Monday, September 12, 2022

पितरों के साथ -- यम कथा – 3

 यम कथा – 3

नरक -- विश्व का पहला क्वारंटाइन और शव प्रबंधन केंद्र

लेखक – राजेन्द्र गुप्ता

अभी तक :– देवताओं और दानवों की पौराणिक कथाओं को मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरण की कहानियों के रूप में देखा जा सकता है। इन कहानियों के पीछे की मूल घटनाओं की खोज में, जीव-वैज्ञानिक आनंद प्राचीन काल की दुनिया में, पुरखों के साथ एक और यात्रा पर निकला। वह मानव सभ्यता की पहली पुरी या बस्ती ब्रह्मपुरी में जा पहुँचा। ब्रह्मा और विष्णु इसी पुरी में रहते हैं; और शिव इसके ठीक बाहर। वापस आने पर आनंद अपने मित्र दीपक को यात्रा का आँखों देखा हाल सुना रहा है। इस समाज में अभी तक अस्पताल नहीं बना है। शवों के दाह संस्कार या दफनाने का आविष्कार भी नहीं हुआ है। अनेक घरों में मृत शरीर और मृतप्राय रोगी पड़े हुए हैं। संक्रामक रोग फैल रहे हैं।

अब भाग तीन में पढ़िए :- नरक कैसे बना? विश्व के पहले क्वारंटाइन और शव प्रबंधन केंद्र के खुलने की कहानी।

पहले भाग का लिंक : यम कथा – 1

दूसरे भाग का लिंक : यम कथा – 2

चारों ओर अराजकता फैलती जा रही है। लोग मृतकों को जीवन देने वाले ईश्वर समान वैद्यों विष्णु और शिव के लिए आर्तनाद या आरती कर रहे हैं। अशांति से चिंतित ब्रह्मा दोनों महान वैद्यों का आह्वान करना चाहते हैं, अर्थात बुलाना चाहते हैं। लेकिन कोई नहीं जानता कि शिव किस प्रदेश की यात्रा पर हैं। ब्रह्मा जानते हैं कि विष्णु वैकुंठ में हैं, किन्तु वहाँ का मार्ग कोई नहीं जानता। केवल विष्णु को ही वहाँ के आकाश मार्ग की जानकारी है। ब्रह्मा ने मन ही मन विष्णु का आह्वान किया। संयोग से उसी दिन गरुड़ पर सवार विष्णु प्रकट हुए। विष्णु ने आते ही अचेत व्यक्तियों को दो समूहों में बाँटा। एक -- जिनमें कुछ चेतना बाकी थी अर्थात मृतक / मृतप्राय / मरणासन्न। दो – जिनमें कोई चेतना नहीं थी। विष्णु, जिन्हें श्रीपति भी कहा जाता है, ने अनेक श्रीद्रु औषधियों से मृतकों का उपचार शुरू किया। इनमें से दो श्रीद्रु को आज हम तुलसी और हल्दी के नाम से जानते हैं । किन्तु इन मृतप्राय रोगियों की संख्या बहुत अधिक थी। सबकी चिकित्सा कर पाना असंभव था। ये स्वस्थ लोगों को भी संक्रमित कर रहे थे।

विष्णु ने एक क्रांतिकारी उपाय सुझाया। मरणासन्न निष्क्रिय रोगियों को स्वस्थ लोगों से अलग करना होगा। इसके किए एक नई बस्ती या पुरी का निर्माण करना होगा। यह नई बस्ती निष्क्रिय पुरी कहलाएगी। निष्क्रियपुरी ब्रहमपुरी से दूर किसी दुर्गम स्थान पर होगी। वह स्थान इतना दूर और दुर्गम होगा कि दोनों पुरियों के लोग आपस में एक दूसरे से मिल न सकें। ऐसा नहीं किया गया तो पूरा समाज नष्ट हो जाएगा।

अंततः ब्रह्मा, उनके पुत्रों और पुरवासियों ने निराशा, विवशता और भारी मन से विष्णु के निष्क्रियपुरी बनाने के सुझाव को स्वीकार किया। विष्णु ने दूसरा महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि सभी निर्जीव शरीरों को धरती में दबाया जाये। लेकिन भावुक लोग प्रियजनों के मृत शरीरों को किसी भी तरह छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। अंततः गण परिषद ने तय किया कि मृत शरीरों को भी निष्क्रिय पुरी में भेजा जाये और अगर दस दिनों तक उनमें कोई चेतना न लौटे तब निष्क्रिय पुरी का प्रशासन उनका उचित निपटान कर सकता है। आपदकाल में कठिन और निष्ठुर निर्णय लेने आवश्यक था।

इस निर्णय पर जनता में हाहाकार मचा गया। ब्रह्मा ने निष्क्रियपुरी प्रकल्प को कार्यान्वित करने के लिए ब्रह्मपुरी की न्याय व्यवस्था संभालने वाले विधि और न्याय मंत्री धर्म को बुलाया। धर्म ब्रह्मा के मानसपुत्र मरीचि का प्रपौत्र था। वह सूर्य का पुत्र और मनु और शनि का भाई था। वह ब्रह्मपुरी की परिषद का सबसे युवा, ऊर्जावान और प्रतिभावान सदस्य था। धर्म निष्क्रिय पुरी के निर्माण और उसकी अध्यक्षता के लिए तैयार नहीं था। किन्तु जब ब्रह्मा ने उसे ब्रह्मपुरी के पशुचर से दक्षिण दिशा की पूरी पृथ्वी का स्वामी घोषित कर दिया तो वह तैयार हो गया। ‘दक्षिण का दिशापाल धर्म’ – यह संबोधन उसके कानों में नगाड़ों की तरह बजने लगा, जिसमें निष्क्रियपुरी भेजे जाने वालों और उनके परिजनों की चीख पुकार डूब रही थी। मन ही मन धर्म सोच रहा था कि जैसे ब्रह्मा ने जिस पुरी को स्थापित किया है उसका नाम ब्रह्मपुरी है इसी तरह वह जिस नई पुरी को वह स्थापित करने जा रहा है उसका नाम धर्मपुरी होगा। धर्मपुरी, वाह ! क्या बात है। धर्मपुरी ब्रह्मपुरी से भी बड़ी होगी। निष्क्रियपुरी तो धर्मपुरी का एक उपनगर होगा। धर्म फूले नहीं समा रहा था। उसका मन रोमांच और उत्साह से भर गया।  

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सुमेरु पर स्थित ब्रह्मपुरी के बाहर विशाल पशुचर से दूर, दक्षिण में एक दुर्गम स्थान को निष्क्रियपुरी चुना गया है। पशुचर के दूर तपते बालू के रेगिस्तान को पार करके एक नदी आती है जो वर्षा ऋतु के अलावा लगभग प्रवाहहीन या जमी हुई रहती है। इस नदी के पार एक पहाड़ है। वहाँ तक पैदल पहुँचने में ब्रह्मपुरी से पूरा दिन लगेगा। निष्क्रियपुरी वहीँ बसायी जाएगी।“

दीपक ने कहा, “बहुत रोचक। मुझे लगता है कि निष्क्रियपुरी प्राचीन विश्व का पहला क्वारंटाइन केंद्र था (quarantine center)

दीपक की बेटी रूचि भी यह वार्ता सुन रही थी। उसने कहा, “हाँ अंकल कोविड काल में हर नगर में क्वारंटाइन केंद्र खोले गए थे।“

आनंद ने कहा, “हाँ बेटी, जब कोविड नहीं था क्वारंटाइन केंद्र तब भी थे। अगर दूसरे देश से कोई संक्रमित रोगी हमारे देश में पहुंचता है तो हवाई अड्डे के पास उसे तब तक क्वारंटाइन कर दिया जाता है जब तक वह संक्रमण मुक्त न हो जाये। आजकल सभी बड़े अस्पतालों में एक क्वारंटाइन वार्ड होता है जिसमे केवल गंभीर और लाइलाज संक्रमण वाले रोगियों को रखा जाता है। ताकि समाज में संक्रमण फैलने से रोका जा सके। निष्क्रियपुरी भी संक्रामक रोगियों, और मृतकों को क्वारंटाइन करने का स्थान था।  दुर्भाग्य से उसमें मृत लोगों के शव भी रखे जा रहे थे, हालांकि उन शवों को सड़ने से रोकने के लिए वे लोग शवों पर तरह-तरह के लेप कर रहे थे। बहुत जल्दी ही निष्क्रियपुरी के व्यवस्थापकों को मृतक और मृत का अन्तर समझ आ गया था। फिर उन्होंने मृतों का जल्दी निपटारा करना शुरू कर दिया। इसके लिए वे मर गए शरीरों को निष्क्रियपुरी में पहाड़ से नीचे गिरा देते, जमीन में दबा देते या आग में जला देते थे। मैं यह सब आगे बताने वाला हूँ।“

दीपक और रुचि के बोलने से आनंद हजारों वर्षों की दुनिया से आज की दुनिया में लौट आया। वापस लौटने के क्रम में उसे शब्दों से खेलने वाली जुड़वा बहनों जीभा और भाषी का शब्द-खेल सुनाई दे रहा था। जीभा और भाषी के इसी खेल को मनुष्यों की आने वाली पीढ़ियाँ सदियों तक दोहराने वाली थीं। एक पीढ़ी से दूसरी और फिर अगली पीढ़ी तक जाते हुए शब्दों में हो रहे क्रमिक परिवर्तन / म्यूटेशन से नए-नए शब्दों की रचना होने वाली थी...  

  • सुमेरु > हुमेरु > जुमेरु > जउमेरु > उजमेरु > अजमेर

  • पशुचर > पशुकर > पुशकर > पुष्कर
  • धर्मराज > धमराज > जमराज > यमराज
  • धर्मपुरी > धमपुरी > जमपुर > यमपुरी
  • दिशापाल > दिजापाल > दिगापाल > दिग्पाल > दिक्पाल
  • निष्क्रियपुरी > निह्क्रियपुरी > निक्रियपुरी > नक्रियपुरी > नरकियपुरी > नरकपुरी
  • निष्क्रिय = क्रियान्त > क्रिवान्त > क्विरांत > क्विरांट > क्वारंटाइन
  • ज्वलपुरी > ह्वलपुरी > ह्यलपुरी > हैलपुरी > हैल hell
  • ज्वालापुर > ज्वानापुर > ज्यानापुल > ज्यानामुल > ज्हानामुन > जहमन > जहन्नम
  • श्रीद्रु > श्रीतरु > तरुश्री > तलुशी > तुलशी > तुलसी
  • श्रीद्रु > हरिद्रु > हरिद्रा > हलिदरा > हलिदया > हल्दी
  • आर्तनाद > आर्त > आरती

(क्रमशः)

आपकी पसंद के लिए -- 

क्षारी-सागर में एनाकोण्डाओं की शैया पर आराम करते हुए भगवान विष्णु

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