
क्या रावण के दस सिर और बीस हाथ थे? नहीं, निश्चय ही
नहीं; क्योंकि मानव शरीर एक परिपूर्ण रचना है, और दस सिरों की बात छोड़िए एक की जगह दो सिर भी इस शरीर रचना के डिज़ाइन
में फिट नहीं हो सकते। गर्भावस्था में किसी गड़बड़ी के कारण, अगर
कोई दो सिर वाला बच्चा पैदा हो जाता है, तो वह अधिक दिन नहीं
जीता। तो फिर रावण के दस सिरों का क्या रहस्य है? दस-सिर
और बीस हाथों वाले रावण की यह रोमांचक कहानी हम
भारतीयों को बचपन में दूध के साथ ही पिला दी जाती है। रावण को हम दशानन कहते हैं और दशहरे के दिन रामलीला में रावण के दस सिर वाले पुतले को
जलते हुए देखने का आनंद लेते हैं। वास्तव में रामलीला की परंपरा लगभग 450 वर्ष पुरानी है। सबसे पहले गोस्वामी तुलसीदास ने काशी में रामलीला शुरू की
थी। यह रामलीला
उनके द्वारा लिखे ग्रंथ श्रीरामचरितमानस पर आधारित थी। आज भी यह परंपरा जारी है। तुलसी
रामायण में राम-रावण युद्ध में राम बार-बार रावण के सिर काटते हैं, लेकिन हर बार कटे हुए सिर के स्थान पर नया सिर उग जाता है। अंत में राम को
बताया जाता है कि रावण की नाभि में अमृत है, जब तक वह अमृत
नहीं सूखेगा, तब तक रावण के कटे हुए सिर फिर उगते रहेंगे।
राम तीर मार कर पहले रावण की नाभि का अमृत सुखाते हैं, तब जा
कर रावण को मार पाते हैं! यही रोचक कहानी अभी तक चल रही है। इसे इस तरह समझा जा सकता
है कि सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन
जैसे मायावी मनुष्य न थे, न होते हैं, न
होंगे, फिर भी हम रोमांचक मनोरंजन के लिए उन्हें पसंद करते हैं।
समस्या यह है कि हम सुपरमैन, स्पाइडरमैन आदि की आधुनिक
कहानियों को सच नहीं मानते, किन्तु रामायण के अलौकिक
प्रसंगों को पूरी धार्मिक श्रद्धा के साथ सच मानते हैं! उन पर अविश्वास करने का तो
प्रश्न ही नहीं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर भगवान अवतार लेते हैं, तो उन्हें भी लीला करते हुए, प्रकृति के नियमों का
पालन करना पड़ता है। भगवान रोते हैं, उन्हें चोट भी लगती है,
वे मूर्छित भी होते हैं, और दवा समय पर न
पहुँचने पर भगवान की जान को भी खतरा होता है। किन्तु जरा सोचिए कि अगर
प्रकृति के नियम भगवान पर भी लागू होते हैं, तो फिर राक्षसों
को उनसे कैसे छूट मिल सकती है? सबसे पहली रामायण महर्षि वाल्मीकि ने लिखी। माना जाता है कि वाल्मीकि श्री राम के समकालीन थे। तुलसी रामायण उसके हज़ारों
साल बाद लिखी गयी, और इस बीच सैकड़ों पीढ़ियों में कहते-सुनते
मूल कथा में बदलाव आते रहे। सबसे प्राचीन वाल्मीकि रामायण को पढ़ने से कुछ रोचक
बातें सामने आती हैं। वाल्मीकि जी ने रावण के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया है
-- रावण, लंकेश, लंकेश्वर, दशानन, दशग्रीव, शकंधर, राक्षससिंह, रक्षपति, राक्षसाधिपम्, राक्षसशार्दूलम्, राक्षसेन्द्र; राक्षसाधिकम्, राक्षसेश्वरः, लंकेश,
लंकेश्वर। कुछ गिनती के स्थानों को छोड़ कर लगभग जहाँ कहीं भी
वाल्मीकी ने रावण के लिए दस-सिर सूचक -- दशानन, दशग्रीव या
दशकंधर जैसे शब्दों का प्रयोग किया है, वहाँ हम पाते है कि
रावण अपने मंत्रियों से घिरा हुआ बैठा है। प्रायः अन्य स्थानों पर रावण के लिए
राजन, रावण, राक्षसेंद्र, लंकेश, लंकेश्वर शब्दों का प्रयोग हुआ है। वाल्मीकि
रामायण में अनेक प्रसंगों में रावण के मंत्रियों के नाम बिखरे हैं। रोचक बात है कि
रावण की मंत्रिपरिषद् में नौ मंत्री है (नवरत्न परंपरा!) और ये सभी मंत्री रावण के
भाई, भतीजे, मामा, नाना आदि सगे रिश्तेदार है --
1. कुंभकर्ण (भाई), 2. विभीषण (भाई), 3. महापार्श्व
(भाई), 4. महोदर (भाई), 5. इंद्रजित (बेटा), 6. अक्षयकुमार (बेटा), 7. माल्यवान (नाना का भाई),
8. विरूपाक्ष
(माल्यवान का बेटा, रावण का सचिव), और 9. प्रहस्त (मामा, प्रधान मंत्री)।
बहुत संभव है कि ये सभी मंत्री जो निकट के रिश्तेदार थे, शायद देखने में भी एक जैसे लगते होंगे!
यानी रावण सभा में एक नहीं दस रावण दिखते होंगे! जब रावण की घायल बहन शूर्पनखा
रावण की राज्य सभा में जाती है, तो वाल्मीकि लिखते हैं कि
रावण मंत्रियों से घिरा बैठा था। "उसके बीस भुजाएँ और दस मस्तक थे" विंशद्भुजं दशग्रीवं दर्शनीयपरिच्छदम् (वा॰ रा॰ 3/32/8)। नाक-कान काटे जाने से आहत एक बहन
जब अपने एक भाई को शत्रु से बदले के लिए उकसाने के लिए जाती है, तो महल में एक के स्थान पर दस भाई-भतीजों को देख उसे स्वाभाविक ही अपनी
रक्षा के तैयार दस सिर और बीस भुजाएँ दिखती हैं। इसी तरह जब हनुमान को बंदी बना कर
रावण की मंत्री परिषद के सामने पेश किया जाता है, तब हनुमान
देखते हैं कि रावण के दस सिर हैं-- शिरोभिर्दशभिर्वीरं भ्राजमानं महौजसम् (वा॰ रा॰ 5/49/6)। किन्तु, यह बताना महत्वपूर्ण है कि इससे ठीक पहली
रात को जब सीता की खोज कर रहे हनुमान रावण के अन्तःपुर में घुसते हैं, और रावण को पहली बार देखते हैं, तो वहाँ स्पष्ट रूप
में, बिना किसी भ्रम के, शयन कक्ष
में सो रहे रावण का एक सिर और दो हाथ ही देखते हैं (वा॰ रा॰ 5/10/15)। वाल्मीकि ने वहाँ सोते हुए का
रावण और उसके अंतःपुर का विस्तृत वर्णन किया हैं। पूरे अध्याय में वाल्मीकि ने एक
बार भी रावण के लिए दशानन, दशकंधर, दशग्रीव
जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया। इस अध्याय में रावण
के लिए शब्द हैं: राक्षसाधिपम्, रावणं, राक्षससिंह, राक्षसशार्दूलम्
(राक्षसों में शेर), राक्षसेन्द्र, राक्षसेश्वरः, रक्षःपतेः/ राक्षसपति, राक्षसाधिकम्।
रावण की नाभि में अमृत का रहस्य
तुलसी रामचरितमानस के अनुसार रावण की नाभि में अमृत कुंड
था। अतः युद्ध के मैदान में जैसे ही रावण का कोई सिर कटता था, वैसे ही एक नया सिर उसके स्थान पर आ जाता
था। मेरा निवेदन है कि हम नाभि का अर्थ शरीर में गर्भ नाल के निशान वाले स्थान को
न माने। संस्कृत में नाभि के 18 अर्थ
है, जिनमें एक अर्थ "निकट की रिश्तेदारी, बिरादरी, जाति आदि का समुदाय" भी है। शायद इस अर्थ
का उत्स यह है की एक माता के सभी बच्चे गर्भ में किसी समय अपनी-अपनी नाभि-नाल से माता
से जुड़े हुए थे। अतः वे नाभि या ‘सनाभि’ कहलाते हैं। अतः 'रावण की नाभि में अमृतकुंड'
का केवल इतना ही अर्थ लगाया जाना चाहिए
कि जैसे ही रावण का कोई सिर कटता था यानी जैसे ही कोई मंत्री मरता था, तुरंत रावण के परिवार का कोई अन्य सदस्य उसका स्थान ले लेता था। इस तरह सिर कटते गए, नए सिर आते गए। जब राम ने सभी
रिश्तेदार मंत्रियों-सेनापतियों का मार दिया, तब ही रावण और
उसकी सेना का मनोबल गिरा और उसे मारा जा सका। वाल्मीकि रामायण में हमें रावण के उन
तमाम रिश्तेदारों (उपमंत्रियों और सेनापतियों) की सूची मिलती है जिनसे समय-समय पर
रावण ने मंत्रणा की या जिन्हें विशेष ज़िम्मेदारियाँ दी। रावण के ये वैकल्पिक सिर
थे – त्रिशिरा (बेटा), देवांतक (बेटा), नरान्तक (बेटा), अतिकाय (बेटा), कुम्भ (भतीजा -- कुंभकरण का बेटा), निकुंभ (भतीजा -- कुंभकरण का बेटा), जंबूमाली (मामा
प्रहस्त का बेटा), दुर्मुख, वज्रद्र्न्ष्ट्र, वज्रहनु, शुक, सारण, धूम्राक्ष, आदि।
दशानन और दशरथ
रावण की 1+9
मंत्रिपरिषद् की तरह राम के पिता और अयोध्या के राजा दशरथ की मंत्रिपरिषद्
में भी नवरत्न व्यवस्था थी-- आठ मंत्री (वा॰ रा॰1/7/3), और एक पुरोहित थे। एक अतिरिक्त पुरोहित (वा॰ रा॰1/7/4) और आठ अतिरिक्त मंत्री (वा॰ रा॰ 1/7/5) भी थे। लेकिन रावण की व्यवस्था
के विपरीत दशरथ के मंत्रियों में उनके किसी भी रिश्तेदार होने की सूचना हमें वाल्मीकि
रामायण में नहीं मिलती। दशरथ का अर्थ 'दस रथों वाला' माना जाता है। किन्तु यदि दशानन / दशमुख का अर्थ 1+9 नवरत्न मंत्रियों वाला राजा है, तो हमें यह सोचना
होगा कि क्या दशरथ का भी कोई वैकल्पिक अर्थ हो सकता है? संस्कृत
में रथ शब्द के अनेक अर्थ हैं। रथ का प्रमुख अर्थ तो वाहन है, किन्तु रथ के अन्य अर्थों में 'शरीर', 'अवयव, ‘अंग’, ‘सदस्य’, ‘योद्धा’, ‘नायक’ भी हैं। अतः दशरथ का अर्थ 'दस-सदस्य वाली (राज्य व्यवस्था)' भी हो सकता है!
क्या उस युग के दो प्रमुख राज्यों अयोध्या और लंका में, अधिनायकवादी
राजतंत्र से कुलीनतांत्रिक राजतंत्र में परिवर्तन के प्रयोग चल रहे थे। दशरथ के
बाद का रामराज्य तो जनवादी राजतंत्र था ही।
आप क्या
सोचते हैं?
27 सितम्बर 2017 को जोडी गई टिपण्णी-
देवी दुर्गा के आठ या दास हाथ हैं. हर हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र हैं. उनके दो हाथों के अतिरिक्त अन्य छह हाथ शायद उनके पति शिवजी और पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के हैं. बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय रचित राष्ट्रगीत वन्देमातरम में भारतमाता के 30 करोड़ सिर और 60 करोड़ हाथ बताये गए हैं . "त्रिंशतिकोटि कंठ कल-कल निनाद कराले, द्वि-त्रिंशतिकोटि भुजै धृत खर करवाले." ज्ञातव्य है कि वन्दे मातरम गीत के लिखे जाने तक अविभाजित भारत की जनसँख्या 30 करोड़ थी.
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27 सितम्बर 2017 को जोडी गई टिपण्णी-
देवी दुर्गा के आठ या दास हाथ हैं. हर हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र हैं. उनके दो हाथों के अतिरिक्त अन्य छह हाथ शायद उनके पति शिवजी और पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के हैं. बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय रचित राष्ट्रगीत वन्देमातरम में भारतमाता के 30 करोड़ सिर और 60 करोड़ हाथ बताये गए हैं . "त्रिंशतिकोटि कंठ कल-कल निनाद कराले, द्वि-त्रिंशतिकोटि भुजै धृत खर करवाले." ज्ञातव्य है कि वन्दे मातरम गीत के लिखे जाने तक अविभाजित भारत की जनसँख्या 30 करोड़ थी.
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