Friday, August 24, 2012

महर्षि वाल्मीकि-2: सीता जी का पिता रावण! सीता जी का भाई राम!!


                 Maharshi Valmiki -2: Sita’s father Ravan! Sita’s brother Ram!!   
                          
  
              
महर्षि वाल्मीकि 7000 वर्षों के बाद भारत-यात्रा पर आए। उन्हें पता चला कि इस बीच रामायण-गायकों के गलत उच्चारण के कारण राम-कथा के कई गलत रूप भी प्रचलित हो गए हैं। विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है कि सीता रावण की पुत्री थीऔर यह भी कि राम और सीता भाई बहन थे। वाल्मीकि जी को यह जान कर दुःख हुआ कि उनकी रामायण को काल्पनिक माना जा रहा है। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि वाल्मीकि जी ने बताया कि उनका नाम वाल्मीकि नहीं रामकवि हैउनके शरीर पर दीमक लगने की कहानी झूठ है और यह भी कि उन्होने राम-राम का उल्टा जाप नहीं किया। अब आगे पढ़िए कि राम सीता के भाईबहन होने और सीता के रावण की पुत्री होने की कथाएँ कैसे बनी...       

कथा का भाग एक इस लिंक पर है :
महर्षि वाल्मीकि-1: शरीर पर दीमक और राम नाम का उल्टा जाप

भाग 1 से जारी...

आपने हमारी आंखे खोल दींरामकवि,” वाइस-चांसलर जी ने कहा, “हम समझ गए हैं कि आपके छात्रों की शरारतों के कारण ही आपका नाम वाल्मीकि यानी दीमक वाला पड़ा। किन्तु मेरा निवेदन है कि हम भारतवासी हज़ारों वर्षों से आपको वाल्मीकि नाम से ही जानते हैं। अगर अब हम अपनी भूल सुधार कर लें और आपको आपकी उपाधि ‘रामकवि’ या आपके असली नाम से भी पुकारने लगेंतो अब आपके नाम और कृति के विषय में और भ्रम फैल सकता है। मेरा निवेदन है कि आप हमें अनुमति दें कि हम भविष्य में भी आपके लिए वाल्मीकि नाम का ही उपयोग करते रहें। इस वाल्मीकि नाम में भी हमारे मन में आपके तप के प्रति श्रद्धा ही है।

जैसी आपकी इच्छाकुलपति,” वाल्मीकि जी ने कहा।
सभागार में तालियाँ बज उठीं। 

तभी प्रोफ॰ पाउला रिचमान* अपनी सीट से उठीं।
मैं हैरान हूँमैं अवाक हूँ। यह एक अकादमिक सम्मेलन है या रामानंद सागर के टीवी सीरियल रामायण का सैटनाटक की पोशाक पहने कोई कलाकार यहाँ आकर अपने को वाल्मीकि कहता हैचंद संवाद बोलता है और आप लोग उसे सच मान लेते हैं। रामानंद सागर की रामायण देखते समय लोग टीवी को मंदिर मान लेते थे। टीवी पर फूल और पैसे चढ़ाते थे। आजआप लोग एक बहुरूपिये को वाल्मीकि मान रहे है! नाटक के इस कलाकार के कहने से आप लोग वाल्मीकि रामायण को मूल रामायण मान रहे हैं! वाल्मीकि की रामायण मूल रामायण नहीं हैं। यह तो बस सैकड़ों रामायणों में से एक है। रामकथा कोई इतिहास  नहीं है। आप कहाँ हैं प्रोफेसर रोमिला थापरकहाँ हो रामानुजनआप लोग बोलते क्यों नहींआप दोनों ने तो इस विषय पर बहुत लिखा हैऔर बोला भी है।
                                      
प्रोफेसर रोमिला थापर उठीं : मैंने टीवी धारावाहिक रामायण के प्रसारण के समय भी कहा था कि टीवी सीरियल से रामकथा की विविधता नष्ट हो रही है। किन्तु टीवी के द्वारा समाज पर रामायण की एक कहानी विशेष को थोप दिया गया। दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक का प्रसारण आधुनिक भारत के इतिहास की एक चिंताजनक और खतरनाक घटना थी।”      

अब प्रोफेसर रामानुजन ने मोर्चा सँभाला।
अगर हम एक मिनट के लिए मान भी लें कि साधु की पोशाक पहने हुए यह व्यक्ति वाल्मीकि ही हैतो फिर इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वाल्मीकि रामायण ही मूल और असली रामायण है। हाँहम ऐसा कह सकते हैं कि हजारों रामकथाओं में से एक कथा वाल्मीकि ने भी लिखी थी। वैसे मैंने अपने लेख में ‘हज़ारों रामायण’ नहीं लिखा है। मैंने लिखा है कि संसार में रामायण की 300 कथाएँ प्रचलित हैंक्योंकि फ़ादर कामिल बुल्के ने रामकथा पर अपनी थीसिस में ऐसा ही लिखा था। असली-नकली रामायण पर मैं एक उदाहरण देता हूँ: प्राचीन यूनानी विद्वान अरस्तू ने एक बढ़ई से पूछा कि तुमने लकड़ी काटने वाली आरी कब ली थी। बढ़ई ने कहा यह आरी उसके पास 30 साल से है। कई बार मैं इसका हत्था बदल चुका हूँऔर कई बार इसकी लोहे की दांती भी। लेकिन यह आरी तो वही 30 साल पुरानी है। यही हाल रामायण का भी है। इसकी कथाएँ हज़ारों बार बदल चुकी हैं। अरस्तू के बढ़ई की आरी की तरह रामायण का कोई भाग असली नहीं है। ये सभी काल्पनिक कथाएँ हैं। उनकी कहानी बार-बार बदल चुकी है। इन सभी रामायणों में एक ही समानता है: सभी में मुख्य पात्रों के नाम रामसीताऔर रावण हैं। बौद्ध परंपरा में दशरथजातक नाम की एक रामकथा है। उसमें इसमे राम और सीता भाई बहन हैं। कन्नड़ लोक गायक तंबूरी दासय्या जो कथा गाते हैं, उसमे सीता रावण की पुत्री है। इस कथा में रावण को रावुलु कहते हैं। रावुलु आम खा कर गर्भवान हो जाता है। रावुलू को छींक आती है और नाक के रास्ते उसके गर्भ से सीता पैदा होती है। सच तो यह है कि कन्नड़ में सीता का अर्थ ही है "वह छींका"!  ये मिस्टर वाल्मीकिसीता और राम को पति-पत्नी बताते हैं। ये सीता को राजा जनक की पुत्री बताते हैं। अपनी रामायण को ही मूल रामायण बता रहे हैं। यह नहीं हो सकता। कौन जाने सीता किसकी पुत्री थीदशरथ कीजनक कीरावण की या किसी और की ? किसी एक कहानी का थोपा जाना हमें सहन नहीं होगा। हम लोग इस सम्मेलन में यही बात ज़ोर से कहने के लिए आए हैं कि रामायण की कोई मूल कथा है ही नहीं।

प्रोफेसर रिचमान और प्रोफेसर थापर ने प्रोफेसर रामानुजन का समर्थन किया।

वाल्मीकि जी अपनी सीट से उठे। 
महोदय मैं पूछना चाहता हूँ कि 300 रामकथाओं में से क्या कोई एक भी ऐसी है जिसके बारे में आप निर्विवाद रूप से यह कह सकें कि वह मेरी रामायण से पहले लिखी गई। प्रोफ. रामानुजन मेरी रामायण को मूल कथा नहीं मानना चाहते तो उनकी इच्छाकिन्तु वे एक ऐसी कहानी को मान्यता दे रहे हैंजिसमें रावण गर्भवती या गर्भवान हो कर नाक के रास्ते सीता को जन्म देता है! क्या आजकल पुरुष गर्भवान हो कर बच्चों को जन्म देने लगे हैं?”

सभा भवन में कुछ हलचल हुई।

वाल्मीकि जी कहते रहे, “कुश-लव गायकों की लंबी परंपरा में हज़ारों वर्षों से मेरी रामायण का गायन हो रहा है। इस बीच नई भाषाएँ और लोकबोलियाँ भी विकसित हुई होंगीऔर मेरी रामायण का उन नई बोलियों में भाष्यांतर भी हुआ होगा। इस बीच गायकों द्वारा गलत अनुवाद अथवा गलत उच्चारण से कथा में बदलाव आ गए हों तो क्या आश्चर्यमित्रो मैं उदाहरण देना चाहता हूँ।

"अगर प्रोफ. रामानुजन जो कन्नड लोक-कथा सुना रहे थे उस कथा में मीठे आम खा कर रावण का 'पेट भर गया' या 'पेट मोटा हो गया' तब क्या इसका मतलब यह लगाया जाए कि रावण गर्भवान हो गया? क्या 'पेट मोटा होना' का एक ही अर्थ होता है? 
"अगर गायक बोले रावण गर्ववान था, और कोई गर्ववान को गर्बवान या गर्भवान समझने की बेतुकी गलती कर दे तो किसका दोष है?  

कोई बताए कि संस्कृत शब्द ‘क्षति’ का क्या अर्थ है?”
क्षति का अर्थ है हानि-कारक।संस्कृत विभाग के मिश्रा जी ने कहा।
और जनन?”
जनन का अर्थ है जन्मपैदा या कारक”  
बिलकुल ठीक। इस तरह क्षति-जनन का अर्थ हुआ हानिकारक। क्षति-जन्य या क्षति-जनक के भी लगभग यही अर्थ हुए। मैंने रामायण में लिखा था कि रावण के अनेक सलाहकारों जैसे कि मारीच, माल्यवान, विभीषण, कुंभकरण और मंदोदिरी ने बार-बार रावण को चेताया था कि सीता का हरण रावण के लिए क्षति-जनन है / क्षति-जन्य है/ क्षति-जनक है। यानी सीता रावण के लिए हानिकारक है।
गाँव-गाँवनगर-नगर रामायण गाते हुए गायकों की एक टोली ने क्षति की जगह क्षुति या क्षौति बोलना शुरू कर दिया होगा। क्या आप जानते है संस्कृत शब्द क्षुति या क्षौति के अर्थमैं बताता हूँ। क्षुति या क्षौति का अर्थ है छींक। अतः क्षति-जन्य के स्थान पर क्षुति-जन्य बोलने से कथा ने रोचक मोड़ ले लिया प्रोफ. रामानुजन जी। मैंने लिखा था कि लंका में सीता की उपस्थिति रावण के लिए हानिकारक थी।  और आज सुन रहा हूँ कि लोक-गायक गा रहे हैं कि सीता रावण की छींक से पैदा हुई थी!!! 
कन्नड़ में सीता का अर्थ अगर 'वह छींका' है तो कोई आश्चर्य नहीं है। संस्कृत में छींक के लिए शब्द है क्षुति। लोक-भाषा के विकास में यह क्षुति कुछ इस तरह बिगड़ गया होगा: क्षुति > शुति > सुति > सितु > सिता > सीता।     

आप शब्दों से जैसा चाहेंअनेक प्रयोग कर सकते हैं। एक मात्रा बदलने से भी अर्थ बदलते जाएंगे।  

रावण ने सीता को जाना
रावण ने सीता को जना  
   
सीता रावण की मति में थी। 
सीता रावण की माटो (पेट) में थी। 

"आचार्यवर, इतनी बड़ी भूल को मान्यता दे करपूरी रामायण को ही काल्पनिक मान लेना कहाँ का न्याय हैअद्भुत बात है! उच्चारण में तो गलती हो सकती हैलेकिन समझ नहीं आता कि कोई यह समझने में कैसे गलती कर सकता है कि कोई पुरुष कैसे गर्भवतीमेरा मतलब गर्भवान हो सकता हैऔर उसकी छींक के रास्ते बच्चे का जन्म कैसे हो सकता हैगर्भाशय और नाक के बीच कोई रास्ता होता है क्या7000 वर्ष पूर्व राम के समय में भारत में शरीर विज्ञान का अच्छा ज्ञान था। कई बार गर्भ से शिशु का जन्म शल्यक्रिया द्वारा भी कराया जाता था। क्या भारत में आज शरीर विज्ञान की पुरानी जानकारी का भी अभाव हो गया है ?

अब यह भी सोचने का विषय है कि रामायण गाते हुए उच्चारण कि किस गलती से सुनने वालों ने राम को सीता का भाई समझने की भारी गलती की होगी।  

संस्कृत में भाई के लिए शब्द हैं: भ्रातभ्राताभ्रातृभातृ और पति के लिए शब्द हैं: भर्ताभर्तृ। क्या इन शब्दों की ध्वनियाँ आपस में मिलती-जुलती नहीं हैं?
अगर रामायण गाने वाले ने बोला भर्ताऔर सुनने वाले ने सुना भ्राता!
गाने वाले ने बोला भर्तृसुनने वाले ने सुना भातृ! इस तरह पति को भाई समझने में कितनी देर लगेगीक्या मैंने कुछ गलत कहा?” वाल्मीकि जी पूछ रहे थे। 

उनका उत्तर संस्कृत के प्रख्यात शब्दकोशकार श्री वामन शिवराम आप्टे ने दिया। 
वाल्मीकि जी आप बिलकुल ठीक कह रहे है। मैं यहाँ आपकी बात में यह जोड़ना चाहता हूँ कि प्राचीन संस्कृत में बंधु शब्द भाई और पति दोनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश के 14वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बंधु कहा है: ‘वैदेहि बंधोर्हृदयं विदद्रे
    
इसी तरह प्राचीन संस्कृत में भगिनी शब्द का अर्थ बहन और सौभाग्यवती स्त्रीदोनों हो सकता है।” 

साधुसाधु”  वाल्मीकि जी ने कहा। अब आप लोग समझ गए होंगे कि राम और सीता के भाई बहन होने की कहानी कैसे बनी होगी।”   

श्रोताओं में से एक हाथ उठा। 
"हाँ, कहिए" वाल्मीकि जी ने कहा। 
"हमारे राजस्थान में पति को बींध कहते हैं। बींध और बंधु की ध्वनियों में काफी समानता है।"     

बौद्ध-अध्ययन विभाग के प्रोफ. धम्मभिख्खु ने कहा: अब समझ आया की बौद्ध ग्रंथ दशरथ-जातक में राम-सीता के भाई बहन होने की कहानी का बीज कहाँ से आया!"     

वाइस-चांसलर महोदय काफी देर से चुप थे। उन्होने माइक सँभाला और घोषणा की: 
मैं सम्मेलन के आज पूर्व-निर्धारित सभी कार्यक्रम स्थगित करता हूँ। वाल्मीकि जी के सान्निध्य में यह चर्चा जारी रहेगी।

इतिहास विभाग के अनेक प्रोफेसरों ने उठ कर विरोध किया:  
हम यहाँ  प्रो. रामानुजन,  प्रो. पाउला रिचमानप्रोफेसर रोमिला थापर और प्रोफ. राम शरण शर्मा को सुनने आए हैंवाल्मीकि को नहीं। मिस्टर वाइस चांसलर आपका कदम असंविधानिक है। सम्मेलन पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम से ही चलेगा। हमने आपको केवल उद्घाटन के लिए बुलाया था।"

इस बीच चाय का अवकाश हो चुका था। हॉल लगभग खाली हो गया था। पर वाल्मीकि जी चारों ओर से जिज्ञासुओं से घिरे हुए थे।
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नोट: इस काल्पनिक कहानी में प्रोफ. रामानुजन, प्रोफ. रिचमैन तथा प्रोफ. थापर के कथन उनके छपे हुए लेखों या पुस्तकों पर आधारित हैं। प्रिन्सिपल वामन आप्टे का कथन उनके शब्दकोश में दिये गए बंधु शब्द की परिभाषा पर आधारित है। 


पात्रों के अधिक परिचय के लिए निनलिखित लिंक देखिये:

प्रिन्सिपल वामन शिवराम आप्टे (1858-1892) 
प्रोफ. अट्टीपाट कृष्णस्वामी रामानुजन (1929-1993)
प्रोफ. रोमिला थापर (1931-)
प्रोफ. पाउला रिचमैन 


27 comments:

  1. Interesting..but too simplistic account of a highly complex mythological tradition. Agree, that phonetic alternations may cause confusion for semantic interpretation of a word but that's not the whole issue..for instance, give a serious thought to the fact that why a word could have been used to denote two contradictory principles like sister and wife..read the Rig Vedic yama-yami dialogue carefully and relate it with creation hymns prevalent across the globe one will realize that brother-sister twin coupling was used to sustain the creation...please kindly consult Indian Theogony by sukumari Bhattacahjee...its not necessary to discuss everything here, in short this blog is full of inconsistencies does not show the sign of proper literature review..

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    1. Dear Vidhu, thanks for raising very interesting issues.
      a. I agree with your suggestion that use of the same word for wife and sister indicates brother sister coupling. You are absolutely right in illustrating your point with the Yama-Yami dialogue from the Rig Veda. But that doesn’t support any assumption of Ram and Sita being brother and sister.

      We have to look at the mythological stories in terms of evolution of human society. We must remember that all mythological stories don’t belong to the same period in the evolutionary time scale of human society. Brahma can be seen as one of the three principal figures of the first-generation- out-of-the- forest pastoral-cum-agricultural people. This is a time when marriage in the same family (brother-sister, mother-son, or father-daughter) is quite common. However, marriage rules are beginning to evolve. Although Yama and Yami are only fourth generation out-of-forest- settlers, yet we see Yama’s reluctance to marry his sister in the Yama-Yami dialogue. Yama’s brother Manu lays down the first set of marriage rules. Later, we see the evolution of these marriage rules and prohibition of marriage within the family. Rama was born 35 generations down the line from Manu. By this time brother-sister marriage had been prohibited by law.
      b. Many thanks for recommending Indian Theogony by Sukumari Bhattacharjee . I will certainly read the book.

      c. I am writing this blog series and a book for the general public. Hence, the story format. I plan to write separately for the scholars (complete with reference to literature).

      Thanks once again. Best wishes.

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    2. sorry for late reply, I again see the same sort of problem...looking at texts from one point of view and setting very simple correlations..(i)trying for direct parity between mythological accounts, on the one hand, and evolutionary issues on the other could be misleading...mythological delineations kud equally be on account of the cultural mixing... (2) regarding, setting of families in mythological traditions (for instance, which deity is son/wife/daughter/mother/brother etc of which deity depends of different world views and could be arranged differently not only by different traditions but can change temporally too...this point can best be explicated by vedic examples on the one hand and epic-puranic on the other hand.. (3)what is at stake, in the Ramanujan's version is that, not the denial of so called popular and dominant tradition but..giving voice to LESSER KNOWN TRADITIONS...that has to be understood first..(Here,on this site, u r writing for the masses primarily...dats why keeping in mind India's rich and multifaceted past becomes more urgent and necessary)thanks anyway..

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  2. ऐसे तथ्य तो बहुत ही कम पढ़ने को मिलते हैं, ये तो जनमानस के लिये बहुत अच्छा है जो पढ़ना चाहते हैं ।

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत। मुझे खुशी होती है जब आप जैसे सुधि पाठक पसंद करते हैं। पुरखों के साथ इस यात्रा में आप साथ रहिएगा। आभार।

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  3. वाल्मीकि रामायण गौतम बुद्ध के बाद की हैमौर सीता रावण की पुत्री हैं यह अनेक रूपकों से और पूरे एक अध्याय से उद्घाटित है इस रामायण में .......
    हर जन्म में रावण सीता का अभिलाषा रखता है मगर प्रवंचित रह जाता है -मुझे लगता है मिथकों और बिम्बों को अभिधा में नहीं लिया जाना चाहिए -प्रतीकात्मक अर्थों की निष्पत्ति ही बौद्धिकता का तकाजा है -
    पोस्ट ब्लॉग विधा के अनुकूल नहीं है -इसे धारावाहिक करें और बोध गम्य तरीके से पांच मिनट मात्र में अधिकतम जितना पढ़ा जा सके कृपया उतने तक ही प्रत्येक पोस्ट में अपने को अभिव्यक्त करें -ब्रेविटी इज द सोल आफ विट!

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    1. अरविंद जी, ब्लॉग को बोधगम्य बनाने के लिए आपने पते की बात कह दी है। मैं आभारी हूँ। सुझाव का पालन करने की पूरी कोशिश रहेगी।

      मैं आपकी इन दोनों धारणाओं से विनम्रतापूर्वक असहमत हूँ कि वाल्मीकि रामायण गौतम बुद्ध के बाद की है, या सीता रावण की पुत्री हैं। यहाँ विस्तार से इस पर चर्चा का औचित्य नहीं है, क्योंकि इन दोनों विषयों पर बहुत ही विस्तृत विश्लेषण उपलब्ध है (फादर क़ामिल बुल्के की थीसिस 'रामकथा', हिन्दी परिषद प्रकाशन, इलाहाबाद)।

      जहां तक मिथको और बिम्बों के प्रति हमारे दृष्टिकोण की बात हैं, हम भारतीयों का कोई जवाब ही नहीं। हम समकालीन घटनाओं को भी मिथक बनाने में जीनियस हैं। फिर प्राचीन कथाओं पर हमने अपनी कल्पनाएँ किस तरफ और कितनी दौड़ायीं, उसकी तो कोई सीमा ही नहीं। जब पूरे समाज में धर्म और संस्कृति मिथको को सच मानने पर आधारित हो तो प्रतिकात्मक अर्थों की महानता मुझे आकर्षित नहीं करती। जो बिम्ब समाज में अंधविश्वास और अवैज्ञानिक संस्कृति के आधार बने हुए हों, वे मुझे अशांत करते हैं।

      पुरखों के साथ इस यात्रा में साथ बने रहिएगा। पुनः धन्यवाद।

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  4. राजेंद्र जी ,
    आपके इस प्रयास के लिए धन्यवाद
    यह ब्लॉग उन लोगों के लिए ये सबक है जो तथ्यों के ज्ञान से वंचित होते हुए भी शेखी बघारते हैं
    बहुत बहुत धन्यवाद

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    1. धन्यवाद सत्यदेव जी। मैं तो बस अपने परिवेश और समाज की संस्कृति की निर्मिति को समझने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ। जो कुछ समझ पा रहा हूँ, उसे इस ब्लॉग द्वारा सांझा कर रहा हूँ। किसी को भी सबक सिखाने का मेरा कोई इरादा नहीं है, क्योंकि मैं स्वयं ही नहीं जानता कि सच क्या है। आपको अच्छा लगा, मुझे प्रोत्साहन और और बल मिला। आभार। साथ बने रहिएगा।

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  5. समय के प्रवाह के साथ-साथ भाषा भी अपनी आकृति और अर्थ में परिवर्तन को स्वीकार करती चलती है। कथ्य के साथ तथ्य भी बदल जाते हैं ...और सामने जो रूप प्रकट होता है वह सत्य नहीं ...आभास भर होता है। राम कथायें चाहे काल्पनिक हों या सत्य,सभी का उद्देश्य किसी आदर्श को स्थापित करना रहा है। समय-समय पर आदर्श भी बदलते हैं...इसलिये कथा भी बदलेगी। सच पूछो तो कथायें तो उस नये आदर्श को न्यायसंगत ठहराने का साधन हैं जिन्हें तत्कालीन समाज स्थापित करना चाहता है।
    गुप्त जी! अपभ्रंश होते शब्दों के कारण भविष्य में अर्थ का अनर्थ होने की आपकी चिंता विचारणीय है।

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    1. धन्यवाद। आपने सही कहा: रामकथाएँ काल्पनिक हैं या सत्य ?
      सभी भक्तों के लिए सत्य, अधिकतर इतिहासज्ञों के लिए झूठ। सत्य मानने वालों की संख्या इतनी बड़ी है कि इस द्वंद ने आधुनिक भारत की राजनीति को भी प्रभावित किया है, और न्यायपालिका को भी। रामकथा पर आधारित दो मुकदमे अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्राचीन भारत ने इतिहास को कभी गंभीरता से नहीं लिया हो। इस स्वभाव के कारण हमने स्वयं ही इतिहास में साहित्य जोड़ने की इतनी स्वतन्त्रता ले ली हो कि इसके परिणाम स्वरूप हमने अपना प्राचीन इतिहास ही खो दिया हो। अगर हम रामकथा को इतिहास मानते हैं, तो उसकी अनेक असंभव कहानियों को श्रद्धा से लीला कह कर सच मानने में हमें इतना मज़ा क्यों आता है? क्या ऊटपटाँग कहानियाँ कथावाचन परंपरा में गलत उच्चारण से उपजी? अगर ऐसा है भी तो हम उन पर विश्वास क्यों करते हैं? इस खोज में साथ बने रहिए। पुनः धन्यवाद।

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  6. I got to know about your Blog only today when I visited Umesh at his residence. Without getting into the formality of reiterating what so many others have said about the utility of the work you have started, I would state two or three points which struck me as soon as I finished reading the two parts : (1) Your narration is not longish and do not make an overt effort to shorten it even at the risk of losing one or two readers as it may affect the clarity and may miss the point you are making. Moreover, the objective should be to prepare a chapter for the book - if it is serving the purpose of a blog, it is bonus. (2) If possible, you can make an attempt to post your next part of story with somewhat shorter gap - I noticed that there is a gap of about ten weeks in your two instalments. We would love to see your book at the earliest. :-) (3) Perhaps there is no need to dwell much upon what "Bhakts" think or practice - who are we to challenge someone's beliefs? (Though, this does not mean that you have done that - I am only trying to caution you, just in case, one gets carried away in an effort to sound scientific and reasonable). On the other hand, the way you have intertwined Romila Thapar, Ramanujam etc, that is really superb, to say the least. These kind of views should be met head on - in fact, such foolhardy position only help the extremist elements in Hinduism (4) I am sure, this would be very useful work when completed. It won't be a bad idea perhaps, if you could come out with a 250-page book at the earliest and you can add to it later in parts. Best wishes for the journey you have embarked upon - I am sure, Sita-Ram would 'reveal themselves'to you.(help you find the truth about themselves). :-) If you are wondering, I am Vidya Bhushan.

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    1. Vidya Bhushan! What a pleasant surprise! I am grateful for your very insightful comments and feedback. In fact, I have planned a big book covering events right from the origin of human society in jungles, moving on to the evolution of ancient civilizations, and covering important events contained in the ancient stories that form parts of our inheritance and collective consciousness. However, having no previous experience in writing, I have been experimenting for the last few months to develop a readable style. In this context, I started publishing parts of the manuscript in this blog essentially to test the waters and get some feedback.
      I greatly value your comments and shall take action accordingly. Welcome again on this wonderful journey with our ancestors.

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  7. यह बात सही है कि समान ध्वनि वाले शब्दों के अर्थ अलग अलग होते हैं, इस कारण रामायण की कहानी उलट पलट हो गई होगी-बहुत सहज तरीके से आपने इसे समझाया है...आभार|

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    1. धन्यवाद ऋता जी। मुझे लगता है कि कहानियाँ काफी उलट पुलट हो गईं हैं। अनेक अविश्वसनीय प्रसंग भरे हुए हैं। उन्हें समझ कर फिर लिखने की कोशिश में हूँ। धीरे-धीरे यहाँ साझा करता चलूँगा।

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  8. शब्दों के अर्थों का अनर्थ भले ही हो गया हो पर कुछ आधारों पर सीता को रावण की पुत्री मानना असंभाव्य नहीं लगता
    कृपया निम्नलिखित लिंक देखें -http://lambikavitayen5.blogspot.com/2010/02/blog-post_01.html.
    आपका मत जानने की उत्सुकता रहेगी .

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    1. आदरणीय प्रतिभा जी,
      आपके दिये लिंक से आपका लेख "सीता रावण की पुत्री थीं" पढ़ा। बहुत रोचक लेख के लिए आभार। किन्तु, वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता जी रावण की पुत्री नहीं थी। आपने सीता जी के जन्म की कथा के लिए 'अद्भुत रामायण' को आधार बनाया है। विद्वानों के अनुसार 'अद्भुत रामायण' का रचनाकाल, 15वीं शताब्दी (ईस्वी) के बाद का है (फ़ादर बुल्के, रामकथा, पृ॰ 132-133)। यह स्वाभाविक ही है कि जो रामकथा, वाल्मीकि रामायण से जितने बाद के कालखंड में रची गयी, उसमें मूल कथा से उतना अधिक परिवर्तन देखने को मिलेगा। विभिन्नता के कारकों में समय के साथ होने वाला उच्चारण भेद तो प्रमुख है ही, किन्तु, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, स्थानीय, आदि अनेक अन्य कारक भी हैं। आपने 'अद्भुत रामायण' से सीता-जन्म की जो कथा बताई है, वह मुझे अलौकिक तथा अ-वैज्ञानिक लगती है: लंबे समय तक रावण की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी गर्भवती हो जाती है, मंदोदरी पति द्वारा लाये गए ऋषियों के खून को पीने से गर्भवती होती है; घबराहट से गर्भपात हो जाता है, वह गिरे हुए अविकसित भ्रूण को धरती में दबा देती है; वही भ्रूण सीता है! हमारे कथावाचकों का जवाब नहीं! मैं विनम्रता-पूर्वक कहना चाहता हूँ कि इस प्रकार की सभी अ-वैज्ञानिक पौराणिक कथाओं को, उनके वर्तमान स्वरूप में, मैं स्वीकार नहीं कर सकता। किन्तु जो कथाएँ हमारी सांस्कृतिक विरासत का डी.एन.ए. हैं, उन्हें नकार भी नहीं सकता। क्या करूँ फिर? लगता है कि अपनी विरासत को नई दृष्टि से देखने का प्रयास करना चाहिए।
      फिर से धन्यवाद और आभार।
      सादर
      राजेंद्र

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  9. आ. राजेन्द्र जी ,
    तथ्यों की अनुपस्थिति में बहुत संभावनायें बन जाती है.
    मेरा विचार था रावण को खलनायक सिद्ध करने के लिये भक्तों की अतिवादिता को हटा कर देखें तो (रावण के विनाश के लिये मंत्र-पूत जल की बात मानी जा सकती हैऔर ऋषि रक्त की बात अतिरंजना . रावण की अनुपस्थिति ?उसके पास आकाश-गमन के साधन थे. वह अपने राज्य और परिवार में कब आया-गया किसे पता !सीता का व्यक्तित्व ,द्योतित करता है वह किसी साधारण माता-पिता की संतान नहीं थी ं
    मेरा विचार था रावण को खलनायक सिद्ध करने के लिये की गई भक्तों की अतिवादिता को हटा कर देखें तो रावण के विनाश के लिये मंत्र-सिद्ध जल की बात मानी जा सकती है ,और ऋषि रक्त की बात अतिरंजना . मैंने पढ़ा है उसने मंदोदरी के पूछने पर बताया था कि यह वह विष है जो ऋषियों ने मेरे मरण के लिये तैयार किया है.उस की उपेक्षा से दुखी हो कर उसने वह विष पी लिया. असलियत जानने के बाद अपने पति का अनिष्ट नहीं चाहती थी इसलिये कन्या को त्याग दिया .
    और रावण की अनुपस्थिति ?उसके पास आकाश-गमन के साधन थे. वह अपने राज्य और परिवार में कब आया-गया, किसे पता !यह केवल संभाव्य है ,जब तक कोई तथ्य हाथ नहीं लगता ,अनुमान चलते रहते हैं सीता का व्यक्तित्व ,द्योतित करता है वह किसी साधारण माता-पिता की संतान नहीं थी.
    .
    आख़िर सीता ,किसकी पुत्री थीं इस पर अन्य मत भी सामने आ सकते हैं .
    आभार
    स्वीकारें !

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    1. आपने बिलकुल सही कहा: "तथ्यों की अनुपस्थिति में बहुत संभावनायें बन जाती है."
      धन्यवाद।

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  10. शकुन्तला बहादुरSunday, October 07, 2012 11:51:00 AM

    आदरणीय राजेन्द्र जी,
    आपका अत्यधिक श्रमसाध्य शोधपूर्ण आलेख उन सभी इतिहासकारों- प्रो.रिचमैन,रामानुजन एवं थापर के निर्मूल मतों का सशक्त एवं प्रभावी उत्तर है। जिन
    घटनाओं के आधार पर प्राचीन बारतीय संस्कृति के दस्तावेज़ों को मिथक कह कर कपोल-कल्पित मानते हैं,उनके तथा विभिन्न रामायणों में प्रस्तुत विकृत
    तथ्यों के निराकरण हेतु आपका वैज्ञानिक आधार पर किया गया शब्दरूप शोध तर्कसंगत है। काल के प्रवाह में बहते हुए शब्दों के सतत परिवर्तित रूपों से अनेक भ्रान्तियाँ जन्म लेती है,जो अश्रद्धा और अविश्वास को जन्म देती हैं।ऐसे में हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को खो देंगे। आपका यह प्रयास निस्संदेह
    सराहनीय है।आपकी इस खोजपूर्ण शब्द-यात्रा की सफलता के लिये हार्दिक-बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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    1. बहुत धन्यवाद और आभार। मुझे खुशी है कि आपको यह प्रयास पसंद आया।

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  11. Pooja Jha Maity on Facebook on 24 Aug 2012Saturday, October 13, 2012 2:05:00 PM

    Thank you sir for posting it. I have been waiting for a long time for part 2.

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    1. on Facebook on 25 August 2012: Thanks Pooja. Thanks also for sharing it with your friends.

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  12. बहुत बहुत सुन्दर

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  13. ~ शूद्र कौन थे ? ~


    👔👘👖🎽👗👚👞👟👠👡👢💼👕...भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् .....शोध....
    विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः प्रमाणित हुआ है जिस वर्ण व्यवस्था को मनु का विधान कह कर भारतीय संस्कृति के प्राणों में प्रतिष्ठित किया गया था... उसकी प्राचीनता भी पूर्णतः संदिग्ध ही है .मिथ्या वादीयों ने वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय विधान घोषित भी किया तो इसके मूल में केवल इसकी प्राचीनता है वर्ण व्यवस्था प्राचीन तो है पर ईश्वरीय विधान कदापि नहीं है ..
    ..... मैं योगेश कुमार रोहि वर्ण व्यवस्था के विषय में केवल वही तथ्य उद्गृत करुँगा ..जो सर्वथा नवीन हैं ,...
    वर्ण व्यवस्था के विषय में आज जैसा आदर्श प्रस्तुत किया जाता है वह यथार्थ की सीमाओं में नहीं है ...वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरूप स्वभाव प्रवृत्ति और कर्म गत भले ही हो ! ......
    कालान्तरण में वर्ण व्यवस्था की विकृति -पूर्ण परिणति जाति वाद के रूप में हुई.. मनु -स्मृति तथा आपस्तम्ब गृह्य शूत्रों ने भी प्रायः जाति गत वर्ण व्यवस्था का ही अनुमोदन किया है ,.......परन्तु आर्यों की सामाजिक प्रणाली में वर्ण व्यवस्था का प्रादुर्भाव कब हुआ ? और कहाँ से हुआ ????????????????इसी तथ्य को मेेेैंने अपने अनुसन्धान का विषय बनाया है ....मनस्वी पाठकों से मैं यही निवेदन करता हूँ हमारे इन तथ्यों की समीक्षा कर अवश्य प्रतिक्रियाऐं प्रेषित करें ...
    🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸
    वर्ण व्यवस्था का वैचारिक उद्भव अपने बीज वपन रूप में आज से सात हज़ार वर्ष पूर्व बाल्टिक सागर के तट- वर्ती स्थलों पर
    ............जर्मन के आर्यों तथा यहीं बाल्टिक सागर के दक्षिण -पश्चिम में बसे हुए ..गोैलॉ .वेल्सों .ब्रिटों (व्रात्यों ) के पुरोहित ड्रयडों (Druids )के सांस्कृतिक द्वेष के रूप में हुआ था...यह मेरे प्रबल प्रमाणों के दायरे में है.प्रारम्भ में केवल दो ही वर्ण थे ! आर्य और शूद्र ..जिन्हें यूरोपीयन संस्कृतियों में क्रमशः Ehre एर "The honrable people in Germen tribes ".......
    जर्मन भाषा में आर्य शब्द के ही इतर रूप हैं ...Arier तथाArisch आरिष यही एरिष Arisch शब्द जर्मन भाषा की उप शाखा डच और स्वीडिस् में भी विद्यमान है.........

    और दूसरा शब्द शाउटर Shouter. है शाउटर शब्द का परवर्ती उच्चारण साउटर Souter शब्द के रूप में भी है शाउटर यूरोप की धरा पर स्कॉटलेण्ड के मूल निवासी थे ., इसी का इतर नाम आयरलेण्ड भी था .
    .शाउटर लोग गॉल अथवा ड्रयूडों की ही एक शाखा थी जो परामपरागत से चर्म के द्वार वस्त्रों का निर्माण और व्यवसाय करती थी ...
    .Shouter ---a race who had sewed Shoes and Vestriarium..for nordic Aryen Germen tribes......
    ...यूरोप की संस्कृति में वस्त्र बहुत बड़ी अवश्यकता और बहु- मूल्य सम्पत्ति थे ...क्यों कि शीत का प्रभाव ही अत्यधिक था.... उधर उत्तरी-जर्मन के नार्वे आदि संस्कृतियों में इन्हेैं सुटारी (Sutari ) के रूप में सम्बोधित किया जाता था यहाँ की संस्कृति में इनकी महानता सर्व विदित है
    यूरोप की प्राचीन सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह शब्द ...सुटॉर.(Sutor ) के रूप में है ....तथा पुरानी अंग्रेजी (एंग्लो-सेक्शन) में यही शब्द सुटेयर -Sutere -के रूप में है.. जर्मनों की प्राचीनत्तम शाखा गॉथिक भाषा में यही शब्द सूतर (Sooter )के रूप में है... विदित हो कि गॉथ जर्मन आर्यों का एक प्राचीन राष्ट्र है जो विशेषतः बाल्टिक सागर के दक्षिणी किनारे परअवस्थित है ईसा कीतीसरी शताब्दी में डेसिया राज्य में प्रस्थान किया डेसिया का समावेश इटली के अन्तर्गत हो गया ! गॉथ राष्ट्र की सीमाऐं दक्षिणी फ्रान्स तथा स्पेन तक थी .. उत्तरी जर्मन में यही गॉथ लोग ज्यूटों के रूप में प्रतिष्ठित थे और भारतीय आर्यों में ये गौडों के रूप में परिलक्षित होते हैं...
    ...ये बातें आकस्मिक और काल्पनिक नहीं हैं क्यों कि यूरोप में जर्मन आर्यों की बहुत सी शाखाऐं प्राचीन भारतीय गोत्र-प्रवर्तक ऋषियों के आधार पर हैं
    जैसे अंगिरस् ऋषि के आधार पर जर्मनों की ऐञ्जीलस् Angelus या Angle.
    जिन्हें पुर्तगालीयों ने अंग्रेज कहा था ईसा की पाँचवीं सदी में ब्रिटेन के मूल वासीयों को परास्त कर ब्रिटेन का नाम- करण आंग्ल -लेण्ड कर दिया था... जर्मन आर्यों में गोत्र -प्रवर्तक भृगु ऋषि के वंशज Borough...उपाधि अब भी लगाते हैं और वशिष्ठ के वंशज बेस्त कह लाते हैं समानताओं के और भी स्तर हैं ...परन्तु हमारा वर्ण्य विषय शूद्रों से सम्बद्ध है ...📖📖📚📖📚📖📚📖📚📖✏........ लैटिन भाषा में शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन क्रिया स्वेयर -- Suere = to sew सीवन करना ,वस्त्र -वपन करना

    .......
    विदित हो कि संस्कृत भाषा में भी शूद्र शब्द की व्युत्पति शुच् = सीवने धातु से हुई है !

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  14. प्रस्तोता -- योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र०.....📝📝📝📝📝📝📝📝📝
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    पेरियार ललई सिंह यादव जिन्होने सुप्रीम कोर्ट तक सच्ची रामायण के लिए अपनी क्षमता अकाट्य तर्कशील से विजय पञ्जीकृत करायी थी ! श्री राजेन्द्र यादव जिनके हंस को न पढ़ पाने वाला हिन्दी का मूर्धन्य विद्वान भी कुछ खोया महसूस करता हो को अस्तित्वविहीन साबित करने की क्षमता रखता है।
    अंग्रेजी के एक विद्वान की लाईन में 1984 में पढ़ा था कि ‘‘It is better to reign hell than to be slave in heaven’’ अर्थात स्वर्ग में गुलाम बनकर रहने की अपेक्षा नरक में शासक बनकर रहना बेहतर है".. पूरी दुनिया दास प्रथा के विरुद्ध लड़ रही है। 1942 का स्वतंत्रता अन्दोलन अंग्रेजी दासता से मुक्ति का आंदोलन था |परन्तु जब हम समाज में सदीयों से व्याप्त मानवीय असमानताओं से मुक्त होगें ..तब वास्तविक स्वतन्त्रत माने जाएगे ..
    ऐसे में यदि तुलसीदास जी लिखतें हों कि निरमल मन अहीर निज दासा और हम इस पर गर्व करें ! तो हम्हें इस कपटपूर्ण नीति से युक्त प्रशंसा को समझने की महती आवश्यकता है ..
    भला तुलसी दास "निरमल मन भगवान का दास अहीर को क्यों लिखते हैं...
    क्या उन्हें दास का मतलब नहीं पता था ? उन्हें जब ब्राह्मण को भुसूर बनाना था। ”पूजिय विप्र सकल गुणहीना“ लिखना था तो दास क्यों बनायें वे जानते थे कि दासता का पट्टा कुत्ते के गले में ही रह सकता है। लोमड़ी या भेडि़यें के गले में नहीं।
    तुलसी दास जी ने श्री कृष्ण के वंशजों को लिखा है कि आभीर, यवन, किरात, खल स्वपचादि अति अधरूपजे। इसमें अहीर को नीच, अन्त्यज, पापी बताया है जिस अहीर की कन्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री नरेन्द्र सैन आभीर की कन्या थी ...
    पद्मपुराण के सृष्टि खण्ड में देखे विस्तार से ...
    और वाल्मीकि के नाम पर बौद्धकाल के बाद में लिपिबद्ध ग्रन्थ वाल्मीकीय रामायण
    बुद्ध भगवान् को चोर कहा गया है और बुद्ध के प्रथम सम्प्रदाय पाषण्डः का विरोध किया गया है ..
    प्रारम्भ में पाषण्डः शब्द बुद्ध का वह पवित्र अनुयायीयों का समुदाय था
    जिसने तत्कालीन कुछ ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित वैदिक यज्ञों के नाम पर हिंसात्मक तथा व्यभिचार पूर्ण पृथाओं का खण्डन किया था ..जो समाज में पाश या बन्धन के समान थे पाषण्डः=
    अर्थात् पाषण् पाषम् षण्डयति इति पाषण्डः कथ्यते "
    वाल्मीकीय रामायण में ही
    युद्धकांड के 22वें सर्ग में स्पष्ट लिखा है कि जब राम ने लंका जाने हेतु सागर को समाप्त करने के लिए अपनी प्रत्यञ्चा पर वाण चढ़ा लिया तो सागर प्रकट होकर अपने भगवान राम को सनातन मार्ग न छोड़ने की सीख देते हुए वाण न छोड़ने का आग्रह करता है। जिस पर राम कहते हैं कि
    "तमब्रवीत् तदा रामः श्रणु में वरुणालय।
    अमोघोSयं महाबाणः कस्मिन् देशे निपात्यताम्।।30।।
    वरुणालय! मेरी बात सुनों। मेरा यह विशाल बाण अमोघ है। बताओं, इसे किस स्थान पर छोड़ा जाय"
    राम के इस सवाल पर महासागर ने कहा।
    क्रमश ....प्रथम भाग ..1⃣.....सम्पर्क- सूत्र 8979503784

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