The english version 'The Meluha of Mohenjo Daro'
is given at the end of this article.
मोहनजोदारो
के मेलूहा
अमीश त्रिपाठी ने 'मेलूहा के मृत्युंजय' (The
Immortals of Meluha) और इसी क्रम के दो
और उपन्यास लिखे हैं। दो वर्षों में, इन तीन पुस्तकों की 15 लाख प्रतियाँ बिकी
हैं। यह भारत में अभी तक सबसे तेजी से बिकने वाली पुस्तक का कीर्तिमान है। अमीश के
उपन्यास की पृष्ठभूमि में प्राचीन भारत के मोहनजोदारो, हड़प्पा और अन्य
नगरों के जीवन का काल्पनिक चित्रण है। अमीश ने प्राचीन मोहनजोदारो क्षेत्र के
निवासियों के लिए मेलूहा शब्द का प्रयोग
किया है।
मेलूहा बहुत प्राचीन शब्द
है। प्राचीन सुमेर देश (आज का इराक़) के साहित्य में वर्णन है कि वे लोग मेलूहा देश से व्यापार करते थे।
यूं तो कोई भी पक्की तरह नहीं कह सकता कि यह मेलूहा कौन सा देश था, कहाँ था, किन्तु अनेक
विद्वानों कि राय है कि सुमेर (इराक़) देश के लोग सिंधु-सरस्वती सभ्यता को ही
मेलूहा ही कहते थे। अगर यह सच भी है तब भी यह बात उल्लेखनीय है कि शायद अमीश
से पहले कभी किसी भारतीय ने अपने ही देशवासियों के लिए मेलूहा शब्द का प्रयोग नहीं
किया था।
अगर सिंधु सभ्यता का भारत ही मेलूहा था, तब भी कोई यह नहीं
जानता कि सुमेर के लोग हम भारतीयों को मेलूहा क्यों कहते थे, या फिर इस शब्द का
अर्थ क्या था ? अनेक अटकलें लगाई गईं है। एक अटकल यह है कि सुमेरी लोग भारत
से तिल का तेल मंगाते थे, तेल को सुमेरी में एल्लू कहते है (तिल को भी दक्षिण भारत की
भाषाओं में एल्लू कहते हैं); अतः एल्लू और मेलूहा की आपस में रिश्तेदारी है। लेकिन सुमेरी लोग तो भारत से तेल के अतिरिक्त और भी अनेक वस्तुएँ मंगाते थे, फिर मेलूहा शब्द के उत्स में विद्वानो का जोर तेल पर ही क्यों? एक यूरोपियन
विद्वान तो यहाँ तक कहते है कि मेलूहा शब्द ही बाद में मलेच्छ शब्द में बदल गया।
यह समझ पाना कठिन है कि सप्तसिंधु के लोग स्वयं को ही
मलेच्छ कहने लगे थे!
मुझे लगता है कि मेलूहा शब्द के
उत्स का रहस्य इस बात में छिपा हो सकता है कि इराक़/ ईरान के लोग हमें सिंधु सभ्यता
के बाद के काल में क्या कहते थे, या हम उन्हें क्या कहते थे? अब यह बात सभी जानते हैं कि
प्राचीन काल से हम अपने को भारत कहते आए हैं। भारत नाम अनेक प्राचीन ग्रन्थों में
है। किन्तु हमारे पश्चिम में सिंधु नदी के पार रहने वाले सुमेरी (इराक़ी), ईरानी, अरब हमें हिन्दू
कहते थे। यूं तो वे हम सिंधु-पार के लोगों को 'सिंधु' ही कहना चाहते थे
पर क्योंकि वे 'स' को 'ह' बोलते थे, अतः सिंधु को हिन्दू कहते थे। उनसे भी पश्चिम में यूरोप के
लोगों ने हिन्दू शब्द को ही इंदू कहा, जिससे बना इंदिया या इंडिया। जब
सिंधु-पार के लोगों ने हम पर राज किया तो उनकी तरह हमने भी अपने को हिन्दू
कहा। जब यूरोपियन हम पर राज करने आए तब हम भी उनकी तरह स्वयं को इंडियन कहने लगे।
सिंधु-सरस्वती के मैदानों में रहने वाले लोग पश्चिम के
देशों से व्यापार के लिए समुद्र मार्ग से जाते थे और इस यात्रा में सबसे पहले आने
वाले पड़ोसी देश के लिए शायद 'पार्श्व' (=निकट) शब्द का प्रयोग करते होंगे। पार्श्व बिगड़ कर पार्श्व > पारशव > पारसय > पारसी > फारसी हो गया होगा।
इसी क्रम में पूर्व दिशा के लोग पूर्वी कहलाए होंगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश
के लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को आज भी पूरबिये कहलाते हैं। कल्पना कीजिये
कि अगर सुमेरी लोग हमें पूर्वी कहते हों तब यह शब्द कैसे बिगड़ा होगा: पूर्वी > पूल्वी > मूल्वी > मेल्यी > मेलही > मेलूहा ! या शायद
सुमेरी लिपि की अपूर्णता के कारण ही हम लिखे हुए पूर्वी को मेलूहा पढ़ते है?
आपको यह कल्पना कैसी लगी?
The Meluha of Mohenjo Daro
Amish Tripathi’s ‘The Immortals of Meluha’ and the two
other novels of his Shiva-trilogy have created history. The three books have
sold 1.5 million copies in the last two years and have become the fastest
selling books in the history of book publishing in India. Amish’s story is set
in ancient India’s Mohenjo-daro, Harappa and other places and depicts their
imaginary life. Amish has used the term Meluha for Mohenjo Daro. Meluha
is a very ancient word. According to the ancient texts of the Sumer
civilisation (Iraq) they had trade ties with Meluha.
If Meluha was indeed the India of the Indus civilization,
we have no idea as to why the Sumerians gave us that name. Many scholars have
speculated about the meaning of Meluha. According to one theory, the Sumerians
imported sesame oil from India; sesame oil, is called ELLU in Sumerian (sesame
is also known as ELLU in South Indian languages); therefore ELLU and MELUHA are
related words. It is difficult to understand why the Sumerians would have called us MELUHA on the basis of oil alone while they imported a very large number of articles from India. A European scholar has gone to the extent of suggesting that the
word MALECHCHH used in Sanskrit for barbaric and uncouth is a variation of MELUHA.
It is difficult to understand as to why the people of Sapta-Sindhu would use the word MALECHCHH (barbarian, outcast) if it was meant to used for them!
It is well known that we, the people of India
called ourselves BHARAT since time immemorial. The name BHARAT is
found in many ancient Indian texts. However, the Sumerian, the Iranians, and
the Arab, all living in the west across the river Sindhu used to call us Hindu.
This is because while they wanted to call us ‘Sindhu’ they called us Hindu due
to their habit of pronouncing ‘s’ as ‘h’. The Europeans pronounced Hindu as
Indu and that is how they called us Indu or Indian. When the people from across
the Sindhu/ Indus came and ruled us, we stated calling ourselves as Hindu. When
the Europeans occupied India and started ruling us , we learned to call
ourselves India.
Imagine the scenario of the Saraswati-Indus traders
sailing to the west in the times of Mohenjo Daro. They might have called the
people of the first / the neighbouring port by the Sanskrit word ‘PARSHVA’
or the ‘nearby’ people. The word PARSHVA might have changed from Parshva>
Parasya> Parsi> Persian/FARSI. They might have called the people living
in the east of Mohenjo Daro as POORVI (Sanskrit, eastern). Even today, the
people of the western Uttar Pradesh, call the people of the eastern Uttar
Pradesh as POORABIA (the eastern). Imagine the Sumerian calling the Mohenjo Daro
people as POORVI. If so, the word POORVI might have transformed into MELUHA in
the following way: POORVI > Pulvi> Mulvi> Melyi> Melhi> Meluha!
Another possibility: they called us POORVI but due to the imperfect nature of
the script they wrote POORVI as MELUHA?
How did you find this flight of imagination?