लेखक – राजेन्द्र गुप्ता
अनेक बच्चों, और बड़ों को भी, सब्जियाँ खाना पसंद नहीं है। लौकी, कद्दू, बैंगन, पालक आदि के नाम पर तो अनेक बच्चे नाक सुकेड़ते हैं और बड़े भौं सुकेड़ते हैं। जब पूरी कोशिशों के बाद भी कोई माँ बच्चों को सब्जियाँ नहीं खिला पाती तब उस समय के लिए उस माँ के पास कुछ गोपनीय पाक-विधि या सीक्रेट रेसिपीज होती हैं। उसे पता है कि बच्चों को गुप्त रूप से लौकी, कद्दू, बैंगन कैसे खिलाना है। वह सब्जियों को बारीक काट कर या कद्दू-कस करके बेसन के गाढ़े घोल में मिलाती है और फिर उसके पकोड़े बना कर उसकी सब्जी या सालन बनाती है। इस तरह नापसंद लौकी और कद्दू की सब्जी भी गुप्त रूप से बच्चों को खिला दी जाती है। बच्चे स्वाद से खाते है और दोबारा मांगते हैं।
बच्चों को लौकी, कद्दू, बैंगन, पालक आदि की सब्जी को गुप्त रूप से खिलाने को ही कोफ्ता खिलाना कहते हैं। क्या आपके दिमाग की बत्ती जली? आपने ठीक जाना। कोफ़्ता का नामकरण कुछ ऐसे हुआ --
गुप्त सब्जी > गुप्ता सब्जी > गोप्ता सब्जी > कोफ़्ता सब्जी > कोफ़्ता !
मेरे एक कश्मीरी मित्र मेरे नाम को गुप्ता नहीं गुफ़्ता बोलते हैं। मैं उनका धन्यवाद करता हूँ कि वह मुझे गुफ़्ता ही बोलते हैं, कोफ़्ता नहीं !!
अब एक और रोचक बात। अगर हम टी.वी. पर रसोई कार्यक्रम
वाले प्रसिद्ध भोजन ब्लॉगर और भोजन के बड़े इतिहासकार दाढ़ी वाले प्रोफेसर साहब की
माने तो प्रत्येक स्वादिष्ट व्यंजन की तरह कोफ्ते का आविष्कार भी मुग़ल बादशाह अकबर
ने किया था। फारसी में कोफ़्त का अर्थ है पीटना। अतः माँस को कोफ़्त कर अथवा पीट
कर बनाया गया व्यंजन कोफ़्ता कहलाया। अरे सर! माना कि आपके अकबर बादशाह कोफ्ता खाते
थे; किन्तु यह आवश्यक तो नहीं कि कोफ्ते का आविष्कार भी उनके बावर्चीखाने में
ही हुआ था। एक मांसाहारी मुग़ल बादशाह को गुप्त रूप से मीट खिलाने की क्या आवश्यकता थी? यह भी तो हो सकता है कि अकबर के हरम में उसकी अनेक हिन्दू शाकाहारी पत्नियों में से कोई उसके लिए गुप्त रूप से सब्जियाँ खिलाने के
चक्कर में गुप्ता / गोप्ता / कोफ़्ता बनाती रही हो!
आपको कोफ़्ता की यह व्युत्पत्ति कैसी लगी? मुझे बताइए।
No comments:
Post a Comment