मान लीजिये कि आप दीवाली को पैदा हुए थे और अपना बर्थडे भी शुभ दिन
दीवाली को ही मनाते हैं। इस साल 2014 ई॰ में दीवाली 23 अक्तूबर को है। अतः प्राचीन
भारतीय पंचांग के अनुसार आप का बर्थडे इस साल दीवाली वाले दिन 23 अक्तूबर 2014 को
सूरज उगने से शुरू होगा। लेकिन यदि आप 23 अक्तूबर को पैदा हुए थे तब अंतर्राष्ट्रीय मानक पंचांग के अनुसार 22 अक्तूबर की आधी रात 12 बजे 23 अक्तूबर शुरू हो जाएगा।
23 अक्तूबर को जन्म दिवस वाले अनेक बच्चे और बड़े 22 की रात के 12 बजे मोमबत्तियाँ
बुझा कर और केक काट कर अपना बर्थडे मनाएंगे। अनेक हिन्दू पुनरुत्थानवादी नेताओं, राष्ट्रवादियों, और शिक्षा बचाने की ध्वजा
उठाने वालों को बर्थडे पर मोमबत्तियाँ बुझाना पसंद नहीं है। कारण स्पष्ट है--
प्रकाश ज्ञान और विवेक का प्रतीक हैं; अंधकार अज्ञान और
अविवेक का। फिर शुभ दिन को प्रकाश बुझाना अशुभ है। सही बात है, भारतीय परंपरा में तो हर शुभ काम दीपक जलाने से ही शुरू करते हैं, चाहे उस समय आसमान पर सूरज क्यों न चमक रहा हो। ओलंपिक खेलों में भी लाखों
वाट की रोशनी से जगमगाते स्टेडियम में मशाल से एक विशाल ज्योति जलाई जाती है। हम
यह जानना चाहते हैं कि बर्थडे में मोमबत्ती बुझाने की यह ‘अशुभ’ परंपरा कहाँ से आयी? चलिये एक बार फिर पुरखों के साथ एक काल्पनिक यात्रा को चलते हैं और देखते
हैं कि बर्थडे को दीपक बुझाना कैसे शुरू हुआ होगा।
हम हजारों साल पीछे पहुँच गए हैं। हमारे भील-शिकारी घुमंतू पुरखों ने
अभी दुनिया के पहले गाँव बसाये हैं। घुमंतू पुरखे प्रायः कंद, मूल और फल ही खाते
हैं। लेकिन गाँव बसाने के बाद खाना भी पकाने लगे हैं। खाना पकाना कोई आसान काम
नहीं हैं। इसके लिए आग जलाना काफी नहीं है, आग जलती रहे
उसके लिए लगातार ईंधन डालना पड़ता है। आग को हवा देनी होती है। जलता हुआ चूल्हा
मानव समाज के लिए एक बहुत बड़ी तकनीकी उपलब्धि है। पकाने के लिए बर्तन भी चाहियेँ।
गाँव में एक बच्चा है। नाम है राजू। राजू की माँ रोज चूल्हा नहीं जला पाती। किन्तु
कल राजू का हॅप्पी बर्थडे है। अतः आज चूल्हा जरूर जलेगा। हमारे पुरखे जन्म दिन याद
रखते हैं। उन्हें सूरज, चाँद, चाँद की कलाओं, और तारों की स्थितियों को देखते
रहने से जन्म दिन याद रहता है। वास्तव में जन्म का दिन तो नहीं उसके पास वाली
पूर्णिमा या अमावस ठीक याद रहते हैं। अधिकतर लोग जन्म दिन पूर्णिमा को मनाते हैं।
राजू की माँ उसके जन्म दिन पर हमेशा हलवा केक बेक करती है / पकाती है। राजू को
अपने जन्म दिन का इंतजार रहता है। उसे हलवे का इंतजार रहता है। माँ राजू के जन्म
दिन से पहली रात को हलवा पका चुकी है। राजू उसे रात को ही खाना चाहता है। लेकिन
राजू को सुबह तक इंतजार करना होगा। तिथि सूरज उगने से शुरू होती है। अतः जन्म का
दिन तो सुबह है। आज की रात, राजू को नींद नहीं आ रही।
राजू दिये जला कर बैठा है। लकड़ी की तीलियों की नोक के ऊपर जंगली-अरंडी के पौधों के
तैलीय बीज लगे हैं। हर बीज बहुत देर जलेगा। यही दुनिया के पहले दीपक हैं। राजू
सारी रात लगातार हलवे के बर्तन को देख रहा है। बार-बार
हलवे के बर्तन के चक्कर लगा रहा है। आखिर किसी तरह पौ फूटी। सूरज उगने को है। राजू
का बर्थडे आ गया है!
“माँ, सुबह हो गयी। अब मैं
हलवा-केक खा लूँ?”
“हाँ बेटा, पर पहले दिये तो
बुझा ले। ये दिये कल रात को फिर काम आएंगे। ज़ोर से फूँक मार।”
राजू ज़ोर से फूँक मार कर सारे दिये बुझाता है। और अपना बर्थडे केक
काटता है। राजू की बहनें जीभा और भाषी भी जग गईं हैं। माँ सभी को हलवा केक खिलाती
हैं।
माँ गाती है: शुभ प्रज दिव राजू s s s s !
दिये बुझाने, केक काटने और मंगल गाने की परंपरा अब भी जारी है।
जीभा और भाषी हलवा केक खाने के बाद फिर से शब्दों का खेल में जुट जाती
हैं। आइये सुनें वह क्या खेल रहीं है, क्योंकि यह खेल मानव समाज की भावी पीढ़ियाँ आने
वाली कई सदियों में खेलने वाली हैं ---
· प्रज > पर्ज > पर्द > बर्द > बर्थ
· दिव > देय > दे > डे
· शुभ > हुभ > हुप > हपु > हपी > हॅप्पी
· शुभ प्रज दिव > हॅप्पी बर्थ डे
· ज्वाला > च्वाला > च्याला > चहाला > चूल्हा
· ज्वाला > ह्वाला > हवला > हलवा
· ज्वाला > ज्वालाई > हवालइ > हलवाई
· ज्योतिर > च्योतिर > क्योतिर > क्योतिल > क्योदिल > क्यांदिल > कंदील > कैन्डल
· पाकः (पकाना) > पाके > बाके > बेक
· पाकः > पाककः / पाकुकः (रसोइया)
> कुक cook > केक cake
भारतीय समय गणना और परंपरा में नया दिन नए सूरज के उगने से शुरू होता है। वास्तव में, एक समय ऐसा था जब पूरी दुनिया में यही व्यवस्था चलती थी। उस प्राचीन समय के भारत की कल्पना कीजिये जब ज्ञान-विज्ञान का सूर्य केवल भारत में ही उगा था। जब भारत में सुबह सूरज उगता था, यानी नई तिथि/ नया दिन / शुरू होता था, उस समय इंग्लैंड और पश्चिम यूरोप में लगभग आधी रात होती थी। मैं नहीं जानता कि क्या आधी रात को नई तिथि बदलने के पश्चिमी रिवाज का सम्बंध इस बात से था कि पश्चिम में आधी रात के समय भारत में सूरज उगता था और तिथि बदलती थी!*
सूरज हर दिन अलग समय पर उगता है, अलग समय पर अस्त होता है। अतः प्राचीन पंचांग के
मानने वालों के लिए, एक ही स्थान पर रहते हुए भी, हर दिन का आरंभ अलग समय पर होता था / है, और
अंत भी अलग समय पर। अगर किसी देश में आधी रात को नई तिथि आरंभ करनी है तब आधी रात
(यानी सूरज छिपने से ले कर सूरज उगने के समय का ठीक आधा) भी हर रोज अलग समय पर
होगी। अतः नई तिथि शुरू होने के लिए कोई मानक समय की आवश्यकता रही होगी। आधुनिक
समय में, समय का अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण हुआ है। पूरी दुनिया
में कहीं भी सूरज कभी छिपे, कभी उगे, लेकिन हर समय ज़ोन में आधी रात वहाँ के 12 बजे मानी जाती है, और उसी समय से नई तिथि
भी शुरू हो जाती है।
बर्थडे पर कोई दीपक जलाए या मोमबत्ती बुझाये, बर्थडे रात के 12
बजे मनाये या फिर सूर्योदय पर, इससे न हमारे देश को कोई हानि है न धर्म को कोई खतरा है। जैसे बंदरिया
अपने मरे हुए बच्चे को हफ्तों छाती से चिपकाए रहती है, उसी
तरह मानव मन बस यूं ही बेकार की पुरानी परम्पराओं को चिपकाए चलता है – ये कालग्रस्त परम्पराएँ जन्म, मरण, विवाह के समय होने वाले कर्मकांड भी हो सकते है, भारत-पाक वागाह सीमा पर रोज शाम होने वाली शत्रु को आँख दिखाने की रस्म भी
हो सकती है, संसद के बजट सत्र में आने के लिए
राष्ट्रपति की घोड़ा-बग्घी की सवारी भी हो सकती है, या
राष्ट्रपति की लिमोसीन कार को घेरे घुड़सवार अंगरक्षक भी। हमारे अंगों और मन से
चिपके सांस्कृतिक चीथड़ों की सूची बहुत लंबी है। लेकिन फटे-पुराने देसी चीथड़ों को
चिपकाए रखने का आग्रह और किसी भी तरह के विदेशी चीथड़ों का विरोध, किसी स्वस्थ मानसिकता के लक्षण नहीं हैं।
*शायद आपको याद हो कि आजादी के 52 साल बाद भी भारत की संसद में एक
ब्रिटिश परंपरा लागू थी। 1999 तक, हर वर्ष, बजट शाम को 5 बजे पेश किया गया। ऐसा
इसलिए किया जाता था क्योंकि अंग्रेजों के समय में लंदन में दिन के 12 बजे वहाँ की
संसद का सत्र शुरू होता था। उस समय भारत में शाम के 5 बजते हैं। लंदन और दिल्ली
में बजट एक साथ पेश हो। इसलिए दिल्ली में शाम को बजट शाम को 5 बजे पेश होता था।
अंग्रेज़ 1947 में भारत से चले गए पर हम बिना सोचे 52 साल बाद तक उनका आदेश मानते
रहे! कभी भारत में तिथि सूर्योदय पर बदलती थी और लंदन में उस समय आधी रात होती थी।
क्या आधी रात को तिथि बदलने की आधुनिक व्यवस्था का अर्थ है कि यूरोप की अवचेतन
स्मृति में वह पुरानी भारतीय व्यवस्था अब भी मौजूद है??