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Sunday, April 07, 2019

ब्रह्मपुत्र नहीं, ब्रह्मपुत्री बोलो – पूर्वी भारत की सरस्वती


भारतीय संस्कृति में नदियों को देवी के समान माना गया है। लगभग सभी नदियों के नाम स्त्रीलिंग-वाचक हैं। केवल कुछ अपवाद हैं, जैसे ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, दामोदर और सोनभद्र। इन्हें नदी नहीं नद माना गया है। नदी स्त्रीलिंग है। नद पुल्लिंग है। नद अर्थात बहुत बड़ी नदी। नद का मूल अर्थ है -- नाद  करने वाला, शोर करने वाला। स्वाभाविक है कि यह प्रश्न उठेगा कि हजारों नदियों में से कुल तीनचार नदियों में ऐसा क्या है जो उन्हें नदी नहीं नद बनाता है। उत्तर है कुछ भी नहीं। ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, दामोदर या सोनभद्र की प्रकृति किसी भी तरह अन्य किसी बड़ी नदी की प्रकृति से भिन्न नहीं है। तो फिर इनका नाम पुल्लिंग-वाची क्यों? ऐसा लगता है कि यहाँ कोई गलती हुई है। अगर इस गलती की जांच करनी है तो फिर यह जानना आवश्यक होगा कि इन नदियों का नामकरण कैसे हुआ होगा। पहले ब्रह्मपुत्र की बात करते हैं। ब्रह्मपुत्र का अर्थ है – ब्रह्मा का पुत्र। यह नाम क्यों और कैसे पड़ा होगा?  नदी में बहने वाले पानी की मात्रा के अनुसार, ब्रह्मपुत्र भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह भारतीय भूभाग की दूसरी सबसे लम्बी नदी है; पहले स्थान पर सिन्धु है। ब्रह्मपुत्र विश्व की पंद्रहवीं सबसे लम्बी और पानी की मात्रा में नौवीं सबसे बड़ी नदी है। अनेक स्थानों में इसका पाट 20 किलोमीटर तक चौड़ा है! कहीं-कही पर यह नदी 120 मीटर तक गहरी है! निश्चय ही ब्रह्मपुत्र भारत की नदियों में नदीतमा है, अर्थात सबसे बड़ी नदी। ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती नदी के लिए नदीतमाविशेषण प्रयोग हुआ है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को अम्बेतमा (सबसे बड़ी माँ) और देवीतमा (सबसे बड़ी देवी) भी कहा गया है। सरस्वती नदी प्रागैतिहासिक काल में उत्तर-पश्चिम भारत में बहती थी। यह महाभारत काल तक सूख चुकी थी और ऐसा मानने के पर्याप्त कारण है कि सरस्वती नदी के सूखने के बाद सारस्वत क्षेत्र में बसने वाले निवासी विस्थापित हो कर अनेक दिशाओं में चले गए।  इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि विस्थापित जन जहाँ-जहाँ भी गए उन्होंने वहाँ-वहाँ की नदियों को अपने पुराने क्षेत्र की नदियों का नाम दिया हो और नये नगरों को भी पुराने नगरों का नाम दिया हो। शायद इसी क्रम में सारस्वत क्षेत्र से विस्थापित लोगों ने जब पूर्वी भारत में सरस्वती जैसी एक और नदीतमा को देखा होगा तो उसका नाम भी सरस्वती रखना चाहा होगा। सरस्वती को ब्रह्मा की पुत्री माना गया हैं। अतः, सरस्वती का एक नाम ब्रह्मपुत्री भी है। शायद इसीलिए ही, पूर्व की इस सरस्वती को ब्रह्मपुत्री कहा गया होगा जो समय के साथ बिगड़ कर ब्रह्मपुत्र हो गया होगा। भारत के असम प्रदेश में बहने वाली इस ब्रह्मपुत्र को असमी जन ब्रोह्मोपुत्रो कहते हैं। चीन में ब्रह्मपुत्र को अनेक नामों से जाना जाता है। इनमें से एक नाम बुलामपुतेला (Bùlāmǎpǔtèlāभी है। यह चीनी भाषा में को बोलने के कारण हुआ है --  (ब्रह्मपुत्र > ब्ल्म्पुत्ल > बुलामपुतेला)। किन्तु विशेष बात यह है कि यह नाम बुलामपुतेला है न कि बुलामपुतेल (ब्रह्मपुत्रा का चीनी उच्चारण)। अंत में स्त्रीलिंग-वाचक है पुल्लिंङ्ग-वाचक नहीं।  
प्रसिद्ध कोशकार श्री अरविंद कुमार जी के अनुसार सही नाम ब्रह्मपुत्रा ही है. वे कहते हैं कि हर जगह उसे ब्रह्मपुत्र लिखा जा रहा है। ऐसा लिखने वाले समझते हैँ कि रोमन लिपि मेँ लिखे Brahmaputra का सही उच्चारण ब्रह्मपुत्र होना चाहिए... पुत्रा के अर्थ हैँ –बालिकाछोटी लड़कीकन्याबेटी। ब्रह्मपुत्रा का मतलब है ब्रह्मा की बेटी – यानी सरस्वती।

श्यामसुंदर दास के हिंदी शब्दसागर में पुत्रा का अर्थ लड़की, कन्या, बेटी, बालिका बताया गया है। किन्तु हिंदी या संस्कृत के किसी भी अन्य कोष में यह शब्द नहीं मिलता। अरविंद जी के अनेकों कोशों में भी नहीं। न ही यह प्रचलन में है। साहित्य में या लोक में बेटी के लिए पुत्रा शब्द के प्रयोग का कोई उदाहरण सुलभ नहीं है। पुत्री शब्द लगातार प्रचलन में रहा है। सभी शब्दकोशों में भी है। अतः ब्रह्मपुत्र, ब्रह्मपुत्रा और ब्रह्मपुत्री में से ब्रह्मपुत्री ही सर्वाधिक मान्य जान पड़ता है।

चलिए आज से, ब्रह्मपुत्र नहीं, ब्रह्मपुत्री बोलें!