Sunday, February 26, 2012

Search for the mother tongue of the world: Genes and words mutate in the same way पूरी दुनिया की मातृभाषा की खोज: जीन और शब्द एक तरह से बदलते हैं

Rules of the word game शब्दों के खेल के नियम




You have read in the last post that the pre-historic twin-kids Jibha-Bhashi are playing with words. The kids play with any word and turn it into its synonyms in different languages. The linguists call the kids’ word-game mad and unscientific. On the other hand the kids tell that their game follows a set of firm rules. When the kids disclose the rules of the game, it feels as if they are speaking about the laws of mutations in DNA in living organisms and about evolution of new organisms. Do words and genes evolve in the same manner? Read more..
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि अति-प्राचीन काल के दो जुड़वां बच्चे जीभा-भाषी शब्दों से खेल रहें हैं। बच्चे खेल-खेल में किसी भी भाषा के एक शब्द को उसी शब्द के अन्य भाषाओं में पर्यायवाची शब्दों में बदल देते हैं। बच्चों के इस शब्द-खेल को भाषा-वैज्ञानिक अ-वैज्ञानिक, पागलपन और खिलवाड़ बताते हैं। बच्चों का कहना है कि उनका यह खेल पक्के नियमों से बंधा हुआ है। जब बच्चे अपने खेल में शब्द-रचना के नियम बताते हैं तो हमें लगता है कि यह तो जीव जगत की जेनेटिक्स के वही नियम हैं, जिनसे  डीएनए में म्यूटेशन द्वारा प्रकृति में नए जीवों का विकास होता है। क्या शब्द और जीन के विकास की प्रक्रिया एक जैसी है? आगे पढ़िए...


Jibha said: “In the beginning, there were no words. There were natural sounds only. We mimicked the natural sounds of animals, birds, rain, air, etc. to express ourselves. We used chirps of sparrows to create words for sun and moon that also fly like birds. We used cuckoo’s coo for words for darkness and for caves and other dark hiding places. We made use of dog’s woof to create words for language, tongue, mouth, hunger etc. The sound of blowing air out of mouth was used in the word for air! The sound of water fall was used in words for water and river.  Whenever we coined a new word and asked others to repeat it, we found them having difficulties in repeating our words. Quite often some more words were created by slip of the tongue.”
I interrupted Jibha, “I had heard our ancestors naming frog and donkey by their vocal sounds but had no idea about the Sun, moon, air, water etc. Please elaborate and give examples.”

Bhashi told me not to stop Jibha midway. “Let her complete. From tomorrow, we shall play a lot and give you plenty of examples. We shall also walk again with ancestors in the time machine.”
“All right. Carry on.” I said. Jibha continued her speech. ,   
जीभा ने बोलना शुरू किया: “आरंभ में कोई शब्द नहीं थे। केवल प्राकृतिक ध्वनियाँ ही थी। हमने पशु-पक्षियों, वर्षा, वायु आदि की प्राकृतिक ध्वनियों की नकल को ही कुछ कहने के लिए प्रयोग किया। चिड़िया की च्य-च्य से हमने आकाश में उड़ने वाले सूरज और चाँद लिए शब्द बनाए। कुहु-कुहु करने वाली कोयल की आवाज़ को हमने उसके पंखों जैसा काला रंग बताने के लिए, और गुफा या अन्य छिपने के अंधेरे स्थान के लिए प्रयोग किया। कुत्ते की भोंक से भाषा, भूख, मुख, जीभ जैसे  शब्द बनाए। मुंह से हवा निकालने से होने वाली फू-फ्यू की ध्वनि से हमने वायु के लिए शब्द बनाए। और झरने की झर-झर-झराव से पानी के लिए सरि और स्राव शब्द। जब हम नए शब्दों को बाकी लोगों में बताते थे तो उनके द्वारा हमारे शब्दों को ठीक वैसा ही दोहराने में कठिनाई होती थी। शब्दों को दोहराते हुए जबान फिसलती थी और नए शब्द पैदा हो जाते थे।
मैंने जीभा को रोका: “मैंने पुरखों को मेंडक और गधे की आवाज़ से ही उनका नामकरण करते हुए सुना था, सूर्य, चन्द्र, वायु और जल को नहीं! जीभा कुछ उदाहरण तो दो और विस्तार से बताओ”।
भाषी ने कहा: "पहले जीभा की पूरी बात सुनिए। कल से हम खूब खेल कर उदाहरण भी बताएँगे और फिर से आपको टाइम मशीन में आदि-युग में भी ले चलेंगे।"
“ठीक है” मैंने कहा। जीभा ने फिर बोलना जारी रखा।     
“Once the words come out of our mouths, their breeding hasn’t stopped, and it shall never stop. Whenever, we hear a word, its image is created in our brain. The image of the word is born again from our mouth. A mistake in reproducing the words leads to new breeds of words. However, we have observed that while speaking, the tongue never slips in a random uncontrolled manner. There is always a method in slipping of the tongue. Having studied the methods of slips of tongue, we have made rules of our word-game. The rules of the game are as follows:
“एक बार शब्द पैदा होने लगे तो फिर शब्दों का प्रजनन आज तक नहीं रुका और कभी रुकेगा भी नहीं। क्योंकि जब भी हम किसी शब्द को सुनते हैं तो उसकी प्रतिकृति स्वयं ही हमारे मस्तिष्क में बन जाती है। और फिर मुख से दोबारा जन्म लेती है। दोहराते समय होने वाली गलतियों से नए शब्दों का प्रजनन होता रहता है। किन्तु हमने पाया है कि शब्दों का प्रजनन करते हुए फिसलती हुई या गलती करती हुई जबान, किसी भी दिशा में बिना कारण यूं ही नहीं फिसलती। जबान फिसलनें के भी तरीके होते हैं। जबान फिसलनें के तरीके समझ कर ही हमने नए शब्दों की रचना के अपने इस खेल के नियम तैयार किए हैं। ये नियम इस प्रकार हैं... 


Jibha-Bhashi were taking turns to narrate the rules. I thought it wise to take down the notes. I have now edited the notes and added some comments. I have also tabulated the rules of substitution-mutations in words. The table is given at the end of this write-up. So, here I present the ‘Jibha-Bhashi Rules of Mutations in Words’:  
जीभा-भाषी ने बारी-बारी से नियम सुनाने शुरू किए, और मैंने उनके कहे शब्दों के नोट्स लेना ही ठीक समझा। जीभा-भाषी के बताए हुए नियमों को मैंने अपनी समझ से संपादित कर दिया है और कुछ टिप्पणियाँ भी जोड़ दी हैं। सुविधा के लिए एक तालिका भी बनाई है जो अंत में दी गयी है। लीजिये पढ़िए जीभा-भाषी के शब्द-बदलने के सिद्धान्त:   
1.       Our mouth has a speech apparatus.
1.       हमारे मुख में शब्द पैदा करने का यंत्र है।
2.       Lips, tongue, palate, larynx and nose are the machine parts of the larger speech apparatus.
2.       होठ, जीभ, तालु, कंठ और नाक इस स्वर-यंत्र के कल पुर्जे हैं।
3.       Our brain co-ordinates not only the speech apparatus but also the facial expression and body gestures that add to the meaning of spoken words.
3.       हमारा मस्तिष्क स्वर-यंत्र के अतिरिक्त, बोलते समय चेहरे के भाव और शरीर के हाव-भाव का भी संचालन करता है जिससे बोली हुए शब्दों को बल मिलता है।
4.       Sometimes we face some errors in the process of co-ordination of the speech apparatus by brain. It is similar to the errors in co-ordination of other loco-motor functions. The neural connections between brain and speech apparatus in infants are not fully developed. The same is true of the neural connections of loco-motor functions of the infant. As an infant wobbles while walking, her tongue also wavers. Some other parts of the speech apparatus also falter in function. It results in insertion of a wrong sound in place of the original one, thus creating a new word.
4.       कई बार बोलते समय मस्तिष्क द्वारा स्वर-यंत्र के संचालन में कमजोरी आ जाती है। यह वैसा ही है जैसा कि मस्तिष्क द्वारा शरीर के अन्य अंगों के संचालन में होता है। शिशुओं में मस्तिष्क और स्वर-यंत्र के बीच स्नायु-तंत्रिकाओं के संबंध पूरी तरह से काम नहीं करते। शिशुओं के हाथ-पैरो के स्नायु संबंध भी ठीक काम नहीं कर रहे होते। जैसे बच्चा चलने में लड़खड़ाता है, वैसे ही उसकी जबान बोलने में लड़खड़ाती है और तुतलाती है। जबान ही नहीं, स्वर-यंत्र के अन्य कल-पुर्जे भी फिसल जाते हैं।   पुरानी ध्वनि के स्थान पर नई ध्वनि आ जाने से नया शब्द बन जाता है।
5.       At times, the tongue slips but not because of any error or weakness but due to inherent natural diversity in anatomy and physiology, e.g. some children will remain left- handed despite all training to make them the right handed. Similarly, some children may always speak differently from others. Some can repeat words and even entire sentences in reverse direction!  
5.       कई बार यह जबान की फिसलन मस्तिष्क में किसी कमजोरी के कारण नहीं होती बल्कि शरीर की नैसर्गिक विविधता के चलते होती है। जैसे  लाख सिखाने पर भी कुछ बच्चे दायें हाथ से न लिख कर बाएँ हाथ से ही लिखते हैं उसी तरह कुछ लोग एक विशेष तरह से बोलेंगे ही। कुछ बच्चे तो सुने हुए शब्द को ही नहीं पूरे वाक्य को भी उल्टा बोलते हैं।  
6.       Some children are dyslexic. Despite all training, they cannot write the correct sequence of letters in a word (remember the movie Tare Zamin Par?). Therefore, speech disorders in children also need to be taken in the same spirit as dyslexia. After all, like writing, speaking is also a sort of activity involving nerves and muscles.   
6.       कुछ बच्चों में लेख-दोष या डिस्लेक्सिया पाया जाता है। लाख कोशिश के बाद भी वे शब्दों के अक्षरों को ठीक क्रम में नहीं लिख सकते। (याद आयी तारे ज़मीं पर’?) अतः कुछ बच्चों में पाये जाने वाले वाक-दोष को भी स्वाभाविक क्रिया की तरह लिया जाना चाहिए; आखिरकार, बोलने की क्रिया भी तो लिखने की क्रिया की तरह ही एक स्नायु और मांस-पेशीयों  के संचालन की क्रिया है।
7.       When the tongue slips, it does so towards similar sounds, e.g. if one hears the guttural sound ka, there are chances that the tongue slips to create another guttural sound such as kha, ga or gha.     
7.       फिसलते समय, जबान प्रायः मूल ध्वनि से मिलते-जुलती उच्चारण वाली ध्वनि की ओर ही फिसलती है। जैसे अगर गले से निकलने वाले अक्षर क ख ग घ बोलने हैं तो बहुत संभव है की जबान क,,, घ पर आपस में ही फिसलेगी।
8.       Nevertheless, the slip of the tongue may not be as restricted in the previous example. Guttural sounds may be replaced by the palatals as they are generated at very close locations in the mouth. Even then there is certain pattern. Guttural ka, kha, ga, ghaare replaced by palatal ch, chh, ja and jha respectively. I have prepared a table of patterns of slippage of tongue (see at the end of this write up). It would have been great to make a 3-D table like the 3-D structure of our speech apparatus. However, I request you to manage with this table till I learn to draw 3-D tables and diagrams.  Having seen it, Jibha-Bhashi tell me that tongue can slip sequentially in either way in rows from left to right, or right to left. Similarly, it may slip in columns up or down. The slip of the tongue is one way-at one place only from fa to ha in Dravidian languages. Fa to ha is not allowed while playing with other languages.  
8.       फिर भी जबान की फिसलन एक वर्ग के अक्षरों तक सीमित नहीं होती यानी क ख ग घ आदि कंठ ध्वनियों में आपस में। कंठ-ध्वनि क बोलने की चाह में मुख में पास ही उद्ग होने वाली ध्वनि च भी निकल सकती है। प्रायः क-वर्ग के क,,, घ   च-वर्ग के च,,, झ से क्रमशः बदलेंगे, जैसे क और च,  ख और छ, ग और ज, घ और झ, क्योंकि मुख में उनका उद्ग काफी निकट स्थानों से होता है। हमने जबान फिसलने की पूरी तालिका बनाई है (नीचे इस लेख के अंत में)। अगर इस तालिका को मुख की रचना की तरह ही त्रि-आयामी बनाया जा सकता तो अच्छा था, लेकिन जब तक मैं त्रि-आयामी तालिका या चित्र बनाना न सीखलूँ  तब तक आपको इसी तालिका से काम चलाना होगा। जीभा-भाषी ने इस तालिका को देख कर बताया कि जबान एक ही पंक्ति में दायें से बाएं, या बाएँ से दायें फिसल सकती है या फिर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर। किन्तु, केवल एक स्थान पर जबान एक-तरफा फिसलती है: द्रविड़ भाषाओं में फ़ से ह बन सकता है, ह से फ़ नहीं। भरोपियाई भाषाओं में फ़ से ह नहीं बनेगा।             
9.       The labials are the most conservative sounds. The tongue slips internally among the labials but not between labials and gutturals, labials and palatals or any other category.
9.       जबान की सबसे कम फिसलन ’-वर्ग में मिलती है। क्योंकि ’-वर्ग में मुख्य रूप से जबान के स्थान पर होठों का प्रयोग होता है, अगर बोलना है तो निकलने वाली ध्वनि फ,, भ या म ही हो सकती है। यूं ही कभी प से क या प से त की ओर जबान नहीं फिसलती।
10.    Change or addition of diacritic vowels creates a new word.
10.    शब्दों में अक्षरों की मात्राएँ बदलने से, या नई मात्रा के लगने से  भी शब्द बदल जाते हैं।
11.    Diacritic changes are the most versatile and easy method to change words. Since the vowels originate in the larynx, there is not much role of tongue, palate, lips etc. On the other hand, the labials pa-groups are the most conservative and difficult to change sounds. 
11.    मात्राओं को बदलना या स्वरों को बदलना शब्दों के खेल का सबसे आसान काम हैं, क्योंकि स्वर और मात्राएँ सीधे कंठ से निकलते हैं और उनमें जीभ, तालु, होठो आदि अन्य कल-पुर्जो की आवश्यकता मुख्य नहीं होती। दूसरे छोर पर, होठों से निकलने वाले वर्ग के वर्णों को सबसे कम बदला जाता है।     
12.    A substituted sound in a word may get replaced with the original sound by a second mutation resulting in the restoration of the original word.
12.    एक बार किसी अक्षर के गलती से बदल जाने के बाद उसी तरह की नई गलती से पुराने शब्द की वापसी भी हो जाती है।
13.    At times there only a change of sequences of letters but not the letters per se. The anagram thus created may be a synonym, or a word with a new meaning.
13.    कई बार शब्द में कोई भी अक्षर नहीं बदलता किन्तु बोलते समय शब्द के अक्षरों का क्रम आपस में बदल सकता हैं। कई बार यह नया शब्द पर्यायवाची हो सकता है, या फिर बिलकुल उलट अर्थ वाला।
14.    There can be a total reversal of the sequence of letters.
14.    पूरे शब्द के अक्षरों का क्रम उलट सकता है।  
15.    Letters can be repeated to create a new word.
15.    कई बार शब्द में एक ही अक्षर को दोहरा कर नया शब्द बनाया जा सकता हैं। कई बार पूरे शब्द को भी दोहरा कर भी नया शब्द बनाया जा सकता है।
16.    A letter can be deleted to create a new word.
16.    किसी शब्द में से कोई अक्षर बाहर निकाल कर भी नया शब्द बन जाता है।
17.    Two words with different meanings can be joined to create a new word.
17.    दो विभिन्न अर्थों वाले शब्दों को जोड़ कर एक नए शब्द का निर्माण किया जा सकता है।


I was amazed by the Jibha-Bhashi rules. I have known that exactly the same rules are applicable to the evolution of new organisms through mistakes and modification in the sequence of DNA in genes. DNA, ie. Deoxyribonucleic acid is the macromolecule in all living beings and it codes for all the information required for their  structure and function. The language of DNA is based on four chemicals abbreviated as A, T, G, and C. Using these four letters, different three-letter words are created. The meanings of these 3-letter/ chemical words constitute our genetic code (Dr Hargobind Khorana had played a major role in decoding the genetic code.) The sentences of the language of life are made by arranging the 3-letter code words in various sequences.   
जीभा-भाषी की बातें सुन कर मैं हैरान हूँ। जीव जगत में डीएनए की प्रतिकृती बनाने में भी ठीक इसी तरह की गलतियों से नए जीवों का विकास होता है। डीएनए (DNA) यानी डीओक्सीराइबोन्यूक्लिक असिड  (deoxyribonucleic acid), हम सभी जीवधारियों की शरीर-रचना और शरीर–क्रिया के लिए आवश्यक सभी जानकारियों का खाका का महा-मोलीक्यूल। जीवन की सारी जानकारी इसमें रसायनों की भाषा में निहित है। डीएनए की कूट-भाषा के कुल चार अक्षर हैं, जिन्हें संक्षेप में ए, टी, जी और सी कहा जाता है। चार अक्षरों से तीन-तीन अक्षरों वाले शब्द बनाए जाते हैं। यही  तीन अक्षर वाले शब्द हमारा जेनीटिक कोड हैं। (डा॰ हरगोबिन्द खोराना ने जेनेटिक कोड की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही थी)। इन कूट शब्दों को जोड़ कर जीव की कोशिकाओं में वाक्यों की रचना होती है।
There is great similarity in the mutations that occur during replication in genes and words
जीन और शब्दों में प्रतिकृति बनते समय होने वाले बदलावों में पूरी समानता हैं:
(i)      Substitution: a letter is replaced by another. Although the enzymes engaged in replication of the DNA work with very high fidelity, there is generally one proofreading mistake per one million copies of DNA.  Words are also generally reproduced with high fidelity but mistakes do crop in.
(i) substitution/ प्रतिस्थापन:  एक अक्षर की जगह दूसरा। यूं तो जीव में डीएनए की प्रतिकृति बनाने वाले एंजाइम पूरा काम मुस्तैदी से करते हैं, कॉपी बना कर प्रूफ-रीड भी करते हैं फिर भी दस लाख प्रतिलिपियाँ बनाने में कम से कम एक बार तो प्रूफ की गलती हो ही जाती है। शब्द भी अकसर ठीक ही दोहराए जाते है किन्तु कभी गलती हो जाती है। 
(ii)     Repetition. Letter in a word may be repeated.  
(ii) repetition/ दोहराना: कभी अक्षर रीपीट किया.
(iii)    Modification. The chemical base, in words of DNA are not totally replaced but modified. It is like modifying letters in word by addition, deletion of vowels.   
(iii) modification/ रूपान्तरण:  डीएनए बेस में कोई हाइड्रोजन या मेथाइल ग्रुप लगाना या अक्षर में शब्द में मात्रा बदलना।
(iv)    Translocation of letters or whole words from one place to another.
(iv) translocation/ स्थानांतरण: क्रम बदलना।
(v) Addition of a letter
(v)  addition एक अतिरिक्त अक्षर जोड़ना। 
(vi)    Deletion of letter
(vi) deletion एक अक्षर हटाना 
(vii)   Inversion of letters
(vii) inversion शब्द को उलटा बोलना या लिखना।
(viii)  Reverse mutation. A mutation in a DNA causes a change of word. However a second mutation restores the original word.
(viii) reverse mutation  कई बार शब्द के बदल जाने के बाद उसी आक्षर में दोबारा परिवर्तन से पुराना अक्षर और शब्द वापिस आ जाते हैं। 
(ix)Silent mutation does not result in change of word. A neutral mutation results in change of word but not the change in its meaning.
(ix) silent mutation, neutral mutation  कभी-कभी बदलाव शब्द या जीन नहीं बदलते या फिर कोशिका की मशीनरी नए शब्द को मूल कोड-शब्द का पर्यायवाची ही समझती है।  
The first living organism is believed to have had only one gene. As the original gene started multiplying, each mistake in its replication generated genetic diversity that triggered evolution of new organism. All is well as long as the old and the new organism can crossbreed. However, as soon as the exchange of DNA between two organisms cannot  take place either due to sexual incompatibility or geographical isolation, there is evolution of a new species. The process has been going on for millions of years. In the ultimate analysis all living beings on our planet are progeny of the same first organism. Bacteria, insects, frog, horse, human, cauliflower or rose all have evolved through this process and all are genetically related to each other. The sequence of human and rice DNA is 50% similar, and that of chimpanzee and human is 99% similar. All humans on earth are progeny of the first human pair. Naturally, the entire human race must have had an original mother tongue. Like our DNA, our mother tongue must have undergone similar evolution to differentiate into thousands of languages and their dialects. New languages evolved whenever, different populations and societies, stopped exchange of words due to geographical, cultural or political reasons. Whenever, different linguistic groups had excessive interaction they, lost their language identities. The liguists are of the firm opining that the original mother tongue of the world has been lost for ever, However there is no reason to believe that the words of the original mother tongue of all humans still lives in the form of its words in some form or the other in various languages of the today’s word.        
जब धरती पर पहला जीव बना तब उसमें शायद एक ही जीन था। फिर उस आदि-जीन की प्रतिलिपियाँ बनती गयी, हर बार गलती होने से डीएनए में विविधता आती गयी। नए जीन और उसके कारण नए जीव बनते गए। जब तक नए जीव और पुराने जीव के बीच सैक्स से डीएनए का आदान-प्रदान चलता, तब तक ठीक रहता, किन्तु अगर भौगोलिक कारण या यौन-असंगति के कारण जीवों में आपस में डीएनए का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है, तब जीव की नई प्रजाति का विकास हो जाता है। अरबों वर्षों तक यह प्रक्रिया चलती रही। आज भी जारी है। इस जगत में सभी जीवधारी एक ही आदिम-जीव की संतान है। जीवाणु, कीड़े, मेंडक, घोड़े, मानव, गोभी, गुलाब सभी जीव इसी प्रक्रिया से बने हैं। इस प्रक्रिया के पद-चिह्न हम सब के डीएनए में मौजूद हैं। इंसान और चावल में डीएनए का क्रम 50% एक समान है। इंसान और चिम्पैंजी के डीएनए क्रम में 99% समानता हैं। सभी मानव एक ही आदि माता-पिता की संताने हैं। निश्चय ही सभी की आदिम भाषा एक रही होगी। धीरे- धीरे इस आदिम मातृभाषा में भी डीएनए की तरह ही क्रमिक परिवर्तन आता चला गया। जब-जब भौगोलिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक कारणों से विभिन्न समाजों में शब्दों का आदान प्रदान नहीं हो पाया तब-तब एक नई भाषा ने जन्म लिया। जब-जब दो अलग भाषा समूहों में शब्दों का आदान-प्रदान अत्यधिक बढ़ गया तब-तब उनकी भाषाओं की अलग पहचान समाप्त हो गई। भाषा वैज्ञानिकों का पक्का मत है कि हमारी आदिम-मातृभाषा लुप्त हो चुकी है। किन्तु  ऐसा मानने का कोई ठोस कारण नहीं है कि अभी भी सभी भाषाओं में पूरे संसार की आदिम मातृभाषा के शब्द किसी न किसी रूप में मौजूद न हों।
While writing for this blog, one is actually sitting in an imaginary time machine, and playing an imaginary word game of the original mother tongue. While playing this game. It would be absolutely wrong to imagine that the actual path of evolution of words would have been exactly the same as being played by Jibha-Bhashi. However, it is important to note that the word game being played by Jibha-Bhashi is like a mathematical theorem bound by firm rules. Therefore, it seems that these phonetic games or word-theorems may show us some ways to develop computer algorithms for all possibilities of various transformation of any given word. I am sure that the algorithm to be based on Jibha-Bhashi game will light up the path of evolution of words. It will provide us a tool to dig for fossils evidences of evolution of words in literature and dialects of different languages and of the world. If that truly happens, we will be able to do the mapping of DNA of all languages of the world, and reconnect the lost links between all the language families.
इस ब्लॉग में, हम एक काल्पनिक टाइम मशीन में बैठ कर, कल्पना की उड़ान से आदि-भाषा का काल्पनिक खेल खेलते रहें हैं। खेलते हुए यह सोचना बिलकुल ही गलत होगा कि शब्दों की वास्तविक यात्रा भी ठीक इसी काल्पनिक राह पर चली होगी, जैसे जीभा-भाषी खेल रहें हैं। किन्तु यह बात महत्वपूर्ण है कि जीभा-भाषी शब्द और अक्षरों से इस तरह खेल रहे हैं जैसे कि कड़े नियमों से बंधा हुआ गणित का कोई विद्यार्थी प्रमेय सिद्ध कर रहा हो। इस लिए इस खेल को देख कर ऐसा लगता है कि शायद जीभा-भाषी का फोनेटिक-खेल या शब्द-प्रमेय हमें कुछ कंप्यूटर एल्गोरिदम विकसित करने की दिशा दिखा दे, जिससे हमें किसी भी शब्द के विभिन्न रूपों में बदलने की सभी संभावनाओं का पता लगा सकेंगे। मेरा विश्वास है कि जीभा-भाषी के शब्द-विलास पर आधारित अलगोरिदम शब्दों के क्रमिक-विकास के यात्रा-मार्ग को आलोकित करेगा। इससे हमें विभिन्न भाषाओं के साहित्य और बोलियों में शब्दों के क्रम-विकास के छुपे हुए फोसिल-साक्ष्यों को खोजने का औज़ार मिलेगा। अगर सच में ऐसा हो पाया, तब हम विभिन्न भाषाओं में सभी मानवों की आदि-मातृभाषा के बिखरे मोतियों को चुन सकेगें, और भाषाओं के डीएनए की मैपिंग से पूरे विश्व के सभी भाषा-परिवारों के लुप्त आपसी सम्बन्धों को खोज पायेंगे।  
To be sure, it is gigantic task which will be possible only with a team work of specialist in different areas, e.g. phonetics, phonology, experts in matching DNA through bioinformatics, experts in literature in different languages and dialects,  people who love reading literature, lexicographers, mathematicians, software professional, and general citizen who are curious about words.  I don’t find myself fit for any specialist role in this area. All that I know is that I am fully enjoying the Jibha-Bhashi phonetic word game and time-travel with them. If you feel that you are also enjoying the game, we may explore the possibility of moving ahead in the direction of making a team to reach toward this goal.
निश्चय ही यह विशाल कार्य जिस प्रकार के आपसी सहयोग से ही संभव हो पायेगा उनमें विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले अनेक गुणी जन सम्मिलित होंगे, जैसे सभी ध्वनियों में  बदलाव की फोनेटिक-संभावनाएं  बताने वाले फोनेटिक और फोनोलोजी के विद्वान, अक्षरों के क्रम की बायो-इनफोरमैटिक पद्धति से तुलना करने वाले विद्वान, विश्व की विभिन्न भाषाओं, उनकी आंचलिक बोलियों और साहित्य में रूचि रखने वाले गुणी और रसिक जन, कोशकार, गणितिज्ञ, सॉफ्टवेयर-विद और स्वाभाविक जिज्ञासा रखने वाले सभी नागरिक। इस पूरे कार्य में, मैं स्वयं को किसी तरह योग्य नहीं पाता सिवाय इसके कि मुझे जीभा-भाषी का ध्वनियों पर आधारित शब्दों का खेल सुनने, देखने और खेलने में आनंद आ रहा है। अगर आप को भी इसमें आनंद आ रहा है तो हम एक टीम बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की संभावनाएं तलाश सकते हैं।                              



Table1. Table of Permissible Mutations
 Letters can change in either direction in the same row or in the same column. F to h is allowed only in one direction. The word game in my blog is bound by the rules in this table. I haven’t come across any exception thus far. It has not been possible for me to record all the sounds. I welcome all suggestions to improve this table.
तालिका 1. शब्दों के अक्षरों में अनुमेय म्यूटेशन (जायज़ बदलाव) की संभावनाएं। शब्दों में म्यूटेशन के समय अक्षर किसी पंक्ति में दायें से बाएँ, या बाएँ से दायें दिशा, या फिर उसी कॉलम में ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर बदल सकते हैं। केवल एक जगह फ़ से ह बन सकता है, ह से फ़ नहीं। मेरे ब्लॉग शब्दों के डीएनए पर शब्दों का खेल बिना किसी अपवाद के इस तालिका में दिये नियमों से बंध कर खेला जा रहा है। अभी सभी ध्वनियों को ठीक से अंकित कर पाने में मैं असमर्थ हूँ। इस तालिका को संशोधित करने के लिए आपके सुझावों का स्वागत है। 


1
2
3
4
5
6
7
8
9
A
au
o

pa
pha
ba
 bha
ma

B
uu
u


fa
va
व्ह
wa


C
aa
a
अः
H

ha
ya
ra
 RRi
 RRI
D

i
e


ja



E

ii
ai  


ज्य
jya



F





ज्ञ
GYa



G



qa
Kha
Ga



H


क्ष
xa
ka
kha
ga
gha
~Na
ra
I



cha
Cha
ज  /
ja/za
jha
~na

J


श्र
shra  
sha
Sha
sa
ha


K







अं
.n

L (पंक्ति I के पीछे)
(behind row I)


त्र
tra
ta
tha
da
dha
na
ma

M (पंक्ति L के पीछे)
(behind row L)



Ta
Tha
Da
Dha
Na

N





~Na
Dha
la

O







ra


17 comments:

  1. Excellent and a very scientific explanation regarding evolution of words

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Chitra. Let us keep traveling with the ancestors in search of the origin of words.

      Delete
  2. ध्वनियों के कुछ म्यूटेशन पर आपने ध्यान दिया होगा, कुछ लोग अभ्यास दोष के कारण "स" को "श" या "श" को "स" उच्चारित करते हैं। इसी तरह कुछ लोग वाणी दोष के कारण "स" का उच्चारण "स्ह" या "फ़्ह" की तरह करते हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स का उच्चारण फ़्ह की तरह करने वाले लोग मिले हैं। एक फिल्म में शाहीद कपूर अभिनीत पात्र इसी तरह बोलता था। किन्तु मुझे शब्दों में म्यूटेशन के ऐसे उदाहरण नहीं मिल रहे।

      Delete
    2. मै कई बार स को श और श को फ बोल जाता हूं। बचपन में मुझे ऐसा कहने कि लिए चिढ़ाया भी जाता था, लेकिन इधर पांच सालों से किसी ने इस बात के लिए मुझे नहीं टोका। हालांकि मुझे कभी अहसास भी नहीं हुआ कि में स को फ या श कब बोल रहा था।

      Delete
    3. अनेक लोग स को श या श को स बोलते हैं. किन्तु श /स को फ बोलने के उदहारण कम ही हैं. आपका इस तरह का साक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है.

      Delete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. ....सभी मानवों की आदि-मातृभाषा के बिखरे मोतियों को चुन सकेगें, और भाषाओं के डीएनए की मैपिंग से पूरे विश्व के सभी भाषा-परिवारों के लुप्त आपसी सम्बन्धों को खोज पायेंगे।....


    Beautiful

    ReplyDelete
  5. My thinking .......

    so ............ Our DNA - Mind - KUNDALINI - 'AKSHAR' ( VARNA ) .............. ALL RELATED AND makes effect on each other !

    ReplyDelete
  6. sir , U can may be Big help here

    https://www.facebook.com/pages/Indus-Script-Dictionary/152454471503106

    ReplyDelete
  7. Please, take a look at my well researched, documented and copiously illustrated study:
    "Alphabet or Abracadabra? - Reverse Engineering The Western Alphabet"

    Freely available in printable pdf format:
    https://dl.dropbox.com/u/4615372/Alphabet/Alphabet%20Booklet%20PDF2.pdf"

    "Alphabet or Abracadabra? - Reverse Engineering The Western Alphabet"
    A groundbreaking discovery:
    3700 Years ago the Western alphabet sequence of characters (abecedary) got copied from a Pre-Sanskrit alphabet (abugida).
    In spite of it looking quite disorderly the Western alphabet letter sequence (abecedary) follows an orderly pattern invented more than 3700 years ago in what is now Pakistan's and India.
    This study traces how the Western "abecedary" was originally modelled after a Pre-Sanskrit, early Brāhmī alphabet (abugida).
    During the copy process the copier made two errors which resulted in the current apparent disorder of the Western 'ABC' character sequence...
    The discovery of those errors enabled me to date and reconstruct when and how the current Western "abecedary" developed.

    - Wim (William) Borsboom

    Facebook site:
    https://www.facebook.com/AlphabetOrAbracadabra?ref=ts&fref=ts

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Mr Borsboom. I have just now read your very interesting study. What an amazing convergence of interests with almost same conclusions about the origin of ABCD sequence! I feel very happy. I have been working on this idea since 2003. I sent this paper to some reputed journals for publication. However having being rejected by the editors, I finally put it on this blog.

      Delete
  8. Dear Rajendra,

    We so think alike, it is amazing.... your story about the kids and their langugae... I actually did that when I was very young... even with my mom...
    Next time when I visit India, we should meet, I usually go to Mumbai first (have many friends there) and also to Khajuraho (also many friends)... Of course next time I need to visit Harappan sites and the surroundings of New Delhi... (I used to have friends there).

    ReplyDelete