Tuesday, September 13, 2022

पितरों के साथ -- यम कथा – 4

यम कथा – 4 

जब पहली बार मानव को यमपुरी ले जाया गया

लेखक – राजेन्द्र गुप्ता

अभी तक :– देवताओं और दानवों की पौराणिक कथाओं को मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरण की कहानियों के रूप में देखा जा सकता है। इन कहानियों के पीछे की मूल घटनाओं की खोज में, जीव-वैज्ञानिक आनंद प्राचीन काल की दुनिया में, पुरखों के साथ एक और यात्रा पर निकला। वह मानव सभ्यता की पहली पुरी या बस्ती ब्रह्मपुरी में जा पहुँचा। वापस आने पर आनंद अपने मित्र दीपक को यात्रा का आँखों देखा हाल सुना रहा है। विश्व सभ्यता का पहला क्वारंटाइन और शव प्रबंधन केंद्र खोलने का निश्चय किया गया है। इस निष्क्रियपुरी या नरकपुरी इसका उत्तरदायित्व धर्म अर्थात यम को दिया गया है।

पहले भाग का लिंक : यम कथा – 1

दूसरे भाग का लिंक : यम कथा – 2

तीसरे भाग का लिंक : यम कथा – 3

यम कथा - 4 :- मानव को पहली बार अर्थी पर यमपुरी ले जाने की कथा

धर्मपुरी अर्थात यमपुरी और उसमें निष्क्रियपुरी अर्थात नरकपुरी के निर्माण में समय लगेगा। किन्तु तब तक मृतकों (मृतप्राय रोगी) और मृतों को घरों से हटाने का काम नहीं टाला जा सकता। यम ने अपना कार्य संभालने में देर नहीं की। उसने पशुचर अर्थात पुष्कर के भैंस चराने वालों में से कुछ को बुलाया। यह लोग अपनी पगड़ी में भैंसे के सींग बांधते हैं जिसके कारण हिंसक पशु इन्हें दूर से देखकर सींग वाला पशु ही समझते हैं और आक्रमण करने में कोई जल्दबाजी नहीं करते। 


छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का एक वनवासी युवक जिसने पगड़ी में भैंसे के सींग बंधे हुए हैं 

अनेक बलिष्ठ भैंस पालकों को यम ने अपना दूत नियुक्त किया है। यमदूत घर-घर से मृतकों और मृतों को खींच कर बाहर निकाल रहे हैं और अपने भैंसो से पर बांधकर ले जा रहे हैं। यम ने भी भैंस-पालक यमदूतों की तरह ही भैंस के सींग वाली पगड़ी बांध ली है और भैंसे पर सवार होकर यमदूतों का नेतृत्व कर रहा है। अब यमदूतों को लग रहा है कि उनका स्वामी भी उनमें से ही एक है। इस तरह, अपनत्व वाले नेतृत्व को पाकर यमदूत अप्रिय काम को भी मन लगाकर कर रहे हैं। 

यम (बायें) और यमदूत (दायें) 

ब्रह्मपुरी में चारों और हाहाकार मच गया है। मानव इतिहास में इससे अधिक अमानवीय घटना आज तक नहीं हुई है। लेकिन इस आपातकालीन उपाय ने मानव जाति को नष्ट होने से बचा लिया है। पुरी से दूर ले जा कर कुछ मृतकों और मृतों को पहाड़ की से नीचे फेंक दिया गया, कुछ को जमीन में दबा दिया गया और कुछ को आग में जला दिया गया। इस वीभत्स घटना के त्रास को मानव समाज की सामूहिक चेतना हजारों वर्षों बाद और सैकड़ों पीढ़ियों के बाद भी कभी भूल नहीं पायी है। आज तक, सिर पर भैंसे के सींग वाली पगड़ी पहने और हाथ में रस्सा लिए यमदूत का भयानक रूप मानव को डराता है। यमदूतों द्वारा पहाड़ की चोटी से नीचे फेंकने और आग में जिंदा जलाने के दृश्य आज भी धार्मिक पुस्तकों के पृष्ठों से जनमानस को डराते हैं।

ब्रह्मपुरी की सफाई के बाद यम ने मृतकों को ले जाने के लिए एक नई व्यवस्था की। अब से भैंसे पर बाँध कर ले जाने की अमानवीय आपातकालीन व्यवस्था को कभी दोहराया नहीं जायेगा। मृतकों को पूरे सम्मान से नरक में ले जाने का प्रबंध होगा। परिजन और प्रियजन भी अगर चाहें तो नरक के द्वार तक मृतक को छोड़ने जा सकेंगे। नियम बन गया है कि सभी लोग अपने घर में किसी भी असाध्य-अशक्त रोगी, मृतक या मृत की सूचना ब्रह्मपुरी की गण-परिषद को दें। गण-परिषद यम को सूचना देती है। यम अपने दूत भेजता है। यमदूत मृतों और मृतकों को पूरे सम्मान से नरक में ले जाते हैं। लेकिन प्रियजन के वियोग के भय से अनेक लोग अपने घरों में मृतों और मृतकों की सूचना नहीं दे रहे। गण-परिषद को मृतों और मृतकों की खोज और सूचनाओं के लिए गुप्तचर नियुक्त करने पड़े हैं।“

आनंद कहता जा रहा था, “दीपक आज मैं यमदूतों के साथ यात्रा कर रहा था। सूचना मिली थी कि एक घर में एक मृतक अर्थात मरणासन्न व्यक्ति है जो संक्रमित है। हम उस घर में पहुंचे। यमदूतों को द्वार पर देख कर मृतक के घर के लोग चीत्कार कर उठे। मृतक भी विलाप करने लगा। उसने यमदूतों से बार-बार विनती की। लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गयी। नरक ले जाये जाने को किसी भी सूरत में अवश्यम्भावी जान कर मृतक और उसके परिजनों ने समर्पण कर दिया। उन्होंने यमदूतों से बस कुछ समय रुकने की प्रार्थना की। मृतक के सभी सगे संबंधियों, मित्रों और अन्य प्रियजनों को मृतक से अंतिम भेंट के लिए बुलाया गया। कुछ लोगों से भेंट के बाद मृतक मूर्छित हो गया। देर से आने वालों के लिए यह मिलन अंतिम भेंट न होकर अंतिम दर्शन बन गई है। यमपुरी के मार्ग में जाते हुए, मृतक आराम से लेटी हुई स्थिति में स्थिर रहना चाहिए। इसके लिए विशेष व्यवस्था की गयी है। अतः बांस का एक उपकरण बनाया जा रहा है।

शब्दों से खेलने वाली जुड़वा बहने जीभा-भाषी ने मुझे पूछा कि यह क्या बना रहे हैं”।

मैंने कहा “यह यात्रा के लिए मृतक को स्थिर रखने लिए ‘स्थिरा’ है। आप इसे  स्थिरधर भी कह सकती हो। मृतक के परिजनों के हृदय-विदारक विलाप के बीच भी जीभा और भाषी शब्दों के अविरल खेल में मस्त हो गयीं। आप भी इनके शब्द-विलास को सुनिये कि कैसे स्थिरा और स्थिरधर शब्द अर्थी और स्ट्रेचर  में बदल रहें हैं। अर्थी ही संसार का सबसे पहला स्ट्रेचर है। 

       ·    स्थिरा > स्थिरी > ह्थिरी > य्थरी > यर्थी > अर्थी

  ·      स्थिरधर > स्टिरजर > स्ट्रीचर > स्ट्रेचर  stretcher 

अभी तक चारपाई का आविष्कार नहीं हुआ है। घर में भूमि पर फूस बिछा कर सोने का चलन है। घास-फूस की मोटी सतह या गट्ठा ही शय्या है (गट्ठा > गद्दा)। मृतक की घरेलू शय्या का फूस अर्थी पर नहीं डाला जायेगा। इसमें रोगों के जीवाणु हैं। अर्थी पर नए फूस का गद्दा बनाया गया है। उसके ऊपर नया मृगचर्म डाला गया। मृतक को अच्छी तरह नहलाया जा रहा है ताकि ब्रह्मपुरी के कीटाणु यमपुरी में न पहुँच जाये। यमपुरी में पुराने संक्रमित कपड़ों की भी अनुमति नहीं है। अतः मृतक को नए कपड़े पहने गए हैं।उसे अर्थी पर लेटाया गया। उसके ऊपर नया मृगचर्म ओढ़ाया गया। मृतक ठिठुर रहा है। मार्ग में ठंड न लगे उसके लिए सभी रिश्तेदार एक-एक करके नई शाल उढ़ा रहे हैं। यमपुर पहुँचने में कई दिन लगेंगे। मार्ग में, मृतक के भोजन के लिए उबले हुए चावल में तिल और शहद मिलाकर पेड़े या पिंड बनाए गए हैं। चावल के दो पिंड मृतक के सिरहाने रखे गए हैं। पुष्कर सरोवर में उगे कुछ मखाने (कमल के कच्चे बीज) भी साथ रखे गये । अर्थी पर बांस के दो लंबे डंडों के ऊपर खड़ी हुई छोटी डंडियाँ बाँधी गई हैं। हर खड़ी डंडी की नोक पर एक फल स्थापित किया जा रहा है। अब मृतक के पास रास्ते में खाने के अर्थी पर ही चावल के पिंड या फल का विकल्प है।“

दीपक ने कहा, “रोचक बात है कि हजारों वर्षों बाद भी मृत व्यक्ति के अंतिम यात्रा के लिए वही पुराने डिजाईन की अर्थी का प्रयोग हो रहा है। वही रीति -रिवाज। बस चावल के पिंड की जगह जौ के आटे के पिंड बनाए जाते हैं।

आनंद बोला, “मैंने देखा है कि बंगाल में आज भी चावल उबाल कर उससे पिंड बनाये जाते हैं। अनेक प्रदेशों में जहाँ चावल नहीं उगाया जाता वहां चावल का स्थान जौ और गेहूं ने ले लिया है।“

“ मैं देख रहा हूँ, कि एक व्यक्ति रास्ते के लिए एक घड़े में पीने का पानी और एक हांड़ी में आग के अंगारे साथ लेकर चल रहा है ताकि मृतक के पैदल सहयात्री रास्ते में खाना पका सकें और पानी पी सकें।

घर की बहुओं ने मृतक के चरण स्पर्श किए, अपनी गलतियों और कटु वचनों के लिए माफी मांगी। चरणों पर कुछ मुद्राएं भी रखीं और कहा कि अगर कोई मार्ग में अथवा यमपुरी में आपको कुछ आवश्यकता हो तो यमदूतों से कहकर इन मुद्राओं द्वारा कुछ खरीद लीजिए। इसके बाद मृतक को रस्सी से बांधा जा रहा है, ताकि वह रास्ते में अर्थी पर स्थिर रहे -- गिर ना जाए। लेकिन उसके मुँह को खुला छोड़ दिया है। 

चार परिजनों ने मृतक को अर्थी पर बांधकर अर्थी को कंधों पर उठा लिया है। कुछ परिजन पीछे चल रहे हैं। मृतक यात्रा के आगे, पीछे , दायें और बाएं, चार यमदूत अपने भैंसों पर सवार हैं।

आनंद ने कहा, “बाद के वर्षों में अर्थी को भी विमान की तरह बनाने का फैशन चल पड़ा। जो मृतक जीवित रहते हुए पक्षी-विमानों में उड़कर जाते थे, उनकी अर्थी को विमान का आकर दिया जाता। विमान को फूल-पत्तियों से सजाया जाता। ऐसा लगता कि अर्थी पर लेटा  हुआ मृतक किसी पक्षी-विमान पर उड़ कर जाने वाला है। और बहुत बाद में केवल अति वृद्ध जनों की अर्थी को आदर सहित विमान की तरह सजाये जाने लगा।

आनंद ने देखा, कि अर्थी के आगे, एक व्यक्ति एक चँवर डुला कर मृतक के मुँह से मक्खियाँ हटा रहा है। एक व्यक्ति घंटा बजाता हुआ चल रहा है ताकि ब्रह्मपुरी की संकरी गलियों में लोग रास्ता छोड़ दें और अर्थी वाहकों को अपने कंधो पर बहुत देर तक अर्थी को ना उठाना पड़े। यह घंटा एक तरह से आधुनिक काल में एमुबुलेंस के सायरन का आदिरूप है।

यम के बड़े भाई मनु आजकल मनु स्मृति नाम से विधि-संहिता लिख रहे हैं। यम के अनुरोध पर मनु ने उसमें एक नया नियम भी लिखा, “जब भी मृतक यात्रा कहीं से जा रही हो सभी लोग और वाहन अपने स्थान पर रुक जाए। मृतक को मार्ग में प्रथम वरीयता दी जाए।

“परिजन रो रहे हैं। यमदूतों से प्रार्थना कर रहें हैं कि यमपुर की और मुड़ने से पहले एक बार मृतक को विष्णु के घर ले चलो। शायद विष्णु वैकुंठ से आये हुए हों और मृतक को बचा लें । यमदूतों ने मना किया। उन्हें बताया गया कि यह मृतक की अंतिम इच्छा है, अंतिम आग्रह है। मृतक विष्णु से क्षमा मांगना चाहता है और जो कुछ भी उन्होंने मृतक के लिए और मृतक के समाज के लिए किया था उसके लिए धन्यवाद करना चाहता है। यमदूत अंतिम आग्रह मानने के लिए तैयार हो गए है। शायद उन्हें भी विष्णु के दर्शन की लालसा है। मृतक की ओर से अंतिम आदरांजलि के लिए अर्थी को विष्णु के निवास हरि-मंदिर के द्वार पर रखा गया। हरि-मंदिर के बाहर लगा घंटा बजाया गया। किन्तु किसी ने द्वार नहीं खोला। विष्णु अपने घर ‘हरि मंदिर’ में नहीं हैं। मृतक ने हरि-मंदिर को नमन किया।

फिर एक अर्थीवाहक ने जोर से पुकारा, “हरि का नाम सत्य है”।

दूसरा अर्थीवाहक बोला, “सत्य बोलो गत्य है।“

‘गत्य है’ के घोष के साथ अर्थी को फिर से उठाया गया। एक बार फिर अर्थीवाहकों के पैरों में गति आ गई।   

मृतक ने एक और अंतिम इच्छा बताई। एक बार, बस अंतिम बार, मुझे अपने कार्यस्थल को -- अपनी दुकान को अपनी आंखों से देखेने दो। उसकी इस इच्छा को भी माना गया। अर्थी को उसकी दुकान के सामने ले जाया गया। एक पल वहाँ रुक कर यह मृतक-यात्रा यमपुरी की ओर मुड़ गई।

(शेष है। क्रमशः) 

आपको यह काल्पनिक कथा कैसी लग रही है। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।     

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2 comments:

  1. बहुत सुंदर चित्रांकन, मेरे विचार से हम सब लोग इन सभी गतिविधियों से अवगत है

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