उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना के संगम क्षेत्र
और उसके किनारे बसे नगर को प्रयागराज कहते हैं. प्रयागराज हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ स्थान
है. इसे बहुत पवित्र माना गया है. यहाँ कुम्भ मेला भी लगता है. ऐसा माना जाता है
कि यह स्थान प्राचीन काल से यज्ञभूमि था. यज्ञ से सम्बंधित होने से यह स्थान याज्ञ
कहलाया. याज्ञ शब्द बिगड़ कर याग बना और फिर उससे प्रयाग. मैं प्रयाग शब्द की इस व्युत्पत्ति
से सहमत नहीं हूँ. मेरा अनुमान है प्रयाग शब्द का उत्स नदियों के संगम में ही
छिपा होना चाहिए. प्रयाग एक बहुत बड़ा नदी संगम है, अतः बड़े के लिये संस्कृत शब्द बृह्
और संगम के लिए एक अन्य संस्कृत शब्द योग को जोड़ने से हमें ‘बृह्योग’
शब्द मिलता है. संभवतः ‘बृह्योग’ ही बिगड़ बृह्याग, उससे पृय्याग, प्रय्याग और
फिर प्रयाग बन गया होगा. ऐसा मानने का एक और कारण भी है.
गंगा के उद्गम गंगोत्री से निकली छोटी सी जलधारा,
अपने मार्ग में अनेकों छोटी-बड़ी जलधाराओं से मिलती है और उनके बार-बार संगम से लगातार
बड़ा रूप लेती चली जाती है. इस क्रम में ऊंचे पर्वतों में गंगोत्री से बह कर हरिद्वार
में मैदानी प्रवेश तक गंगा में सैंकड़ों नदी-नालों के संगम हैं जिनमें पांच बड़े संगमों को प्रयाग ही कहा जाता है. ये हैं,
1. विष्णुप्रयाग -- धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों का
संगम
2. नन्दप्रयाग -- नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों का संगम
3. कर्णप्रयाग -- अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों का संगम
4. रुद्रप्रयाग -- मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों का संगम
5. देवप्रयाग -- अलकनंदा तथा भगीरथी नदियों का संगम. इसी
संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है.
हरिद्वार से गंगासागर तक के मार्ग में गंगा में और
भी अनेक नदियों का संगम होता है. इन सभी संगमों में सबसे बड़ा है गंगा और यमुना का
संगम है. निश्चय ही गंगा और यमुना का मिलन संगमराज या प्रयागराज कहलाने का अधिकारी
है.