लेखक -- राजेन्द्र गुप्ता
भारत में राजधानी दिल्ली की शाहीन बाग
कॉलोनी में लंबे समय से सरकार विरोधी धरना-प्रदर्शन चल रहा है। इस कारण, आजकल
शाहीन शब्द सबके मुँह पर है। शाहीन फ़ारसी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है बाज
पक्षी। एक समाचार के अनुसार कॉलोनी बनाने वाले ने इसका नाम अल्लामा इकबाल की प्रसिद्ध
नज़्म ‘सितारों से आगे जहाँ और भी हैं’ की एक पंक्ति से लिया था–
“तू शाहीन है, परवाज़ है काम तेरा, तेरे सामने आसमान और भी हैं” (परवाज़ = उड़ान)। किन्तु जिज्ञासा है कि बाज के अर्थ में शाहीन शब्द फ़ारसी में कहाँ से आया? चलिए शाहीन शब्द के डीएनए/ DNA की जाँच करते हैं। इससे हमें इस शब्द के उत्स और रिश्तेदारियों का पता चलेगा। हिन्दी, पंजाबी, बांग्ला आदि अनेक भारतीय भाषाओं की तरह ही फ़ारसी भी संस्कृत से निकली है। इसमें संस्कृत के तद्भव शब्दों की भरमार है। शाहीन या बाज के लिए संस्कृत में निकटतम शब्द श्येन हैं। अतः फ़ारसी का शाहीन संस्कृत के श्येन का ही तद्भव रूप है। श्येन > शयेन > शहेन > शहीन > शाहीन।
अब प्रश्न उठता है कि संस्कृत में श्येन शब्द कहाँ से आया?हमारे पुरखे कभी किसी व्यक्ति, प्राणी या पौधे का निरर्थक नाम नहीं रखते थे। निश्चय ही श्येन या बाज के सभी मूल नाम गुणवाचक ही रहे होंगे। श्येन एक शिकारी पक्षी है। इसे सबसे अच्छा ‘फ्लाइंग मशीन’ कहा जाता है। यह आकाश में 4000 मीटर या लगभग 12000 फीट की उंचाई तक उड़ान भर सकता है। यह आसमान का सबसे तेज पक्षी है जो शिकार पर झपट्टा मारने के लिए 320 किमी प्रति घंटे से भी अधिक गति से गोता मार सकता है। बाज, सबसे तेज ही नहीं, सबसे शक्तिशाली पक्षी भी है। बाज के तेज और नुकीले पंजों और मजबूत चोंच से कोई भी शिकार नहीं बच सकता। निश्चय ही बाज आकाश का विजेता है, राजा है। प्राचीन काल में शिकार और युद्ध में भी इसका प्रयोग होता था।
युद्ध के लिए बाज पालने के कारण गुरु गोबिन्द सिंह को ‘बाजाँ
वाला’ भी कहा जाता है। गुरु गोबिन्द
सिंह जी ने लिखा -- “चिड़ियों से मैं बाज लडाउँ, गीदड़ों को मैं शेर बनाउँ। सवा लाख से एक लडाउँ,
तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ!!” इस पद में
बाज को विजेता
का प्रतीक माना गया है। संस्कृत
में विजेता को जयन या जयिन् भी कहते हैं। श्येन शब्द जयिन् का ही बिगड़ा रूप दिखता
है।
जयिन् >
शयिन > शयेन > श्येन। यह यात्रा फ़ारसी में भी जारी रहती है— श्येन > शयीन > शहीन > शाहीन।
या फिर
जयिन् >
शयिन > शहीन > शाहीन।
वेद और पुराणों
में हमारी सभ्यता के उद्गम और विकास की झलक मिलती है। संसार की सबसे प्राचीन पुस्तक
ऋगवेद में गरुड़ पक्षी को श्येन कहा गया है। ऋगवेद में गरुड़/श्येन देव-लोक से सोम
लेकर धरती पर आता था। गरुड़ सभी पौराणिक पक्षियों में
सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली है। गरुड़ भगवान विष्णु का
वाहन है और इसे पक्षीराज की उपाधि दी गई है। अतः मेरा विचार है कि श्येन या जयेन शब्द
मूल रूप से गरुड़ पक्षी के लिए ही प्रयोग होता था किन्तु गरुड़ के लुप्त होने के बाद बाज आदि अन्य शक्तिशाली पक्षियों के लिए प्रयोग किया
गया। यह उसी तरह हुआ है जैसे सिंह / शेर के लुप्तप्रायः होने के कारण
आजकल बाघ को भी शेर कहा जाने लगा है। और तो और आजकल देवी दुर्गा
का वाहन भी सिंह /शेर न हो कर बाघ को दिखाया जाने लगा है!
विश्व में ज्यामिति का सबसे प्राचीन ग्रंथ बोधायन का शुल्बसूत्र है, इसके अनुसार यज्ञ की वेदी में समिधा को पंख फैलाए हुए श्येन के आकार में सजाया जाता था। इस यज्ञ वेदी को श्येनचिती (ज्योति > चयोति > चिति) कहते थे।
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला गाँव में 2100 वर्ष
पुरानी श्येनचिती यज्ञ-वेदी के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं।
उतरप्रदेश में कौशांबी
में भी एक पुरातात्विक स्थल का नाम श्येनचिती है। वेदव्यास के महाभारत और कामन्दक के
नीतिसार के अनुसार युद्ध की एक व्यूह रचना को भी श्येन कहते हैं। क्या यह नाम जयन/जयिन व्यूह का बिगड़ा रूप है या इसका बाज से कोई संबंध है? अमरसिंह,
हलायुद्ध और हेमचन्द्र के प्राचीन संस्कृत शब्दकोशों के अनुसार एक विशेष प्रकार के
घोड़े को भी श्येन कहते हैं। मैं नहीं जानता कि यह श्येन कहलाया जाने वाला घोड़ा अश्वमेध यज्ञ द्वारा विश्वविजय के लिए निकला अश्व होता था या कोई और विशेष घोड़ा। क्या श्येनचिती विजय के लिए किए जाने वाले किसी अश्वमेश यज्ञ की वेदी होती थी? (जयिन ज्योति > श्येन चिती ?)। इसका उत्तर तो संस्कृत साहित्य के विद्वान ही दे सकेंगे।
चलते-चलते, शाहीन से उपजे कुछ पाजी शब्द। शाहीन बाग के संदर्भ में सोशल मीडिया पर शब्दों से खेल करने वाले विद्वानों ने बहुत खिलवाड़ भी की है और अनेक नए अपशब्दों को गढ़ा है। कुछ उदाहरण: - शाह-हीन बाग, श्वान बाग, दिशा-हीन बाग, तौहीन बाग।
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