड भेजे जाते हैं वे हैं -- मृतक के पिता, दादा, दादी, परदादा, परदादी, नाना, नानी, सास, ससुर। और एक अतिरिक्त पिंड चित्रगुप्त के लिए भी।

आनंद कहता जा रहा था, “नरक में रहने वाले मृतकों के लिए भोजन, कपड़ों और अन्य वस्तुओं की पूरे वर्ष के लिए आपूर्ति का उत्तरदायित्व मृतकों के परिवार वालों का ही है। हर महीने आवश्यक सामान की आपूर्ति की जाती है। किन्तु यह व्यवस्था गर्मी और बरसात के मौसमों में टूट जाती है। गर्मी के महीनों में मार्ग में तेज जलने वाली हवाएं चलती हैं जिन्हें लू कहते हैं।

ज्वालू हवा > जवालू > य्यालू > लू

उसके बाद बरसात के कीचड़ और दलदल भरे महीने भी आवागमन संभव नहीं है। इसलिए, ब्रह्मपुरी और यमपुरी के प्रशासन ने मिल कर एक नियम बनाया है। यह नियम ब्रह्मा के पुत्र और सप्त-ऋषियों में से एक अत्रि ऋषि की सलाह पर बनाया गया है। सबसे पहले यम के भाई मनु ने इसका पालन किया। इस नियम के अनुसार जब वर्षा ऋतु के बीतने पर अश्विन का महीना शुरु होता है, और सूर्य कन्या राशि में जाता है या कहें कि सूर्य कन्यागत होता है, उस समय 15 दिन तक यमपुरी में रह रहे मृतक पितरों के लिए सामान की आपूर्ति की जाती है। इन दिन को पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है। इस समय सूर्य के कन्यागत होने के कारण इस काल को कनागत भी कहते हैं।

पितृपक्ष में, सभी लोग अपने-अपने घर के मृतक के लिए पूरे वर्ष भर का राशन, कपड़े, और उपयोग के अन्य वस्तुएं मृतक तक पहुंचाने के लिए ब्राह्मणों को दे रहे हैं । ब्राह्मण मृतकों के लिए दी गयीं इन वस्तुओं को उसी तरह के यमपुरी पहुंचा रहे है जिस तरह यमपुरी जाने के 13वें दिन उन्होंने सामान को पहुंचाया था। इसी तरह वर्ष में एक बार यमदूतों द्वारा मृतक को ले जाये जाने की बरसी भी मनाई जाती है। उस दिन भी, मृतक के लिए राशन, कपड़े, और उपयोग के अन्य वस्तुएं ब्राह्मणों को दी जाती हैं।

“हे दीपक, यमपुरी में आने-जाने के कड़े निषेध है। इन नियमों के कारण, किसी भी व्यक्ति के यमपुरी में प्रवेश के बाद उसका समाचार मिलना लगभग असंभव ही है। किन्तु कभी-कभी यमदूतों से पता चलता है कि यमपुरी में गया हमारा प्रियजन अब मर चुका है और उसके शरीर का निपटान किया जा चुका है। इसलिए, अब उसके लिए सामान की आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है। फिर भी लोगों ने हर वर्ष सामान भेजने की प्रथा को जारी रखा हुआ है ताकि यह सामान उन गरीब मृतकों के काम आ जाए जिनके घर के लोग उनके लिए समुचित सामान भेजने  में अक्षम हैं । एक तरह से, यह भाव अपने प्रिय परिजन के लिए उसकी स्मृति में और उसके सम्मान में श्रद्धांजलि है। अतः इसी रीति को श्राद्ध कहा जाता है।“

“आओ दीपक, हम भी अपने पितरों को नमन करें।“    

(शेष है। क्रमशः)

यम कथा – 1

यम कथा – 2

यम कथा – 3

यम कथा - 4  

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