देवताओं और दानवों
की पौराणिक कथाओं को मानव सभ्यता के प्रारंभिक
चरण की कहानियों
के रूप में देखा जा सकता है। सभ्यता के आरंभ से लेकर आज तक, हमारे
पूर्वजों की 300 से 500 पीढ़ियों ने मुँह-बोले शब्दों के माध्यम से ही अपने
बच्चों को इन घटनाओं के विषय में बार-बार बताया होगा। किन्तु
इस बीच उच्चारण में बदलाव के चलते, कहानियों के मूल शब्दों में
उसी तरह म्यूटेशन या परिवर्तन होते गए जैसे की हमारे जीन के डीएनए में होते रहते हैं।
शब्दों में हुए इन परिवर्तनों के कारण, अधिकतर कहानियों का मूल अर्थ, प्राचीन काल में आँखों-देखी
घटनाओं के वर्णन से पूरी तरह से बदल गया
होगा। मूल घटनाओं की खोज में, जीव-वैज्ञानिक
राजेंद्र गुप्ता प्राचीन काल की स्वप्निल दुनिया में, पुरखों के साथ
एक और यात्रा पर निकले। और इस बार भगवान विष्णु एक क्षारी-सागर
या खारी-झील में दस ऍनाकोन्डाओं की शैया पर आराम करते दिख रहे हैं। विष्णु
जी बता रहे हैं कि यह विशाल सांप नागों का राजा
नागेंद्र है। पूरा विवरण आगे पढ़िए...
प्रतिदिन, जागते या सोते हुए, मैं टाइम मशीन में पहुँच जाता हूँ; और पुरातन काल
में घुमंतू पुरखों के समूहों में शामिल हो
कर एक नई यात्रा पर निकल पड़ता हूँ। शनिवार की रात है। मैं टीवी की नेशनल
जिओग्राफिक चैनल पर दक्षिण-अमेरिकी नाग एनाकोण्डा पर कार्यक्रम देख रहा हूँ। एनाकोण्डा
विश्व के सबसे बड़े नागों में से है। उसकी औसत लंबाई 6 मीटर या 20 फीट, और औसत वज़न 150 किलो होता है। वेनेजुयला विश्वविद्यालय के जीव-वैज्ञानिक
प्रोफेसर जीसस रिवास एनाकोण्डा पर अपनी अद्भुत खोजों के बारे में बता रहे हैं। प्रोफेसर
रिवास एनाकोण्डा के प्रजनन के विषय में समझा रहे हैं। वे बता रहे हैं कि मैथुन से पहले
आठ से बारह नर-एनकोण्डा और एक मादा एनाकोण्डा आपस में लिपट जाते हैं, जिससे नागों का एक विशाल गुच्छा बन जाता है। नाग इसी अवस्था में औसत 14
दिनों तक आपस में लिपटे रहते हैं। दस नरों में केवल एक ही संभोग में सफल होता है। संभोग
कई घंटे चलता रहता है, लेकिन उस समय भी बाकी सभी नर-नाग भी मादा
नाग से लिपटे रहते हैं। प्रोफ॰ रिवास बता रहे हैं कि अनेक दिनों तक लगातार प्रणय और
संभोग में तल्लीन नागों के समूह को उनके पास बैठे, उनसे
छेड़-छाड़ कर रहे, उनका माप ले रहे, और
फोटो ले रहे जीव-वैज्ञानिकों की उपस्थिति से कोई फरक नहीं पड़ता (नीचे छवि-चित्र
देखिये)। इस बीच वैज्ञानिक माप लेने के लिए नागों को अलग करते हैं, पर नाग फिर आपस में लिपट जाते हैं।
वेनेजुआला के प्रो॰ रिवास एनाकोण्डा
को पकड़े हुए (सबसे ऊपर) और मैथुन-लीन
एनाकोण्डा के
गुच्छे की जांच करते हुए (ऊपर)
टीवी कार्यक्रम
देखते हुए मुझे नींद आ गयी है। और मैं एक बार फिर पुरखों के साथ यात्रा में आ पहुंचा
हूँ। इस बार मैं आज से 8000 वर्ष पहले के भारत में घूम रहा हूँ।
पुरखों के एक टोले के साथ मैं मध्य-भारत के सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों से
उत्तर भारत की ओर बढ़ रहा हूँ। हम कई दिन से सूखे मैदानों में चल रहे हैं। आज भी दिन
भर कहीं पीने का पानी नहीं मिला है। पूरा समूह प्यासा है। बच्चों और स्त्रियों का
तो बुरा हाल है। दूर पेड़ दिखाई दे रहे हैं। इसका अर्थ है कि यहाँ पानी भी होगा।
निराश दिलों में आशा का संचार हुआ। उमंग से पैर उठे और हम आगे बढ़े। दिन ढलने से
पहले ही हम जामुन वृक्षों के वन में आ पहुँचे है। वन के बीचों-बीच एक विशाल झील है।
झील में दूर-दूर तक कमल के विशाल फूल खिले हैं। कुछ-कुछ दक्षिण अमेरिका के अमेज़न
क्षेत्र में मिलने वाले विक्टोरिया-लिली जैसे। सभी जन पानी पीने के लिए दौड़ पड़े। पानी
कुछ क्षारी (खारी) है। लेकिन कई दिन से प्यासों के लिए यह खारी पानी अमृत से कम
नहीं।
भाषी बोली, “यह तो क्षारी-सागर है।
(संस्कृत, क्षार =
नमक; क्षारी = नमकीन, खारी; सागर = झील)
जीभा ने उसे टोका, “कई दिन से प्यासे
थे। अब इस क्षारी-सागर का पानी हम सभी के लिए माँ के दूध से कम नहीं। इसलिए, ओ मेरी प्यारी बहना, इसे क्षारी-सागर नहीं, क्षीर-सागर* कहो.”
*[भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार
भगवान विष्णु दूध के समुद्र क्षीर-सागर में निवास करते हैं। संस्कृत में क्षीर = दूध; क्षीर-सागर = दूध की झील]
निश्चय हुआ है कि आज की रात यहीं डेरा लगाया जाएगा। समूह के लोग झील
के आस-पास भोजन की तलाश में निकल पड़े। हम तट के साथ चल रहें हैं। अचानक एक विचित्र
और अद्भुत दृश्य देख कर सभी की साँसे और धड़कने रुक सी गयी है। झील में तट के एकदम
निकट, सघन कमल-दलों के बीचों-बीच लगभग दस-बारह विशाल नाग
आपस में गूँथे हुए है। नाग लगभग दस हाथ लंबे होंगे। उनकी मोटाई औसत मनुष्य की जंघा
जितनी। गुच्छे में आठ-दस नागों के सिर अलग दिखाई देते हैं,
पर शरीर आपस में एक दूसरे से अभिन्न हैं। हमारे पूरे समूह में से किसी ने भी कभी
ऐसे विशाल नाग न देखे है न ही कभी सुने हैं। हे भगवान! इन नागों से प्राणों की
रक्षा कैसे होगी? लेकिन आश्चर्य है, इन
दस नागों के गुच्छे के ऊपर एक युवक शांत भाव से आराम कर रहा है। उसे नागों का कोई
भय नहीं है। युवक का रंग आकाश में बादलों जैसा है। हमारे समूह में तो सभी जन अपने
शरीर पर पशुओं की खाल या वृक्षों की छाल ही लपेटते है। किन्तु इस युवक ने एक
चमकीला, मुलायम, पीले रंग का अद्भुत आवरण
शरीर के निचले भाग पर लपेटा हुआ है! युवक ने अपने शरीर पर कमल-नाल सहित एक बड़ा फूल
रखा हुआ है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानों कमल का एक फूल इस युवक की नाभी से
उग आया हो। यह पक्का है कि इस युवक ने नागों पर विजय प्राप्त कर ली है। शायद यह
युवक कोई मनुष्य नहीं हैं। वह देवता हो सकता है। नहीं, नहीं, शायद वह देवताओं का राजा है। यह सभी की रक्षा और देखभाल कर सकता है। आओ
इसी कि शरण में हो लें। वह नागों से हमारी भी रक्षा करेगा।
समूह के सभी लोग अनायास ही भूमि पर लेट कर नागों पर विजय पाने वाले
युवक का वंदन करते हैं।
“जय हो। आपकी जय हो।
“शान्ताकारम
भुजग शयनम, पद्मनाभम सुरेशम।
विश्वाधरम गगन सदृशम मेघ वर्णम शुभान्गम॥”
[“कमल-दलों के
केंद्र में, शांत भाव से नागों पर
आराम कर रहे, सुंदर शरीर वाले, आकाश के
मेघ जैसे रंग वाले, सभी की रक्षा और देखभाल करने वाले, हे देवों के राजा।” मैंने विष्णु स्तोत्र के इस प्रसिद्ध श्लोक के पहले
पद का लौकिक भावानुवाद किया है। यह पारंपरिक अनुवाद से भिन्न है। पारंपरिक अनुवाद
में पद्मनाभ का अर्थ है : 'जिसकी नाभी से कमाल उग आया है'; क्योंकि यह जीव-वैज्ञानिक दृष्टि
से असंभव है, अतः मैंने 'नाभ = केंद्र' अर्थ के आधार पर 'पद्मनाभ = कमल (दलों) के केंद्र' अनुवाद किया है। 'गगन सदृशम' का पारंपरिक अर्थ आकाश की तरह पूरे
विश्व में मौजूद है; मैंने लौकिक अर्थ के लिए 'गगन
सदृशम' और 'मेघ वर्णम' को एक साथ जोड़ कर इसका अर्थ 'आकाश
के बादलों के रंग वाला' माना है।]
अपना जय घोष सुन कर युवक ने आँखें खोली।
उसके सामने है सभी दिशाओं से भोजन–पानी के तलाश में उत्तर भारत के उपजाऊ मैदानों
में आने वाले आप्रवासियों का एक नया दल।
युवक के सामने यह पहली बार नहीं हुआ है।
वह जानता है कि लोग क्यों डरे हुए हैं। उसका हाथ अभय-मुद्रा में उठता है।
“मेरे देश में सभी अभय हैं। डरो नहीं। यह
नाग विषैला नहीं है। यहाँ अनेक प्रकार के विषैले नाग भी अवश्य हैं, किन्तु उनसे भी डरो नहीं। मेरे पास औषधीय पौधे हैं, जिन के प्रयोग से मुझे
विषैले नागों का विष नकारना आता है। इसलिए लोग मुझे विषनहि (विष + नहि) कहते हैं। नागों के राजा नागेंद्र जिस पर मैं
लेटा हुआ था, विषहीन नाग है। किन्तु सावधान, यह दंत-हीन नहीं हैं।
यहाँ यह जो मेरी नाग-शैया आप देख रहे हैं, यह एक नागेंद्र
नहीं, दस नागेंद्रों का समूह है। इस ‘दश-नाग स्थिति’ में नागेंद्र मैथुन में लीन
हैं। इस मौसम में इस पूरे देश के नागेंद्र
मैथुन में है। अभी कुछ सप्ताह यह इसी स्थिति में रहेंगे। इसलिए अभी डरो नहीं। संभोग
के बाद जब यह अलग-अलग हो जाएंगे, तब इनसे सावधान रहना होगा।
[एक क्षण को युवक की छवि नेशनल जिओग्राफिक चैनल टीवी पर देखे एनकोण्डा-शोधकर्ता की छवि में बदलने लगती है लेकिन फिर भगवान विष्णु की छवि में बदल जाती है]
“मैंने एक गरुड़ को पालतू बना लिया है। गरुड़
एक गाय-बैल जितनी विशाल चील है। उस पर सवार हो कर उड़ा जा सकता है। गरुड़ नागों को
खाता है। गरुड़ धीरे-धीरे इस प्रदेश के सभी नाग-नागेंद्रों को खा जाएगा।
मैं इसी विशाल क्षार-सागर में एक द्वीप पर
रहता हूँ। आप सब भी मेरे गाँव में रह सकते हो। यहाँ का पानी खारी है किन्तु इस
ग्रीष्म ऋतु में अन्य सभी दिशाओं में नदियाँ भी सूख गयी हैं। इस दिशा में, हमारे देश में भी झील का
पानी उड़ कर सूखने से खारी हो गया है। फिर भी यहाँ पानी की कोई कमी नहीं है। हमारे गाँव के लोग खेती करते हैं। वे अन्न
उगाते और खाते हैं। आप लोगों को खेती करना नहीं आता पर अगर आप यहीं बसना चाहो तो
आप भी हमारे गाँव में रह कर खेती करना सीख लेना। अभी सूरज छिपने को है। मैं जानता
हूँ कि संभवतः आपको अभी अन्न पसंद नहीं आएगा। बच्चे भूखे होंगे। जामुन-वृक्षों
वाले जंबू-द्वीप पर कंद-मूल-फल की कोई कमी नहीं है। आप अपनी पसंद का भोजन चुन लो। दिन
ढलने को है। बाकी बातें कल करेंगे।”
हमारे मुखिया ने हाथ जोड़ कर कहा:
“आपकी जय हो। आप हमें भोजन देने वाले ‘भोजवान’ हो। आप विष हरण करने वाले ‘विष-नहि-कर्ता’ हो।
हे भोजवान, आपकी जय हो।
हे विष-नहि-कर्ता, आपकी जय हो।
पूरे समूह ने ऊँचे स्वर में दोहराया,
“भोजवान विष-नहि-कर्ता की जय हो।”
विषनहि की सलाह मान कर,
सभी वयस्क लोग भोजन की तलाश में जुट गए। बच्चे खेल रहे थे। किन्तु सब बच्चों से
अलग, जीभा-भाषी केवल शब्दों से खेल रहीं थीं। उन्होने विषनही
के मुंह से अभी-अभी सुने कुछ नए शब्दों को दोहराना शुरू किया।
जीभा और भाषी
के इसी खेल को मनुष्यों की आने वाली पीढ़ियाँ सदियों
तक दोहराने वाली थीं। एक पीढ़ी से दूसरी और फिर अगली पीढ़ी तक जाते हुए शब्दों में हो
रहे क्रमिक परिवर्तन / म्यूटेशन से नए-नए शब्दों की रचना होने वाली थी...
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क्षारी सागर (खारी झील)
क्षीर सागर (दूध की झील)
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भुज्वान (भुज् + वान, संस्कृत, शाब्दिक अर्थ ‘जिसके पास बहुत भोजन
हो। किन्तु किसी संस्कृत कोश में यह शब्द नहीं है)
भुगवान
भगवान [मेरी लौकिक समझ में भगवान का मूल अर्थ भोजन देने वाला रहा होगा। मानव
सभ्यता के शुरू के दिनों में विष्णु जी और शिव जी की विलक्षण नेतृत्व क्षमता और
प्रसिद्धि के कारण इस शब्द का अर्थ बदल कर यशस्वी, प्रसिद्ध, सम्मानित, देवता, दिव्य आदि हो गया होगा]
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विष-नहि-कर्ता (संस्कृत, =
विष को नष्ट करने वाला)
विषनयि कर्ता
विषनिय कर्ता
विष्णु कर्ता
विष्णु शब्द की पारंपरिक
व्युत्पत्ति है : 'विश्व + अणु = जो विश्व में अणुओं की तरह हर कण में मौजूद है। किन्तु मेरी
लौकिक समझ में विष्णु शब्द की व्युत्पत्ति होनी चाहिए : विष + नहि।
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विष्णु कर्ता (विष्णु + कर्ता; कर्ता = करने वाला)
विष्णु कर्ता
कर्ता
कर्दा
खर्दा
खयदा
खुदा خدا (उर्दू)
खोदा خدا (फ़ारसी)
गोदा
गोडा
गॉड god (भगवान के लिए अँग्रेज़ी शब्द)
शब्द की यह व्युत्पत्ति भाषा-विदों
की व्याख्या से एकदम भिन्न है।
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नागेन्द्र (संस्कृत, = नागों का राजा, शेषनाग, दस मुख वाला एक पौराणिक नाग जिसकी शैया
बना कर विष्णु सोते हैं।
नागेन्द्रन (तमिल, = नागों का राजा, शेषनाग)
नागोन्द्रन
नाकोन्द्रन
अनाइकोन्द्रन (तमिल शब्द जिसका अर्थ
हाथी को मरने वाला समझा जाता है)
हनाइकोन्द्रन
हेनाकोन्दे (17 वीं शताब्दी सिंहली, = व्हिप स्नेक, कोड़ा साँप ? किन्तु आज
के समय में सिंहली भाषा में किसी भी साँप को हेनाकोन्दे नहीं कहा जाता।
एनाकोण्डा (ऐसा माना जाता है कि यूरोपीय लोगों ने इस
शब्द को श्रीलंका में सीखा और जब उन्होंने दक्षिण अमेरिका के एक विशाल साँप पहली
बार देखा तो उसे यही सिंहली नाम दे दिया।
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नागेन्द्र (संस्कृत, = नागों का राजा, शेषनाग, दस मुख वाला एक पौराणिक नाग जिसकी शैया
बना कर विष्णु सोते हैं।
नाजेन्द्र (लैटिन में कोबरा को
नाजा कहते हैं)
नायेन्द्र
नयन्त
यनंत
अनंत (संस्कृत, =शेषनाग, शाब्दिक अर्थ अंतहीन)
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मैथुन
लीन दस अभिन्न एनाकोंडाओं के समूह के लिए इस लेख में नए संस्कृत शब्द दशनाग
शब्द की कल्पना कि गई है। संस्कृत में दशनाग
का शाब्दिक अर्थ दस-नाग है।
दशनाग
जशनाग
(संस्कृत में द > ज या ज > द बहुत सामान्य
बात है
शशनाग (ज > श )
शेषनाग (दस मुख
वाला एक पौराणिक नाग। विष्णु इस नाग की शैया बना कर सोते हैं।)
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नागेंद्र (संस्कृत)
नागेंद्र नागेंद्र
द्रनागें
द्रांगेन
ड्रागेन (अंग्रेज़ी)
द्रक्न (ग्रीक)
******
मैं नींद से उठ बैठा। अभी सूरज नहीं उगा था। जागने
के बाद भी काफी देर तक मैं विष्णु जी के वही सपने में दिखे रूप में खोया रहा:
शान्ताकारम भुजग
शयनम, पद्मनाभम सुरेशम।
विश्वाधरम गगन सदृशम मेघ वर्णम शुभान्गम॥
सोचता रहा कि विष्णु जी कौन हैं? क्षीर-सागर में शेष-शैया पर सोने वाले कोई चमत्कारी अलौकिक भगवान, जो अगम, अगोचर, और अज्ञेय हैं? क्या भगवान विष्णु हम सब की तरह हाड़-मांस के बने
हमारे पुरखों में से कोई एक थे, जो वास्तव में
कभी इस धरती पर चलते-फिरते थे? क्यों न हम
पौराणिक कथाओं को मानव समाज और सभ्यता के विकास-क्रम की दृष्टि से देखे? मैं सोचता रहा कि क्या गलत उच्चारण से ‘क्षारी-सागर’ का ‘क्षीर-सागर’ बनने से क्षीर-सागर का मिथक उपजा? वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो क्षीर-सागर या दूध की झील तो हो नहीं सकती; क्षारी-सागर या खारी-झीलें तो पूरी दुनिया भर में हैं।
क्या एनाकोंडा पौराणिक शेषनाग हो सकता है? जीव-वैज्ञानिक दृष्टि से इस बात का कोई प्रमाण या संभावना नहीं है कि कोई
दस मुंह-वाला दैत्याकार जलचर नाग कभी इस धरती पर पाया जाता हो। हाँ, दस अनाकोंडाओं के दस-मुंह वाले मैथुन-लीन गुच्छे आधुनिक काल में भी हर वर्ष
एनकोण्डा के प्रजनन के मौसम में देखे जा सकते हैं। एनाकोंडाओं के यह गुच्छे इतने
बड़े होते हैं कि कोई भी मनुष्य उन पर लेट सकता है!
किसी भी पौराणिक गाथा का कोई ऐतिहासिक आधार खोजने
के लिए पुरातात्विक प्रमाणों की खोज आवश्यक है। उस दिशा में हम पूछते हैं कि विश्व
में विष्णु जी का प्राचीनतम चित्रण कहाँ किया गया है? हम देखते हैं कि विश्व में विष्णु जी की प्राचीनतम मूर्तियों में से एक
मूर्ति 7 वीं शताब्दी में चालुक्य काल में बनी थी। यह मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स
म्यूज़ियम में रखी हुई है। नीचे इसका छायाचित्र नीचे देखिये
[शेषशायीविष्णु, प्लेट 103 (AWF) बलुआ पत्थर, हुच्छपाया मंदिर, अइहोल, दक्कन, चालुक्य काल। 7 वीं शताब्दी। प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूज़िसियम, मुंबई।
और साथ ही प्रोफ़॰ रिवास
का लिया हुआ एनाकोंडा मैथुन-गुच्छे का चित्र (नीचे)।
(www.anacondas.org/)
प्राचीन मूर्ति में शेषनाग की आकृति दस
एनाकोण्डाओं के मैथुन-गुच्छ के वास्तविक छाया-चित्र जैसी ही है। एनाकोंडा कभी फन
नहीं फैलता। प्राचीन मूर्ति में कोई भी फन फैला हुआ नहीं है। दसों एनाकोंडाओं में से प्रत्येक नाग का मुंह अलग
दिखाई दे रहा है।
इस प्राचीन मूर्ति के विपरीत शेष-शैय्या पर
विष्णु जी की नवीनतम मूर्तियों में से एक दिल्ली के इस्कॉन मंदिर में है (नीचे)।
दिल्ली के इस्कॉन मंदिर में शेष-शैया पर भगवान विष्णु की एक आधुनिक मूर्ति (ऊपर)
एक आधुनिक कलेंडर चित्र में शेष-शैया पर
भगवान विष्णु (ऊपर)
इस आधुनिक मूर्ति में और कलेंडर-चित्रों
में शेषनाग के अनेकों फन, काले नाग
(कोबरा) के फन की तरह फैले होते हैं। आधुनिक कलेंडर-चित्रों में शेषनाग का पूरा
शरीर भी सीधा होता है। हम पाते हैं कि जीवों के डीएनए, और भाषा के शब्द ही नहीं, समय के साथ चित्रों में भी क्रमिक म्यूटेशन होते
हैं!
अगर एनाकोंडा ही शेषनाग है तो यह जानना अति आवश्यक
है कि क्या कृषि-समाज के उद्भव के समय यानी 8000 वर्ष पहले भारत में एनाकोंडा या
उसके जैसे साँप थे? इसका उत्तर तो जीवाश्मों (फ़ोसिल) अवशेषों से ही
मिल सकता है। मार्च 2010 में भारतीय भूगर्भ सर्वे के डा॰ महाबे और मिशिगन
विश्वविद्यालय के डा॰ विल्सन ने खोज की कि करोड़ों वर्षों पहले गुजरात में 6.5 मीटर
(20 फीट) लंबा अनाकोंडा जैसा लंबा नाग रहता था जो डायनासोर के आधा मीटर लंबे नवजात
बच्चे खाता था। किन्तु अभी हम यह नहीं जानते कि ऐसे विशाल नाग भारत से किस काल में
लुप्त हुए?
अंत में रह गयी गरुड़ की बात। यह जानना भी
आवश्यक है कि क्या बैल जितने बड़े गरुड़ पक्षी, जिस पर बैठ कर उड़ा जा सके, कभी भारत में
पाये जाते थे? ऐसी संभावना होने के दो प्रमाण हैं। एक, ऋगवेद में मरुत वीरों के पक्षियों पर उड़ान का विवरण है। और दूसरा, यूरोपीय यात्री मार्को पोलो के 13 वीं शताब्दी में लिखे यात्रा-वृतांत। मार्को
पोलो ने भारत के समुद्र तट के साथ यात्रा की थी। अपने वृतांत में पोलो ने भारत में 10 फीट ऊंचे पक्षियों की बात की है। ऐसे बड़े पक्षी मडगास्कर में तो 19वीं शताब्दी
तक पाये जाते थे। अतः विष्णु जी जैसे पुरखों की गरुड़ पर उड़ान वैज्ञानिक दृष्टी से असंभव
नहीं है। लेकिन इसके विषय में विस्तार से फिर कभी, एक नए ब्लॉग-पोस्ट में, जिसमें केवल
चील, बाज़, गरूड, उल्लू और गीध पक्षियों पर चर्चा होगी। आज विकीपीडीया
में छपे, कुछ लुप्त हो गए सवारी-योग्य विशाल पक्षियों
का यह कार्टून देखिये।
यह आलेख आपको कैसा लगा? क्या पौराणिक कथाओं का इस तरह वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए? या फिर इन कथाओं को आस्था की बात मान कर उन पर कुछ नहीं सोचना चाहिए?
26 नवंबर 2013
शेष-शैय्या पर लेटे विष्णु भगवान की कुछ प्राचीनतम प्रतिमाओं के चित्र नीचे दिये लेख में देखे जा सकते हैं:
Congratulations Rajendra Ji. You have indeed taken up a very tough task. It may, it may not attract the attention of serious linguist at the moment, but certainly your work is going to leave fundamental imprint on the study of languages, society, culture and history. I really wish you to be remembered as a path breaking scientist, followed by historians, like D. D. Kosambi. Though from a different ideological perspective, Kosambi has also tried to re-interpret the Mythological stories of India and thus influenced a generation of historians. Wish you all my bests.
ReplyDeleteA. N. Jha, Associate Professor in History, S. S. N. Collgege, D. U., India, Jmbudweep.
Dear Amarnath ji, you have drenched me with words of love, encouragement, honour, and responsibility. While reading your remarks, my hands automatically folded at the mention of Dr D.D. Kosambi and I bowed with misty eyes and with utmost humility. Though, I have read, Dr Kosambi's biography,and have come across many cross references to his work, I confess and regret that due to my laziness, I have not read his original writings. I must do that now. Thanks and best wishes. Rajendra
Deletewonderful explanation and analysis.
ReplyDeleteThank you Amit ji. Welcome to the 'DNA of Words.'
DeleteBest Wishes
निसन्देह अत्यंत अच्छा और ज्ञानवर्धक लगा....
ReplyDeleteरोहित जी, बहुत धन्यवाद। इस यात्रा में साथ बने रहिए।
Deleteराजेंद्र जी... आपका यह ब्लाग ..मेरे द्वारा पढ़ा गया अब तक का सर्वोत्तम ब्लाग है.. आप के प्रयास और उसके पीछे की गयी गंभीर और वैज्ञानिक तरीके से की गयी गढना और आपका परिश्रम स्पष्ट रूप से दिख रहा है.. इसके लिए आप बधाई के पात्र है..
ReplyDeleteअमरेन्द्र जी, बहुत अच्छा लग रहा है। पुरखों के साथ इन कठिन यात्राओं पर साथ बने रहिएगा। बहुत शुभकामनाएँ, धन्यवाद, आभार।
Deleteसर,मेरा भी मानना है कि हम जो भी पौराणिक कथाओं में पढ़ते हैं
ReplyDeleteउनका कोई न कोई वैज्ञानिक आधार अवश्य होता है..
समय के साथ साथ वे विलुप्त हो जाते हैं पर कुछ सच्चाई होती है.
विष्णु भगवान और एनाकोण्डा का यह शोध वाकई दिलचस्प है|
ऋता जी बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteThanks Anil ji. I am very happy that you have liked it. It is a great encouragement for more stories in this series.
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद ललित जी। स्वागत।
Deleteहे भगवान इतनी मेहनत !
ReplyDeleteआपको पसंद आया। मेहनत सफल हुई। आभार।
Deleteराजेन्द्र जी--
ReplyDeleteआप भी एक भगीरथ ही है-जो शब्द गंगा को उतार कर ला रहे हैं।
धन्य धन्य!
आदरणीय प्रोफेसर झावेरी जी, शब्दों और भाषा के आप जैसे मर्मज्ञ के आशीर्वचन मेरे लिए कितने उत्साहवर्धक हैं यह मैं शब्दों में नहीं कह पाऊँगा। बहुत आभार और धन्यवाद।
Deleteयहाँ आना और पढ़ना अपने आप में एक उपलब्धि है!
ReplyDeleteइस खोजपू्ण विवरण और पौराणिकता के आधार बिन्दु खोजने के लिये साधुवाद !
आदरणीय प्रतिभा जी, मैं लेखन के क्षेत्र में बिलकुल नया हूँ। इस ब्लॉग के अतिरिक्त कोई अनुभव नहीं है। आप जैसी विदुषी और सतत सृजनशील के यहाँ आने और प्रोत्साहित करने से कितनी ऊर्जा मिलती है उसे शब्दों में बताना कठिन है। बहुत आभार।
Deleteआदरणीय राजेन्द्र जी,
ReplyDeleteप्रतिभा जी के माध्यम से आपके ब्लॉग पर आकर पढ़ना मेरे लिये ज्ञानवर्धक सिद्ध हुआ।वैश्विक फलक पर जिस सिद्धहस्तता से आपने
पौराणिक कथाओं के अविश्वसनीय पक्षों का विज्ञान-सम्मत आधार खोज निकाला है- वह स्वीकार योग्य प्रतीत होता है। शेषनाग,क्षीरसागर
आदि का समाधान उपयुक्त लगता है। विज्ञान और साहित्य के इस समन्वय से अनेक गुत्थियाँ सुलझ सकती हैं। आपके वैदुष्य से मैं
प्रभावित हूँ। साधुवाद स्वीकार करें।
आदरणीय शकुन्तला जी,
Deleteआपके प्रोत्साहन और समर्थन भरे शब्दों से इस प्रयास को निश्चय ही गति मिलेगी। बहुत धन्यवाद एवं आभार।
Mind provoking..from many point of view ...very informatic ..must red research..Sadhuvaad..!!!
ReplyDeleteThanks Prakash ji
Deletethnx rajendra g for the wonderful explanation i luv 2 read this journey....nd sir plzz continue to write all these types of info because it helps to know about our religion culture....
ReplyDeleteThanks Sourabh. There is a break in this journey. I plan to resume next month.
Deleteश्रीमंत, सृष्टि के उद्भव ओर विकास के अध्ययन मे आपका प्रयास मेधा सम्पन्न एवं अद्वितीय है । किन्तु वर्षा से व्रीही तथा क्षारी से क्षीर परिवर्तन के लिए इन संस्कृत शब्दों का पहले होना आवश्यक है । इससे यही पता चलता हा की वैदिक संस्कृत संसार की आदीभाषा है । आपको बहुत धन्यवाद ओर बधाई की आप ऐसा रिसर्च करके इतिहासकारों द्वारा उपेक्षित काम कर रहे हो । संस्कृत शब्दों से परिवर्तित पश्चिमी भाषाओं के शब्दों और भाषा विज्ञान के लिए पंडित भागवतदत्त की भाषा का इतिहास तथा पंडित रघुनंदन शर्मा की पुस्तक वैदिक संपत्ति अवश्य पढ़ें। कोटी कोटी धन्यवाद
ReplyDeleteअत्त्री जी ब्लॉग पर स्वागत और बहुत धन्यवाद। आपके द्वारा सुझायी दोनों पुस्तकें मैं अवश्य पढ़ूंगा।
DeleteTrying to find the origin and link between words of different languages is a tough territory. One has to be extremely careful not to fall prey to "Deep Punning". The quest is tough and often one feels that secrets have been revealed to us but care is advisable. Take for example the fish - Bombay duck - there are rumors how it was thus named - after the bombay dak vehicle that carried it but there is no certainity about the same. Generally names are descriptive in nature - describing a character of an individual or animal. But finding its true roots after millions of years of mutations, assortments, local selections, etc is nearly impossible. A suggestion try finding the logic behind the name "Manushya" or "manush" or "human"..
ReplyDeleteI agree with you that it is almost impossible to discover the original names after several thousand years. There are no 'fossil records' of spoken words. That is why I describe this blog as a 'linguistic fiction' on its masthead. Nevertheless, I believe that synonyms in different languages provide the genetic footprints of ancient words. I see that you are a zoologist. Therefore, I shall greatly appreciate if you kindly see my blog posts on donkey, frog, penguin, panda, bat, butterfly etc. In each case, I don't agree with the established etymologies. I am not sure if you are sounding a caution on not to fall prey to "Deep Punning" or you really mean to say that I have arrived at my story due to "deep pruning". I shall wait.
ReplyDeleteThe word Bombay Duck has written record from 1850 that is much older than the introduction of trains in India. Obviously, it has nothing to do with DAK trains. I don't know if Bombay duck is a related to the Sanskrit word GADAK गडक which means a kind of fish! Bombay duck is called Bomili in Marathi. Bambaili Gadak would mean 'gadak of Bombay' > Bombay duck ?
DeleteManushya / manush is believed to be derivative of Manuj मनुज i.e. progeny of Manu. Manuj/ manush may be related as manuj मनुज / manush मानुष > manuh मानुह > manahu मानहु > human हुमन > ह्यूमन
बहुत उतम। एकदम सटीक।
ReplyDeleteधन्यवाद। स्वागत।
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ReplyDeleteकाफी अच्छा लेख। आपके ब्लॉग के विषय में गूगल सर्च से पता चला, आपसे अनुरोध है की महीने में एक लेख तो जरूर पोस्ट करें।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद। ब्लॉग पर आपका स्वागत। अनेक कारणों से नियमित नहीं लिख पा रहा था। अब प्रयास है कि आप नियमित रूप से कुछ पढ़ पायेंगे।
Deleteuncle , you explained the things in a very interesting way . mai aapke saath hoo aur aapse bahoot jyada sahmat hoo. actually mai bhi ishwar ko kabhi bhi as a chamatkar nahi manta hoo. mai yah manta hoo ki undoubtly lord ram was present at here but wo ek aam manushya the hamri aapki tarah . unhone jo bhi kiya he got a lot of fame from that aur log unki baatoo ko manane lage . aur jinko bad me aaker bhagwan kah diya gaya . aur hamko unke naam par thaga bhi ja raha hai .hame unke aadrsho me vishwash karna chahiye . na ki unko chamtkar manana chahiye
ReplyDeleteसंदीप जी इस ब्लॉग यात्रा में आपका स्वागत है। मैं आपके विचार से पूरी तरह सहमत हूँ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भी श्री राम एक महापुरुष थे, भगवान नहीं। इस ब्लॉग में रामकथा पर आधारित कुछ लेखों की योजना है।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक ! पौराणिक कथाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण बिलकुल होना चाहिए .
ReplyDeleteकल ही आपके ब्लॉग को देखा . अभी पढ़ ही रहा हूँ . भाषा के रूपांतरण के बारे में बचपन में 'वैदिक संपत्ति ' नामक पुस्तक में पढ़ा था . दुर्भाग्य से वह पुस्तक मेरे पास नहीं रही .प्रकाशक का नाम भी याद नहीं . मगर उस कमी को आपके ब्लॉग पर पूरा होता पा रहा हूँ .
बहुत धन्यवाद प्रमोद जी। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteअच्छा आलेख है -- संस्कृत शब्द क्षार है ...खार ...क्षीर ...खीर ...खीर सागर ...खिरसर ....जो कच्छ के रन का भाग है ..अर्थात कच्छ का रन ही क्षीर सागर था जो गुजरात व अरब सागर का भाग था ....जहां समुद्र मंथन हुआ था ..उच्चैश्रवा घोड़ा ...ऊंचे -लम्बे कान वाला ...अश्व अर्थात भारतीय अश्व...श्रेष्ठ प्रजाति का लद्दूघोड़ा ...गधा ,,,अश्व ...अस्प,,,अस्स..अंग्रेज़ी का आस..
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद डाक्टर साहब। खिरसर की जानकारी के लिए लिए आभार। गधे और घोड़े के विभिन्न नामों के लिए इसी ब्लॉग में मेरे लेख --
DeleteAnimal Names-1: How did donkey get its names http://dnaofwords.blogspot.in/2012/01/animal-names-1-how-did-donkey-get-its.html
और
How horse might have got its names घोड़े का नामकरण कैसे हुआ होगा
http://dnaofwords.blogspot.in/2012/01/how-horse-might-have-got-its-names.html
आभार पढवानें के लिए। निश्चित रूप से आस्था मानकर सवालों से भागना उचित नहीं है, जरूर शोध होते रहने चाहिए। बहुत ही सुंदर साहित्यिक, वैज्ञानिक, भौगौलिक....हर दृष्टकोण से सोच कर लिखा गया लेख
ReplyDeleteआभार
Deleteआदरणीय गुप्ता जी, आपके लेख में पुराण, इतिहास और भुगोल तीनों विषयों का त्रिवेणी संगम है।
ReplyDeleteआभार राहुल जी
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